अवधपुर से बारात का तैयार होकर जनकपुर के लिए रवाना होना
गवाह गीत मनोहर नाना अति आनंद न जाय वरवाना
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तव सुमंत दुई स्पंदन साजी जोते रवि हय निंदक वाजी
बारात सज कर नगर के बाहर खड़ी है। स्त्रीया नाना प्रकार के मनोहर गीत गा रही हैं। उनके आनंद हर्षोल्लास का कोई ठिकाना नही था तभी सुमंत ने दो रथ तैयार करायें उन दोनों रथों में जो घोड़े जोड गए थे वो सूर्यदेव के रथ के घोड़ो को मात देने वाले थे
दोऊ रथ रुचिर भूप पहि आके नही शारद पहि जाए बरवाने
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राम समाज एक रथ राजा दूसरा तेज पुन्ज अति भ्राजा
तभी सुमंत दोनों रथो को लेकर राजा दशरथ के पास आये जिनकी सुंदरता का वारवान स्वयं सरस्वती माता भी नहीं कर सकती एक रथ पर महलों का सामान रखा गया और दूसरे रथ पर जो तेज पुन्ज शोभायमान इंद्र के रथ के समान तेज था| उस रथ पर राजा दशरथ ने बड़े ही आदर भाव के साथ गुरू वशिष्ठ जी को बैठाया और फिर स्वयं गुरु वशिष्ठ व महादेव पार्वती माता और पविती नंदन गणेश की आदर भाव से मन में पूजा करके रथ की परिक्रमा लगाई उसके बाद उसी रथ पर गुरुजी के साथ विराजमान हुए राजा गुरूजी के साथ ऐसे दिखाई दे रहे हैं जैसे गुरु बृहस्पति के साथ इंद्र बैठे हो।
वेद की विधि अनुसार सब को सजा देखकर राजा दशरथ ने कहा और कोई आने वाला शेष तो नहीं रह गया तब गुरु वशिष्ट ने राजा दशरथ को बारात चलाने के लिए आग्रह किया|
सुमरि राम गुरु आयस पाई चले महि पति संग बजाई
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हरषे विवुध विलोक बराता बरसाहि सुमन सुमंगल दाता
श्री राम चंद्र जी का ध्यान करके गुरुओं की आज्ञा पाकर पृथ्वी पति राजा दशरथ ने शंख बजाकर चलने की आज्ञा दी बारात ने जब यह समाचार सुना तो सभी ने खुशी के साथ बाजे बजायें व नाचगाना करने लगे आकाश में देवता ढोल नगाड़े बजा रहे हैं। और खुशी से झूम झूम कर फूल बरसा रहे है।
चारों तरफ शोर मच गया हाथी घोड़े गरजने लगे पैदल चलनेवाले नाच गाकर तलवार बाजी खेलकूद के साथ रास्ते का आनंद उठा रहे हैं। बारात इस तरह सजी है कि उसका वारवान नहीं किया जा सकता तीनों प्रकार की हवा अनुकूल दिशा में चल रही है। कोयल पेडो पर मंगल गीत गा रही है। शगुन ही शगुन बन रहे है। जहां रघुकुल शिरोमणी राम दूल्हा हो माता लक्ष्मी स्वयं सीता जी के रूप में जन्मी हो और राजा दशरथ और जनक आपस में संबंधी हो । तो वहाँ के सारे कार्य शुभ ही होंगे ऐसी बारात को देखकर सभी चकित हो गए जब जनक जी को बारात के आने का समाचार मिला तो शीघ्र ही रास्ते में बारात के ठहरने के लिए प्रबंध व जगह-जगह खानपान की व्यवस्था करायी राजा जनक ने इतनी सुविधाये दी कि बाराती सभी सुविधायें पाकर अत्यंत खुश हुए |
आवत जानि बारात बर सुनगह गहे निशान
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सजी गज रथ पद चर तुरंग लेने अगवान
जब बारात के आने की आवाज जनकपुर वालों ने सुनी तो हाथी घोड़े व रथ सजा कर बारात की आगवानी करने चले
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