श्री राम एवं लक्ष्मण के साथ गुरु विश्वामित्र का जनकपुर में पहुंचना


चले राम लक्ष्मण मुनि संगा गये जहां जग पावन गंगा
गाधि सुवन सब कथा सुनाई जेहि प्रकार सुरसरि महिआई ॥

Ramayan

 

गुरु विश्वामित्र श्रीराम व लक्ष्मण जी के साथ चले वहां जहां पर  संसार तारने वाली मां गंगा बहती रहती है महाराज गाधि के पुत्र विश्वामित्र ने भागीरथी की सारी कथा दोनों भाइयों को सुनाई कि किस प्रकार भागीरथी गंगा जी को पृथ्वी पर लेकर आए थे  

महादेव कहते हैं हे पार्वती सुनो सुखों के सागर मेरे प्रभु राम भाई लक्ष्मण ने गुरुजी के साथ गंगा जी में स्नान किया और स्नान के पश्चात उन्होंने गंगा जी की आरती की और फिर गुरुजी के साथ जनकपुर पहुंच गए प्रभु श्री राम जी ने जनकपुर की शोभा देखी दोनों भाई बहुत ही प्रसन्न हुए विभिन्न प्रकार के तलाब  कुएं हवेलियां देखी| ठंडी सुगंधित हवा चल रही थी नदियां जिन में अनेकों प्रकार का जल है हीरे मोती की सीढ़ियां बनी ह


मकरंद रस से मतवाले होकर भौंरे सुंदर गुंजार कर रहे हैं। रंग-बिरंगे (बहुत से) पक्षी मधुर शब्द कर रहे हैं। रंग-रंग के कमल खिले हैं। सदा (सब ऋतुओं में) सुख देने वाला शीतल, मंद, सुगंध पवन बह रहा है॥

पुष्प वाटिका (फुलवारी), बाग और वन, जिनमें बहुत से पक्षियों का निवास है, फूलते, फलते और सुंदर पत्तों से लदे हुए नगर के चारों ओर सुशोभित है  


कोई भी अजनबी नगर में मुख्य दरवाजे के बिना प्रवेश नहीं कर सकता राज महल के सब दरवाजे सुंदर हैं ऐसे लगता है जैसे श्री विश्वकर्मा जी ने दूसरा स्वर्ग धरती पर  ही बना दिया हो 


श्री राम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण जी ने गुरु जी के साथ आश्रम में ही विश्राम किया, जब राजा जनक ने समाचार सुना की महा मुनि विश्वामित्र उनके नगर में पधारे हैं तो राजा की खुशी का कोई ठिकाना ना था राजा जनक सतानन्द जी व अपने मंत्रियों के साथ गुरु जी से मिलने आश्रम की ओर चल दिए

कीन्ह प्रणम चरनि धरि माथा दीन्ह अशीस मुदित मुनि नाथा
विप्र व्रन्दसब सादर ब वन्दे ; जति भाग्य बड़ा राऊ अनन्दे ॥ 

Ramayan



राजा जनक ने मुनि विश्वामित्र जीके चरण कमलों में शीश झुका कर प्रणाम किया महामुनी विश्वामित्र जेना राजा जनक को आशीर्वाद दिया राजा जनक अपना यह है बड़ा सौभाग्य जान बहुत प्रसन्न हुए कि उन्हें गुरु विश्वामित्र जी से आशीष प्राप्त हुआ गुरु विश्वामित्र जी ने राजा जनक को अपने पास बिठाया तभी श्री राम एवं लक्ष्मण दोनों भाई विवाह पहुंच गए जहां पर गुरु विश्वामित्र जी विराजमान थे 


राजा जनक दोनों भाइयों को देख आश्चर्यचकित रह गए कि इतनी सुंदर जोड़ी  दोनों के कंधे पर धनुष बाण और तरकस शोभा दे रहे हैं 


मन ही मन राजा जनक दोनों भाइयों के बारे में ही विचार कर रहे थे आगे की कहानी हम अगले भाग में पढ़ेंगे


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