मकर संक्रांति का हिंदू धर्म में क्या महत्व है Makar sankranti ka Hindu dharm mein kya mahatv h
मकर संक्रांति का यह पर्व हमारे सनातन धर्म यानी हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण खुशियां लेकर आता है जैसे कि आसमान में आजादी से मस्त मगन उड़ती हुई पतंग, दो आत्माओं के मिलन की शुरुआत का दिन, और इतने अच्छे खुशी के मौके पर सभी लोग रेवड़ी गजक एवं मूंगफली एक दूसरे को बांटते हैं मकर संक्रांति के कुछ प्राचीन परंपराएं आपको आज के समय में भी भारत के विभिन्न हिस्सों में देखने को मिल जाएंगे तथा गांवों में प्रचलित बाजरे चावल दाल की खिचड़ी बनाना और इसी मकर संक्रांति को पंजाब हरियाणा में लोहड़ी के रूप में मनाते हैं
मकर संक्रांति कब मनाई जाती है मकर संक्रांति कैसे बनाना चाहिए?
मकर संक्रांति को प्रत्येक वर्ष, जनवरी माह में दिनांक 14 को बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है समस्त भारत में हिंदू धर्म के लोग इस पर्व का इंतजार करते हैं कई बार ऐसा भी हुआ है कि इस पर्व यानी मकर संक्रांति को 14 जनवरी की जगह 15 जनवरी को मनाया गया है यह पर्व हिंदू धर्म में एक मुख्य त्योहार के रूप में देखा जाता है
मकर संक्रांति को भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है उदाहरण के तौर पर हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व 13 जनवरी को ही मनाया जाता है उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से 'दान का पर्व' है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी नाम से जाना जाता है। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है बंगाल राज्य में मकर संक्रांति के स्तर पर नहान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है बंगाल में स्थित गंगासागर स्थान पर इस पर्व के समय प्रति वर्ष मेला आयोजित किया जाता है बंगाल में ऐसी भी मान्यता है कि गंगा जी भागीरथी के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी तमिल नाडु राज्य में इस त्यौहार को 4 दिन तक मनाते हैं तथा यह पोंगल नाम से जाना जाता है प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल। अगर असम राज्य की बात की जाए तो यहां पर मकर संक्रांति को माघ बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं राजस्थान क्षेत्र में इस पर्व के दौरान सुहागन महिलाएं अपनी सास को बायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती है
मकर संक्रांति के मनाने का कारण सूर्य और पृथ्वी से होता है हमारे भूगोल के अनुसार जब भी सूर्य 14 जनवरी को मकर रेखा से गुजरता है तभी मकर संक्रांति मनाया जाता है
मकर संक्रांति का इतिहास History of Makar Sankranti
यदि हम मकर संक्रांति को एक इतिहासकार के रूप में देखें तो हम पाएंगे कि हिंदू धर्म में मकर संक्रांति को लेकर कई प्रकार की पुराणिक कथाएं बताई गई हैं जिन में सर्वप्रथम है श्रीमद् भागवत एवं देवी पुराण मैं कहीं गई है
पौराणिक ग्रंथों ने बताया गया है कि शनि महाराज को अपने पिता सूर्य देव से वैर भाव था अर्थात वह ने पसंद नहीं करते थे और इस का कारण यह बताया गया कि सूर्यदेव ने उनकी माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेदभाव करते हुए देख लिया था। इस बात से सूर्य देव ने संज्ञा और उनके पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया था। इससे शनिदेव और उनकी छाया ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया था
पतंगबाजी करना kite flying
मकर संक्रांति ही एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें भारतवर्ष के सभी लोग बच्चे बड़े सभी अपनी छतों पर एक साथ एकत्रित होकर पतंगों को खुले आसमान में उड़ाते है
पतंगों से होने वाले नुकसान damage caused by moths
जब हम लोग पतंग उड़ाते हैं तो बहुत प्रसन्न होते हैं क्या कभी हमने सोचा है इससे क्या परेशानियां होती हैं हम आज आपको बताते हैं की पतंग उड़ाने से क्या समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं आज के समय में लोग जिस धागे से पतंग उड़ाते हैं जिसे आमतौर पर मंजा भी कहा जाता है वह कुछ ऐसे तत्वों से मिलकर बना होता है जो सहज नहीं टूटते यानी कि जब आप पतंग लड़ाते हैं तो कोई एक पतंग कट जाती है और उसके बाद वह एक बहुत ही लंबे धागे के साथ खुले आसमान में काफी दूरी तक जाती है कई बार उस पतंग में बंदा धागा जो कि इतना ज्यादा मजबूत होता है की कुछ लोगों के लिए उनकी जिंदगी का आखरी दिन बना देता है तथा कभी-कभी बहुत से पक्षियों भी इन धागों की वजह से मारे जाते हैं
मकर संक्रांति के पर्व पर क्या भोजन करते हैं What food do we eat on the festival of Makar Sankranti?
मकर संक्रांति के लिए हिंदू धर्म में भारतवर्ष के अंदर प्राचीन काल से ही एक प्रचलन चला आ रहा है सभी लोग मकर संक्रांति के दिन चावल दाल की या बाजरा कूटकर साफ करके खिचड़ी बनाते हैं तथा गुड़ तिल के लड्डू बनाते हैं और वही खाते हैं और रेवड़ी मूंगफली गज्जक इत्यादि आपस में एक दूसरे को देकर स्वागत करते हैं इस दिन रोटि सब्जी का भोज कम ही लोग करते हैं
रूठे हुए बड़े बूढ़ों को मनाना
मकर संक्रांति पर एक नया प्रचलन देखने को मिलता है वैसे यह प्रचलन आदि काल से चला आ रहा है पर हमें बड़ा ही विचित्र और मन को खुश करने वाला यह पल है जब बुजुर्ग महिलाएं घरों से बाहर जाकर रूठ कर बैठ जाती हैं फिर उनकी बहू है यानी बेटों की पत्नियां अपनी सासू को गीत गाते हुए महिलाओं के साथ मीठे चावल खिचड़ी लेकर मनाने जाती हैं और उनके पैर छूकर माफी मांग कर सम्मान के साथ घर पर लेकर आते हैं फिर सभी को प्रसाद के रूप में मीठे चावल की खिचड़ी रेवड़ी आदि सब को बांटी जाती है
मकर संक्रांति को लोहड़ी के रूप में कहां पर बनाते हैं Where is Makar Sankranti celebrated as Lohri?
मकर संक्रांति या फिर लोहड़ी इस पर्व को बड़े ही हसो उल्लास के साथ हरियाणा और पंजाब में मनाते हैं जैसा आपने ऊपर लिखे हुए लेख में भी पढ़ा होगा इन राज्यों में लकड़ियों को एकत्रित कर जिस प्रकार होली दहन के लिए लकड़ियां एकत्रित की जाती हैं उसी प्रकार यहां पर लकड़ियां एकत्रित करके उनमें आग लगाकर सभी लोग एकत्रित होते हैं तथा आग के चारों तरफ नाच गाना करते हैं और आपस में रेवड़ी गजक और मक्की जिन्हें आप पॉपकॉर्न के नाम से जानते हैं एक दूसरे को बांटते हैं सारी रात गाना बजाना यूं ही चलता रहता है इस प्रकार अलग-अलग राज्यों में मकर संक्रांति को अलग-अलग रूप से मनाया जाता है
स्नान करने की प्रथा the practice of bathing
कहते हैं मकर संक्रांति के दिन स्नान के पश्चात दान करने से सूर्य भगवान प्रसन्न होते हैं इस पर्व पर नदियों एवं पवित्र महा नदियों जैसे गंगा जी यमुना जी आदि नदियों में स्नान करने से सूर्य देव अति प्रसन्न होते हैं उसके पश्चात तिल गुड़ खिचड़ी दान का महत्व माना जाता है इसीलिए इस पर्व को सूर्य देवता पर या दान पर्व माना जाता है सूर्य भगवान सभी पर अपनी कृपा करते हैं
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