श्री राम और लक्ष्मण नगर में धनुष यज्ञ भूमि देखने पहुंचते हैं -- रामायण

हिय हरषहि वरषहि सुमन सुमुख सुलोचन बृन्द I
जाहि जहाजहं वन्धु दोऊ तहं तहं परमाननद ॥

Ramayana

सुंदर मुखर सुंदर आंखों वाली महिलाएं समूह के समूह आपस में मिलकर हर्षित होकर श्री राम एवं लक्ष्मण जी पर फूलों की वर्षा कर रहे हैं वहां पर परमआनंद छा जाता है   दोनों भाई नगर के पूरब की दिशा में गए जहां पर धनुष यज्ञ के लिए रंगभूमि बनाई गई थी बहुत लंबा चौड़ा आंगन था जिस पर बहुत ही सुंदर वेदी सजाई गई थी 

चहुं दिशा कंचन मंच्च विशाला रचे जहां बैठहि महिपाल
तेहि पाछे समीप चहूं पासा अपर मंच मण्डली विलाशा॥

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चारों और सोने के बड़े-बड़े मंच बने थे जिन पर राजा लोग बैठेंगे उनके पीछे समीप ही चारों और दूसरे मंचो का गोल गहरा सुशोभित था  जहां कुछ उचा था वहां नगर के लोग बैठेंगे उन्हीं के पास सफेद रंग के मकान बनाए गए हैं जहां अपने अपने कुल के अनुसार महिलाएं बैठ कर देखेंगे नगर के बालक मधुर आवाज में राम जी और लक्ष्मण जी को वहां की रचना दिखा रहे थे

सब शिषू एहि मिस प्रेमवश परसि मनोहर गात ।
तिन पुलकहि अति हरष हिय देखि देखि दोऊ भ्रात॥

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सभी बालक इसी बहाने प्रेम के वश में होकर प्रभु श्री राम जी के दर्शन कर दोनों भाइयों की सुंदर जोड़ी देखकर अति प्रसन्न है श्री राम जी ने सभी बच्चों से प्रेम से बात की और धनुष यज्ञ स्थानों की अति प्रशंसा की व बच्चे उनको सभी स्थानों के दर्शन  कराते हैं कोमल मधुर सुंदर वचन कह कर राम जी छोटे भाई लक्ष्मण को रचना दिख लाते हैं  वही दींनों पर दया करने वाले राम जी भक्ति के कारण धनुष यज्ञ शाला को चकित होकर देख रहे हैं 
इसी प्रकार सभी कोतुक देखकर दोनों भाई वापस गुरुजी के पास चले जाते हैं श्री राम एवं लक्ष्मण दोनों चिंतित हैं कि कहीं उन्हें ज्यादा देर ना हो गई हो

 

जासू तृस डर कहूं डर होई भजन प्रभाव दिखात सोई ।
कहि बाते मृदू मधुर सुहाई किये विदा बालक बरिआई॥ 

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जिनके भय से भय को भी डर लगता है वह प्रभु भजन का प्रभाव दिखला रहे हैं उन्होंने सुंदर कोमल मधुर बात कर बच्चों 
को विदा किया फिर प्रेम विनय संकोच के साथ दोनों भाई गुरु के चरणों में सिर नवाकर आज्ञा पाकर बैठ जाते हैं रात्रि
 होते ही सबने संध्या वंदन की 





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