जब राजा जनक ने अवधपुरी में दूतों द्वारा बारात का निमंत्रण पत्र भेजना


 Raja janak Ne Avadhapuree M dooto dvara baraat ka nimantran patr bhejana

 देवन्ह दीन्ही दुन्दभी प्रभू पर बरसहि फूल
हरिषे पुर नर नारि सब मिटी मोह  मय शूल

Ramayan

रामजी ने जब परशुराम जी के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा दी और परशुराम जी की शंका को दूर किया तब परशुराम जी के वहां से प्रस्थान करने के बाद आकाश से देवी देवताओं ने स्वयंवर भवन में फूलों की वर्षा की और नगाड़ा बजाने लगे जनकपुर की प्रजा भी खुशी में नाचने झूमने लगी और अपनी खुशियों को ढोल ताशे बजाकर व स्त्रियों ने अपनी मधुर वाणी में मंगल गीत गाकर व्यक्त किया

राजा जनक के मुख का वर्णन नहीं किया जा सकता वह अत्यंत खुश दिखाई दे रहे हैं मानो जैसे उन्हें बरसों का छुपा हुआ खजाना मिल गया हो सीता जी का भी  डर दूर हो गया उन्हें ऐसे खुश हुई जैसे चंद्रमा के उदय होने से चकोर खुश हो जाती हैं

जनक कीन्ह कौशिक ही प्रनामा प्रभू प्रसाद धुनुभन्जेऊ रामा
मोहि कृत कृत कीन्ह दोऊ भाई अब जो उचित सो कहिय गोसाई

Ramayan

जनक जी ने विश्वामित्र जी को प्रणाम किया और कहने लगे हे प्रभु आपकी कृपा से रामचंद्र जी ने इस पवित्र धनुष को तोड़ा है दोनों भाइयों ने मुझे बहुत ही कृतार्थ कर दिया स्वामी अब आप हमें आगे का कार्य करने की आज्ञा दें मुनि ने कहा

 हे चतुर नरेश वैसे तो विवाह धनुष के अधीन था धनुष के टूटते ही विवाह हो गया  और इसके सभी देवता मनुष्य नाग इत्यादि साक्षी  है

 परंतु फिर भी आप अपने बड़े बुजुर्गों, गुरु से पूछ कर और वेदों वर्णों की रीति अनुसार कार्य करें और मुनि बोले राजा जनक अवधपुरी को संदेशा भेजो राजा जनक, मुनि के ऐसे मीठे वचन सुनकर गदगद हो गए और बोले हे कृपालु मैं अभी इस कार्य को करता हूं और उसी समय दूत को बुलाकर समझा कर अवधपुरी भेज दिया तदुपरांत राजा जनक ने  सभी महाजनों को बुलाया  तब राजा ने सबको अलग-अलग कार्य सोंप  दिए

सभी रास्ते महल गलियां चौबारा सजाए गए व ब्रह्मा जी और विश्वकर्मा जी दोनों के आशीर्वाद से जल्दी ही जनक जी द्वारा कार्य को पूर्ण कर दिया गया

बसईनगर जैहि लच्छी करि कपह नारि वर भेष
तोहि पुर के शोभा कहत सकुचाहि शारदशेषि

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जिस नगर में माता लक्ष्मी सुंदर स्त्री का रूप बनाकर रहती हैं उस नगर व राज्य की शोभा व सुंदरता का वर्णन करने में माता सरस्वती और अन्य  सब भी कुछ सकुचाते  हैं 


पहुचे दूत रामपुर पावन हरषे लोग नगर विलोक सुहावन
भूप दूर जिन्ह खबरि जनाई दशरथ नरप सुन लिये बुलाई

Ramayan

राजा जनक के  दूत राम की पवित्र अयोध्या पुरी में पहुंचते हैं और अयोध्या नगरी को देखकर वह सभी हर्षित हो जाते हैं राजा के द्वार पर जाकर द्वारपाल को कहते हैं कि जाकर राजा दशरथ को संदेश दें कि राजा जनक के दूत एक खुशी का समाचार लेकर आए हैं 

राजा दशरथ ने यह संदेश सुनकर अपने मंत्रियों को राजा जनक के  दूतो को सम्मान सहित लाने का आदेश दिया दूतो ने राजा दशरथ की सभा में आने के बाद राजा ने उनको बैठने का स्थान दिया और फिर बड़ी ही विनम्रता से उनके आने का कारण पूछा  तब जनकपुर के दूतों ने सारा समाचार विस्तार पूर्वक बताया और राजा दशरथ के हाथों में चिट्ठी दी जो राजा जनक ने  राजा दशरथ के लिए भेजी थी 

जिसमें राजा जनक ने लिखा था की ,है पूज्यवर  आप सभी बारात के रूप में जनकपुर में पधार कर जनकपुर की शोभा बढ़ाएं और हमें कृतार्थ करें यही गुरु विश्वामित्र जी का निवेदन है बाकी आपके पुत्रों ने जो किया है उससे आज तीनों लोको में आपका सिर ऊंचा हो गया है 


राजा जनक की चिट्ठी पढ़ व दूतों द्वारा संदेश सुनकर राजा दशरथ गर्व से हर्षित  हो उठे राजा दशरथ इतना खुश हो गए कि भरे दरबार में, खुशी में मगन होकर नाचने लगे  खुशी के मारे राजा दशरथ की आंखों में आंसू आ गए और बोले हे महादेव भोले शंकर आपने तो मुझे इतना दे दिया कि मेरी झोली छोटी रह गई हे शिव शक्ति मैं आपको कोटि कोटि प्रणाम करता हूं और आपके चरण कमलों में बारंबार शीश नवाता हूं हे भोले आपकी जय हो जय हो जय हो


जब राम-लक्ष्मण की खबर भरत शत्रुघ्न ने सुनी तो वह दौड़े-दौड़े सभा में आ पहुंचे और राजा दशरथ से  सब हाल पूछा तब राजा दशरथ ने चिट्ठी पढ़कर सुनाई व सारा हाल बताया कि कैसे स्वयंवर में राम ने धनुष तोड़ा और सारे राजाओं का मान भंग कर दिया सारी बातें सुनकर दोनों भाई पुलकित हो गए व खुशी से दूतों को अपने पास बिठाया उनसे जनकपुर का सारा हाल जाना फिर राजा दशरथ ने सभी मंत्रियों के साथ गुरु वशिष्ठ के पास जाने की तैयारी कि 


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