पृथ्वी पर राक्षसों द्वारा पाप कर्मों का बढ़ना तथा भगवान विष्णु के द्वारा की गई आकाशवाणी


यह उस समय की बात है जब धरती पर पाप चरम सीमा पर था चारों दिशाओं में अंधकार फैला हुआ था राक्षसों के अत्याचार के कारण हर जीव जंतु परेशान था हमारी प्यारी धरती माता बार-बार रो-रो कर बस एक ही बात बोलती हे मेरे पालनहार हे भगवान हे विष्णु कहां हो आप कुछ करो इस धरती पर राक्षसों ने पराई स्त्री पराया धन पर अपना अधिकार दिखाने वाले बहुत बढ़ गए है


हे प्रभु धरती पर यह कैसा समय आ गया जहां पर अपने पूजनीय मात-पिता और गुरुजनों की सेवा करने की जगह लोग उनसे अपनी सेवा करवा रहे हैं   


 जिन्ह के यह आचरण भवानी ते जाने है निसचर सबप्रानी
अति सिय देख धर्म की ग्लानि परमं समीत धरा अकुलानी

Ramayan




श्री महादेव जी कहते हैं हे भवानी जिस किसी व्यक्ति के भी ऐसे आचरण हैं ऐसे ही लोगों को राक्षस समझना चाहिए


इन लोगों के ऐसे अत्याचार देखकर पृथ्वी अत्यंत भयभीत हो गई है पृथ्वी रावण से इतने भयभीत है कि कुछ बोल भी नहीं सकती ( यहां पर शिवजी पृथ्वी को एक देवी के रूप में दर्शा रहे हैं जो रावण और उसके राक्षसों द्वारा किए गए अत्याचारों से भयभीत है जो कुछ बोल भी नहीं पा रहे और अपना दुख भी नहीं बता पा रही 


अंत में धरती माता ने सोच विचार कर यह निर्णय किया कि वह गाय का रूप धारण करके वहां जाएंगे जहां पर सारे देवता और मुनि विराजमान होंगे और अंत में पृथ्वी माता एक ऐसी जगह पहुंच गई जहां सभी देवता और मुनि जन बैठे हुए थे पृथ्वी माता ने सभी रो कर अपना हाल सुनाया किंतु किसी से कुछ ना हो सका


ब्रहमा सब जाना मन अनुमाना मोर कह न बताई 
जा करि ते दासी सो अविनासी हम रेऊ तोर सहाई 

Ramayan




यह सब देखने के पश्चात सभी देवता मुनि गंधर्व एक साथ मिलकर ब्रह्मा जी के लोग गए जिसे ब्रह्मलोक के नाम से भी जाना जाता है और उन सब के साथ शोक से व्याकुल बेचारी गौ माता का रूप धारण किए पृथ्वी माता खड़ी थी 

ब्रह्मा जी तो आखिर है ही ब्रह्म ज्ञानी,ब्रह्मा जी सब को एक साथ देख कर समझ गए कि सभी लोग एक साथ इकट्ठे होकर उनके पास क्यों पहुंचे हैं ब्रह्मा जी गौ माता से कहते हैं जिसकी तू दासी है वही अविनाशी है वही हमारा तुम्हारा सभी देवी देवताओं का सहायक है 

धरनि धर हं मन धीर कह  बिहंचि  हरिपद सुमरि
जानत जन की परि प्रभू भज्जहि दारुण विपत्ती

तब ब्रह्मा जी गौमाता से कहते हैं हे पृथ्वी हरि के चरणों का  स्मरण करो श्री हरि भगवान अपने भक्तों कि विपत्ति और पीड़ा को जानते हैं तुम उनका ध्यान करो वह तुम्हारी कठिन से कठिन विपत्ति को हर लेंगे यह बात सुनकर सभी देवता यह विचार करने लगे कि भगवान हरि वैकुंठ में मिलेंगे तो कोई कहता है कि हरि शिरसागर में मिलेंगे



यह सब देख महादेव कहते हैं जिसके मन में प्रभु के प्रति भावना जैसी होती है प्रभु भी उसको वैसे ही दर्शन देते हैं भगवान महादेव माता पार्वती के साथ बैठे हुए थे और उनको बताते हैं कि उस समय मैं भी इस समाज में था और एक अवसर पाकर मैंने एक बात कही  की " प्रभु तो हर जगह वास करते हैं"फिर श्री हरि को तलाशने की जरूरत ही क्या है ऐसी कौन सी जगह है जहां प्रभु नहीं है प्रभु प्रेम से प्रकट होते हैं मेरी यह बात सभी को अच्छी लगी ब्रह्मा जी ने साधु साधु कह कर मेरी इस बात की प्रशंसा की और मेरी इस बात का गहन अर्थ समझ कर ब्रह्मा जी की आंखों से अश्क बहने लगे


तब सभी देवता गण एकत्रित होकर श्री हरि की स्तुति करने लगे और कहने लगे हे हरि विष्णु भगवान आपने अकेले ही तीनों लोगों की उत्पत्ति की है हे प्रभु अपने भक्तों को अपने दर्शन दो समस्त पापों के नाश करने वाले भगवान हरे हमारी विपत्ति दूर करें ना हम पूजा जानते हैं ना भक्ति है, हे पालनहार हम सब आप की शरण में आए हैं हम पर कृपा करें


श्री हरि सभी देवताओं की पुकार सुनकर और पृथ्वी माता को भयभीत भी देख कर और स्नेहा युक्त वचन सुनकर एक आकाशवाणी करते हैं की है पृथ्वी हे देवताओं साधु संतो डरो मत मैं सूर्यवंश में साधारण मनुष्य के रूप में अवध नामक राज्य में राजा दशरथ के यहां जन्म लूंगा और वह बताते हैं कि मैंने पूर्व जन्म में उनकी तपस्या से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि मैं उनके घर उनके पुत्र के रूप में अवतार लूंगा
नारद का वचन में सत्य करूंगा और पृथ्वी का बाहर लूंगा यह सुनकर सभी देवता अपने अपने स्थान को चले जाते हैं


सच्चे मन से बोलो जय श्री राम


मेरे प्यारे देशवासियों बच्चों एवं बढ़ो बढ़ो और सभी गुरुजनों अभी तक लिखे गए ब्लॉग्स मैं आप सभी ने जो सहयोग दिया 
उसके लिए धन्यवाद मुझे आशा है कि आप इसी प्रकार मेरा साथ देते रहेंगे  :- आप सभी को मेरा सादर प्रणाम 





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