अब तक हमने श्री राम जी एवं उनके भाइयों की बाल लीलाएं गुरु वशिष्ट से शिक्षा प्राप्ति के बारे में पढ़ा साथ में आप सभी लोगों का सहयोग भी मुझे मिलता रहा उसके लिए दिल से धन्यवाद आशा है आप इसी तरह भविष्य में भी राम नाम को घर तक पहुंचाने में मेरा सहयोग देंगे
यह सब चरित कहा में गाई आगिल कथा सुन हूं मन लाई
Ramayan
विश्वामित्र महा मुनि ज्ञानि बसहिं विपिन सुभ आश्रम जानी
शिव जी जो कि तीन लोक के स्वामी हैं आगे की कथा पार्वती जी को बता रहे हैं वह कहते हैं आगे की कथा मन लगाकर सुनो, ज्ञानी महामुनी विश्वामित्र वन में एक आश्रम में वास करते थे जब वो जंगलों में पूजा अर्चना यज्ञ कर रहे थे तो उस समय राक्षसों ने प्रभु का सिमरन करने वाले साधुओं को मारना शुरू कर दिया तत्पश्चात गुरु विश्वामित्र अपने यज्ञ की और साधुओं की रक्षा हेतु अवधपुरी राजा दशरथ के पास आए राजा दशरथ ने उनका दिल से आदर सत्कार किया और श्री गुरु विश्वामित्र जी से आने का कारण पूछा
तब गुरु विश्वामित्र राजा दशरथ को बताते हैं कि किस प्रकार राक्षसों ने समस्त साधनों और प्रभु के भक्तों को परेशान कर रखा है तब राजा दशरथ ने राम और लक्ष्मण दोनों को बुलवाया और अपने सीने से लगाकर गुरु विश्वामित्र से कहने लगे गुरु जी यह मेरे दोनों पुत्र हैं जो कि मुझे प्राणों से भी प्यारे हैं अब इनको मैं आप के हवाले कर रहा हूं अब आप ही इनके पिता माता सब कुछ है
सौंपे भुपति रिषिही सुत बहुविधी देय असीस :
Ramayan
जननी भवन गये प्रभू चले नाई पद शीश !
राजा दशरथ जी ने सब प्रकार से आशीर्वाद देकर दोनों पुत्रों को मोनी विश्वामित्र के हवाले कर दिया फिर प्रभु दोनों भाई माता के भवन गए माता को शीश नवा कर प्रणाम किया तथा प्रस्थान के लिए आज्ञा ली दोनों भाई श्री राम और श्री लक्ष्मण जी मुनि विश्वामित्र जी का दुख हरने के लिए प्रसन्न होकर उनके साथ चल दिए वह संसार के स्वयं स्वामी है भला उनका कोई क्या कर सकता है
प्रभु श्री राम के लाल नेत्र चौड़ी छाती ऊंच्ची भुजाएं श्यामल गोरा शरीर है कमर में पीतांबर पहने और सुंदर तरकस कसे हुए हैं दोनों के हाथों में धनुष बाण हैं
दोनों भाइयों की जोड़ी ऐसी लगती है जैसे स्वयं भगवान जमीन पर आ गए हैं दोनों की शेर जैसी चाल है
गुरु विश्वामित्र जी को महान निधि प्राप्त हो गई कि मेरे लिए भगवान ने अपने माता पिता को छोड़ दिया
लंबा सफर था तो अब गुरु विश्वामित्र जी श्री राम और लक्ष्मण जी को एक असुर राक्षसनी के बारे में बताते हैं जिसका नाम ताड़का था प्रभु का नाम सुनते ही ताड़का जोड़ी और प्रभु श्री राम ने एक बाण से ही ताड़का का वध कर दिया तथा ताड़का को जीवन से मुक्ति मिली
उसके बाद गुरु विश्वामित्र जी ने प्रभु श्री राम को एक ऐसी विद्या दी जिससे भूख प्यास ना लगे शरीर में अतुलित तेज एवं ताकत का वास हो उसके पश्चात श्री राम जी ने गुरु विश्वामित्र जी से यज्ञ करने को कहा और उस यज्ञ की सुरक्षा स्वयं दोनों भाई श्री राम जी और लक्ष्मण जी ने की
और यज्ञ होता देख एक मारीच नामक राक्षस तुरंत दौड़ा चला आया और प्रभु श्री राम ने एक ही बाण मैं 100 योजन दूर समंदर के पार उस राक्षस को पहुंचा दिया और इसी प्रकार दोनों भाइयों ने सुबाहूं तथा अन्य राक्षसों का वध किया श्री तुलसीदास जी कहते हैं अरे सेठ तू कपट जंजाल छोड़कर प्रभु राम का भजन कर
आज की रामायण की कहानी हमें बताती है कि किस प्रकार साधु और संतो ,असहाय लोगो की सेवा करने के
लिए हमें अपने सभी सुख त्याग देने होते हैं और यही परम सुख है मैं आशा करता हूं कि रामायण का यह
अद्भुत भाग आप सभी को पसंद आया होगा और यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे आप सब तक रामायण में लिखित
उल्लेखओ की चर्चा आपके साथ करने का मौका मिला धन्यवाद
0 टिप्पणियाँ