मेरे सभी बुजुर्गों, भाई बहनों और मुझसे छोटू सभी को मेरी तरफ से सादर प्रणाम आज मैं आपके लिए रामायण में दिए गए श्री राम जी के अवतार होने के कारण तथा रावण के तीनों भाइयों का जन्म की कथा लिख रहा हूं उम्मीद करूंगा कि यह कथा या कहानी आपके जीवन में किसी न किसी रूप में मददगार साबित होगी
रावण के जन्म की कथा |
यह इतिहासा पुनीत अति, उमही कही व्रषकेतु
Ramayan
भारद्वाज अपर पुनि राम जनम कर हेतू
अनुवाद:- वृशकेतु भारद्वाज मुनि को उस पवित्र महान इतिहास को बता रहे हैं जो कभी शिवजी ने पार्वती को बताया था अब वह इस इतिहास को बताना शुरू करते हैं और बोलते हैं श्री राम के अवतार का दूसरा कारण
वृशकेतु ने जो भारद्वाज मुनि को श्री राम के जन्म का दूसरा कारण बताया वह इस प्रकार है संसार में मशहूर एक केकई देश है वहां के राजा सत्यकेतु थे वह बहुत ही वीर प्रताप ही महान राजा थे उनके दो वीर पुत्र थे जो गुणों के भंडार और बड़े ही योद्धा थे रण में कोई उनका सामना नहीं कर सकता था राज्य का उत्तराधिकारी बड़ा बेटा ही माना जाता था उनका नाम प्रताप भानु था और दूसरी पुत्र का नाम अरिमर्दन था जो महान शक्तिशाली था जो कि महान शक्तिशाली थे लड़ाई के मैदान में उन्होंने कभी भी हार का सामना नहीं किया था वह सदैव ही विजय होकर लौटे थे दोनों भाई सदैव प्रेम के साथ साथ साथ रहते थे तथा एक दूसरे की हर चीज में सहायता करते थे
राजा ने राज धर्म के अनुसार अपने जेष्ठ पुत्र को राजा बनाने का निर्णय किया एवं उन्होंने विचार किया कि वह अब अपना बचा हुआ समस्त जीवन श्रीहरि का ध्यान करने में व्यतीत करेंगे इसीलिए वह वन में चले गए
जब प्रताप भयऊ नृप फिरी दुहाई देश
Ramayan
प्रजा पाल अति वेद विधि कत हूँ नही अद्य लेस
प्रताप भानु के राजा बनने पर जब के कई देश की प्रजा को पता चला कि वह राजा बन गए हैं तो वहां के लोग अत्यंत खुश हुए राजा प्रताप भानु ने सारी वेद की रीति के अनुसार अपनी प्रजा का पालन पोषण किया तथा अपना राज्य को पाप से मुक्त कराया|
राजा प्रताप भानु का शुक्राचार्य के समान धर्मरूचि नामक एक मंत्री था जो राज्य के हित में कार्य करता था राजा के पास एक जवान चतुरंगी सेना थीउसके पास सेना में बहुत ही महाबली योद्धा थे अपनी सेना को देख कर राजा बहुत अधिक प्रश्न रहता था तथा राजा बहुत शुभ दिन देखकर लड़ाई के लिए जाता था अपनी भुजाओं के बल से उसने सात द्वीपों के ऊपर विजय पाई थी तथा वह कभी भी किसी भी युद्ध को हारता नहीं था समस्त भूमंडल का वह राजा बन गया था और सारे राज्य को तथा सारे राजाओं को हराने के बाद वह अपने नगर में वापस लौटावापस लौटकर उसने धर्म के अनुसार अपना राज्य भार संभाला तथा अपने नगर में बहुत से कार्य करवाएं जिससे उसकी प्रजा का पालन पोषण सरलता के साथ करा जा सके उसने अपने नगर में बहुत से बाग बगीचे तथा धर्मशालाएं मंदिर इत्यादि का निर्माण कराया पुराणों में बताए गए यज्ञ को उसने विधि पूर्वक पुरोहितों से अपने नगर में संपन्न कराया जिन यज्ञ को वह भगवान वासुदेव को अर्पण करता था इसके अतिरिक्त राजा भानु प्रताप की रूचि शिकार इत्यादि में भी थी एक बार राजा शिकार को वन में गया वन में जाकर उसने बहुत से उत्तम हिरणों का शिकार किया तथा इसी शिकार के दौरान वह एक सूअर के पीछे उसका शिकार करने गया उसका पीछा करते-करते वह रास्ता भटक गया तथा उसी समय वह एक राजा से मिला जो भेष बदलकर वन में रहता था (वह सूअर एक मायावी राक्षस था जिसको उस तपस्वी राजा ने भानु प्रताप को उसके पास लाने के लिए भेजा था क्योंकि प्रताप भानु ने अपने राज्य का विस्तार करते हुए उस राजा के राज्य को छीन कर अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया था तथा वह तपस्वी राजा भानु प्रताप से अपना बदला लेना चाहता था ) उस तपस्वी राजा ने धोखे से राजा भानु प्रताप को बंदी बनाकर उसका राजपाट सब छीन लिया
वही राजा भानु प्रताप अपने अगले जन्म में रावण का जन्म लेता है तथा उसका छोटा भाई अरी मर्दन कुंभकरण का जन्म लेता है तथा भानु प्रताप का मंत्री धर्मरूचि वह विभीषण का जन्म लेता है इन तीनों का जन्म पुलस्त्य के घर में होता है अपने पिछले जन्म के पापों के कारण रावण कुंभकरण तथा विभीषण अत्यंत परेशान रहते थे जिसके कारण उन्होंने ब्रह्मा जी की घोर पूजा तथा तपस्या करना शुरू कर दिया
तथा ब्रह्मा जी ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिए तब रावण ने ब्रह्मा जी से वरदान मांगा कि उसे कोई भी मनुष्य तथा वानर के अतिरिक्त ना मार सके तथा कुंभकर्ण ने जब वरदान मांगने का प्रयास करा तब उसकी जीभ पर सरस्वती जी आकर विराजमान हो गई जिसकी वजह से कुंभकरण ने छह माह सोने का वरदान मांग लिया और विभीषण ने ब्रह्मा जी से भक्ति का वरदान मांगा तथा तीनों भाइ वरदान प्राप्त कर अपने घर लौट गए
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