रावण और मंदोदरी के विवाह की कहानी तथा लंका पर आधिपत्य


तिन्हहि देई वर  ब्रहम सिधाये हर्षित होय अपने घर आये,
मय दनुजा मन्दोदरी नाम परम सुन्दर नारि ललाम

Ramayan

अब तक हमने पढ़ा की भगवान ब्रह्मा किस तरीके से तीनों भाइयों रावण विभीषण और कुंभकरण को वरदान देते हैं तथा वरदान प्राप्त होने के पश्चात तीनो भाई अपने घर की ओर प्रस्थान करते हैं तो आइए इससे आगे अब हम रामायण में रावण परिवार की भूमिका जानेंगे 



राजा रावण के जन्म के विभिन्न विभिन्न ग्रंथों में भिन्न भिन्न प्रकार के उल्लेख मिलते हैं सभी ने अपने अपने अनुसार रामायण का विवरण किया है परंतु यदि हम वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण पद्मपुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण मैं कहा गया है कि हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकशिपु ही दूसरे जन्म में रावण और कुंभकरण के रूप में पैदा हुए | 


श्रीमान वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण में दिए गए विवरण के अनुसार रावण पुलस्त्य मुनि का पोता था यानी कि रावण पुलस्त्य मुनि के पुत्र विश्वश्रवा  का पुत्र था विश्वश्रवा की वरवर्णिनी और कैकसी नामक दो पत्नियां थी राजा रावण और उसका छोटा भाई कुंभकरण कैकसी के पुत्र हैं माना जाता है कि कैकसी ने एक अशुभ समय में गर्भ धारण करा इसी वजह से  उनको ऐसे पुत्र की प्राप्ति हुई


परंतु यदि आप तुलसीदास जी की राम चरित्र मानस में रावण के जन्म का विवरण पढ़ेंगे तो आप पाएंगे कि तुलसीदास जी के अनुसार रावण का जन्म एक शाप के कारण हुआ है वह नारद एवं प्रताप भानु की कथाओं को रावण के जन्म का कारण बताते हैं


कहा जाता है कि मय नाम का एक दानव था जिस की पुत्री का नाम मंदोदरी था मंदोदरी बचपन से ही बहुत ही समझदार ज्ञानी एवं सभी गुणों में संपन्न थी और क्योंकि मय दानव के पास ऐसी शक्तियां थी जिनकी मदद से वह भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में पता लगा सकते थे और इसीलिए मय दानव भी भलीभांति जानता था कि आने वाले समय में सभी राक्षसों का राजा रावण ही बनेगा इसीलिए मय दानव ने ऐसा सोचा कि क्यों ना मैं अपनी पुत्री मंदोदरी का विवाह रावण के साथ करा दूं और उसने ऐसा ही करा आने वाले समय में मय दानव ने मंदोदरी का विवाह रावण के साथ करा दिया और रावण भी इस बात से बहुत ही प्रसन्न था और अपने बाद रावण ने अपने दोनों भाइयों के भी विवाह करवा दिए इस प्रकार रावण और मंदोदरी का विवाह हुआ


कहा जाता है कि समुंद्र में एक त्रिकूट नाम का पर्वत था जिस महल का भगवान ब्रह्मा जी द्वारा   निर्माण किया गया था जिसको बाद में मय दानव ने फिर से सजा दिया सारे महल मैं सुंदर मणियों की स्थापना की गई जिससे महल अति सुंदर दिख रहा था कहते हैं कि महल इंद्रदेव की अमरावती से भी बहुत ज्यादा सुंदर है यह महल वह किला था जो देश में लंका के नाम से जाना जाता है 

रामायण में दिए गए विवरण के अनुसार कहा जाता है कि कुबेर देव को उनके पिता मुनि विश्रवा ने उनके रहने के लिए लंका प्रदान की कुबेर ब्रह्मा जी के भक्त थे उन्होंने ब्रह्मा जी की बहुत ही कड़ी तपस्या की उस तपस्या से भगवान ब्रह्मा प्रसन्न हुए और उन्होंने कुबेर देव को वरदान दिया कि वह उत्तर दिशा के स्वामी तथा धना अध्यक्ष बन जाएंगे और ऐसा ही हुआ और साथ ही ब्रह्मा जी ने कुबेर देव को मन की गति से चलने वाला पुष्पक विमान भी दे दिया था परंतु कहते हैं ना कि खुशियां कहां लंबे समय तक समय तक किसी के पास रुकती हैं मतलब राजा रावण  न  जब समस्त जगत पर विजय प्राप्त कर ली तो उसके पश्चात रावण ने कुबेर देव के ऊपर आक्रमण कर दिया कुबेर देव और रावण का बहन कर युद्ध चला और वहां पर भी रावण की विजय हुई और रावण ने अपनी विजय के पश्चात कुबेर देव को हराकर लंका पर अधिकार कर लिया और कुबेर देव का पुष्पक विमान भी छीन लिया यहां आप कह सकते हैं कि जीत लिया

कौत कही कैलास पुनि लिन्हेसि जाई ऊटाई
मनहू तोल निज वाहू बल चला बहुत सुख पाई

Ramayan

चलो आपको आज रावण की एक और कहानी बताता हूं कहते हैं एक समय की बात है जब रावण अपना बाहुबल आजमाने के लिए बहुत ही बेताब था रावण विश्व विजेता तो बन ही चुका था इंद्रदेव कुबेर देव समस्त देवता गणों को युद्ध में पराजित कर चुका था तो अब रावण ने अपना बाहुबल आजमाने के लिए क्या करा उन्होंने कैलाश पर्वत को उठाने की कोशिश करें और इस कोशिश में सफलता भी प्राप्त होनी ही थी आखिरकार वो रावण है और उन्हें सफलता भी प्राप्त हुई यह देख रावण बड़े हर्षित हुए कि उन्होंने कैलाश पर्वत को अपनी भुजाओं पर उठा लिया हालांकि इस कहानी के पीछे एक बहुत बड़ी कहानी है जो कभी फुर्सत से मैं आपको पूरी सुनाऊंगा और अपना बाहुबल आजमाने के पश्चात रावण वापस चला गया 





सुख संपत्ति सेना पुत्र नित्य बढ़ते जाते थे परंतु कुंभकरण इतना बोला था कि वह 6 महीने सोता और 6 महीने जगता लेकिन दिक्कत कुंभकरण के 6 महीने सोने से नहीं 6 महीने जगने से थी क्योंकि जब कुंभकरण 6 महीने जगता तो वह मांस मदिरा का सेवन करने में ही लीन रहता भोजन करने की सीमा कुछ ऐसी की समस्त संसार में भुखमरी फैल जाए वह पशु पक्षी सब को खा जाता था 

रावण के पास ऐसे बलवान योद्धा थे जिनकी प्रशंसा करना असंभव है यह योद्धा बहुत ही बलवान विशाल शरीर और दिव्य शक्तियों वाले थे जैसा कि आप सब जानते होंगे कि रावण का एक पत्र भी था जिसका नाम मेघनाथ था इस पूरे संसार में ऐसा माना जाता है कि मेघनाथ का मुकाबला कोई नहीं कर सकता था  मेघनाथ के अलावा भी ऐसे अन्य योद्धा थे जैसे कि वज्रदंत, धूम्रकेतु. आतीकाद  जो पूरे संसार को अकेले ही जीतने का सामर्थ्य रखते थे 


सभी राक्षसों के पास ऐसी दिव्य शक्तियां थी जिसकी मदद से हुआ है जो मर्जी रूप धारण कर सकते थे   एक बार की बात है रावण अपने समस्त परिवार के साथ अपनी सभा में बैठा हुआ था और वह अपने परिवार की ओर देखता है और बोलता है मेरे परिवार वालों हम संख्या में अनगिनत हैं यह याद रखना देवता हमारे शत्रु हैं और रावण बोलता है की यज्ञ कथा हवन जो भी कोई करें उसमें विघ्न डालो  उनको मारो और यहां से उसने साधु संतों पर अत्याचार करने की शुरुआत कर दी और समस्त देवता बंदी बना लिए जिसने रावण की बात माने उसको शर्त अनुसार छोड़ दिया बाकी सभी को कारागार में डाल दिया  बचे कुचे देवताओं को मेघनाथ ने बंदी बना लिया और जो शेष रह गए वह पहाड़ों में छिप गए   


समस्त संसार की हालत कुछ ऐसी हो गई कि वेद पुराण कथा हवन यज्ञ पूरे संसार में सुनने वाला कोई नहीं मिलता था अगर रावण को पता चले कि कहीं कुछ ऐसा कार्य हो रहा है तो स्वयं जाकर नष्ट कर देता था


जो भी कुछ अत्याचार उस समय राक्षसों द्वारा किए गए उनका विवरण सहज नहीं किया जा सकता हिंसा पाप ही जिन की कार्यशैली है उनके पापों का क्या ठिकाना ऐसे ही पृथ्वी पर पाप बहुत ज्यादा बढ़ गए और सब देव भयभीत होने लगे 


बरनिन जाई अनीति घोर निशाचर जो करहि ;
हिंसा पर अति प्रति तिन्ह को पापहि कवन मिति

Ramayan

आज हमने जाना कि रावण का जन्म कैसे हुआ मंदोदरी से रावण का विवाह के बारे में हमने जाना और साथ में जाना रावण की सोच जो दिखती थी वह कैसी थी तथा राक्षसों की प्रवृत्ति को समझा आगे की कहानी जल्दी आपके सामने प्रस्तुत की जाएगी तब तक जुड़े रहिए मेरे साथ 


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ