Ganesh Visarjan Kyu Kiya Jata Hai
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
मेरे प्यारे साथियों अक्सर आप लोग अपने आसपास श्री गणेश भगवान जी की मूर्ति का विसर्जन होते देखते होंगे तो शायद आपके मन में भी यह प्रसन्न उत्पन्न होते होंगे कि आखिर गणेश विसर्जन क्यों किया जाता है तथा इसका क्या महत्व है तो आज हम इसी के ऊपर चर्चा करेंगे और जानेंगे कि गणेश विसर्जन क्यों और किस लिए महत्वपूर्ण है और इसकी क्या विशेषताएं हैं
गणेश उत्सव क्यों मनाते हैं ganesh utsav kyu manaya jata hai
वैसे तो समस्तसंसार पार्वती नंदन गणेश को जानता है चाहे वह देवी हो या देवता सभी उनके नाम से परिचित हैं और हिंदू धर्म में ऐसी भी मान्यता है कि किसी भी अच्छे काम की शुरुआत गणेश जी का नाम लिए बिना नहीं करनी चाहिए श्री गणेश भगवान सभी दुखों और कष्टों को हरने वाले हैं इसीलिए किसी भी अच्छे कार्य की शुरुआत करने से पहले सर्वप्रथम गणेश भगवान की प्रार्थना की जाती है ताकि आने वाले किसी भी बिगन को गणेश भगवान हर लें तथा सभी कार्य कुशल मंगल हो
अब बात आती है की गणेश विसर्जन जो संसार के अलग-अलग हिस्सों में और भारत में महाराष्ट्र नामक क्षेत्र में तथा अन्य राज्यों मेंबहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है तो आखिर गणेश जी का विसर्जन करा क्यों जाता है तो इसका जवाब आपको वेदोऔर पुराण से मिलता है वेदों के अनुसार भादो मास की चतुर्थी शुक्ल पक्ष में ऋषि वेदव्यास जी ने महाभारत की रचना की थी
वेदव्यास जी बोलते जा रहे थे और गणेश जी अपनी कलम से महाभारत लिखते जा रहे थे कहते हैं कि ऋषि वेदव्यास जी की बोलने की गति इतनी अधिक थी कि गणेश जी के अलावा कोई और इतना सामर्थ्यवान नहीं था कि वह वेदव्यास जी द्वारा कथित महाभारत को लिख पाता
यही कारण था की महाभारत लिखने के लिए गणेश जी को बुलाया गया कहते हैं जब वेदव्यास जी ने बोलना शुरू करा और गणेश भगवान जी ने महाभारत लिखने की शुरुआत करी तो वह कार्य निरंतर 10 दिनों तक चला जिससे गणेश जी का शरीर इतना तप गया था कि ऋषि वेदव्यास जी ने गणेश जी को सरोवर में डुबकी लगवाई यानी स्नान करवाया तब जाकर उनके शरीर का ताप मान सामान्य हुआ था
तब से हिंदू धर्म में गणेश विसर्जन की प्रथा है परंतु आज भी भारत वर्ष के अंदर आप देखेंगे कि इस घटनाक्रम को लेकर लोगों की अपने-अपने विचार हैं पर मुझे जो मिला पढ़ने को वह मैंने आपके साथ यहां सांझा करें
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
हिंदी अर्थ
वक्रतुण्ड: घुमावदार सूंड
महाकाय: महा काया, विशाल शरीर
सूर्यकोटि: सूर्य के समान
समप्रभ: महान प्रतिभाशाली
निर्विघ्नं: बिना विघ्न
कुरु: पूरे करें
मे: मेरे
देव: प्रभु
सर्वकार्येषु: सारे कार्य
सर्वदा: हमेशा, सदैव
घुमावदार सूंड वाले, विशाल शरीर काय, करोड़ सूर्य के समान महान प्रतिभाशाली।
मेरे प्रभु, हमेशा मेरे सारे कार्य बिना विघ्न के पूरे करें (करने की कृपा करें)॥
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