गुरु वशिष्ट की सहमति से सभी मंत्री सुमंत नगर की सारी प्रजा खुश है सभी राम के राज तिलक की तैयारी में लग जाते हैं
मंत्री मुदित सुनतप्रिय वानी अभिमत विरव परेअजनू पानी
Ramayan
विनती सचिव करहि कर जोरी जिअहु जगतपति वरष करोरी
राजा दशरथ की इस मधुर वाणी को सुनते ही मंत्री ऐसे आनंदित हुए उनके मन में उग रहे सूखे पौधे को पानी मिल गया हो मंत्री हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं
कि राजन हे जगत पिता आप हजारों साल जियो आपने जगत का मंगल करने वाला कार्य किया है ऐसा काम कोई सिद्ध पुरुष महात्मा ही कर सकता है राजन जल्दी कीजिए देर ना लगाइए मंत्रियों की आवाज सुनकर राजा दशरथ प्रसन्न हुए जैसे डूबे हुए को तिनके का सहारा मिल जाता है
राजा ने कहा जैसे गुरु वशिष्ट कहें वैसा करें तभी गुरु वशिष्ट ने कहा संपूर्ण श्रेष्ठ तीर्थों का जल लाए फिर औषधि फूल फल लाने को मंगल वस्तुओं के नाम बताएं
बेद विदत कहि सकत निधाना कहेऊ रचऊ पुर विविध विताना
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सफल रसाल पुंगफल केरा रोप हूं विथिन्ह पुर चहूँ फेरा
गुरु ने वेदों में कहा हुआ सब विधान बताकर नगर में बहुत से मंडप सजवाए फल सुपारी केले के पेड़ नगर के चारों तरफ लगवा मुनीश्वर ने जिसको जिस काम के लिए कहा उसने वह काम शीघ्र कर दिया राजा ब्राह्मण साधु सभी देवताओं को पूछ रहे हैं सभी मंगल कार्य हो रहे हैं दोनों भाई एक दूसरे से बात कर रहे हैं कि इस कार्य से भारत के आने के संकेत मिल रहे हैं उनको मामा के घर गए काफी दिन हो गए हैं
राम को भारत के सम्मान जगत में कौन प्यारा है राम को भाई भरत की दिन रात याद आती है जैसे कछुए का मन अंडो में रहता है महलों में जब यह समाचार पहुंचा तो खुशी की लहर फैल गई माता उन्हें समाचार देने वालों को आभूषणों से मालामाल कर दिया
राज राज अभिषेक सुनि हिय हरषे नर नारि
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यगे सुमंग्गल सजन सव विधि अनुकूल विचारि
रामचंद्र जी का राजतिलक होगा यह सुनकर सभी नगर वासी हृदय में हर्षित हो उठे और भगवान को अपने पर मेहरबान समझकर नगर की शोभा बढ़ाने में लग गए
तब राजा ने वशिष्ठ जी को बुलवाया और शिक्षा के लिए राम के पास महलों में भेजे, प्रभु राम ने गुरु जी को आते देखा तो दौड़कर दरवाजे पर आए गुरु जी के चरणों में शीश नवाया गुरु जी को आदर पूर्वक घर में लाएं और पूजा वंदना करके उनका सत्कार किया फिर सीता सहित उनके चरण स्पर्श किए कमल जैसे हाथ जोड़कर श्री राम बोले यद्यपि सेवक के घर स्वामी का आना दुखों का नाश करने वाला होता है परंतु है नाथ ठीक तो यही था प्रेम पूर्वक दास को ही कार्य के लिए भेजते
गुरु वशिष्ठ राम के मीठे वचनों को सुनकर उनकी प्रशंसा की और कहा राम आप सब का आदर करना भली-भांति जानते हैं आप सूर्यवंशज जो हैं राम का बखान कर मुनिराज बोले राजा दशरथ ने राज्य अभिषेक की तैयारी की है और वह आपको युवराज पद देना चाहते हैं राम आज आप उपवास हवन आदि विधि पूर्वक करें जिससे भोलेनाथ इस कार्य को कुशलता पूर्वक कर दें गुरुजी शिक्षा देकर राजा दशरथ की और चले गए
रामचंद्र के मन में इस बात का दुख हुआ कि हम सभी भाई साथ साथमें पड़े खेले शिक्षा प्राप्त की विवाह आदि सब साथ-साथ हुए पर इस निर्मल वंश में एक परंपरा गलत है कि राजा बड़े को बनाया जाता है
तेहि अवसर आये लखन मगन प्रेम आनन्द
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सनमाने प्रिय वचन कहि रघुकुल केरवचन्द
उसी समय मन में खुश होते हुए लक्ष्मण जी आए प्रभु राम ने प्रिय वचन कह कर उनका सम्मान किया
नगर में बाजे बज रहे हैं नगर की गति का बखान नहीं किया जा सकता सब लोग भरत जी के आने की खुशी मना रहे हैं अयोध्या नगरी में चारों तरफ यही चर्चा है कि कल का लग्न मुहूर्त कितने समय में है जब भोलेनाथ हमारी मनोकामना पूर्ण करेंगे
जब सीता सहित श्री रामचंद्र जी सोने के सिंहासन पर विराजमान होंगे और हमारा मन प्रसन्न होगा अयोध्या नगरी देवों की नगरी की तरह स्वाभिमान लग रही थी
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