धनुष टूटने की आवाज सुनकर परशुराम जी का स्वयंवर में आना dhanush totane kiavaj sunakar parashuraam jee ka svayanvar mein aana


अति रिस बोले वचन कठोरा कहु जड़ जनक धनुष किन तोरावेग दिखाई मूढ नत आजू उलटऊ महि जहं लागे तब राजू

Ramayan

परशुराम बहुत क्रोध में थे उनके क्रोध का कोई ठिकाना ना था परशुराम राजा जनक से बोले राजा शीघ्र बताओ यह धनुष किसने तोड़ा है वरना जहां तक तेरे राज्य की सीमा है मैं वहां तक की सारी पृथ्वी को पलट दूंगा


राजा जनक को भय लगने लगा जिसके कारण उत्तर नहीं दे सके यह देख कर कुटिल राजा बड़े खुश हुए वो यही तो चाहते थे कि स्यंवर में बाधा आए नगर के नर नारी मुनि देव सब सोच रहे थे 

अब क्या होगा जनकपुर की प्रजा में शोक छा गया सभी देवगुरु डरने लगे सीताजी की माता सोचने लगी हे महादेव यह क्या हो गया है गिरजापति शंकर आप तो दयालु हैं दीनों के दुख हरने वाले हो प्रभु कुछ करो वरना बनी बनाई बात बिगड़ जाएगी परशुराम जी का स्वभाव जानकर सीता जी का संयम कल्प के समान बीतने लगा


समय विलोके लोग सब जनिजानकी भीर
मन न हरषु विषादु कछु बोले श्री रघवीर

Ramayan

जब श्री राम ने देखा जनकपुर की प्रजा भयभीत हो रही है और सीता जी को भी भयभीत मानकर बोले और उनके मन में ना कोई प्रसन्नता थी ना कोई दुख था

नाथ शम्भू धनु भज्जन हारा लोहि कोई एक दास तुम्हारा
आयसू काह कहिय किन मोही सुनि रिसाई बोले मुनि कोही

Ramayan

तब कृपा निधान श्री राम बोले हे नाथ शिव जी के धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही दास होगा और आपके मन में जो भी विचार हो हमें बताएं


यह सुनकर  मुनि खिसिया कर बोले हे राम सुनो सेवक वह है जो सेवा का काम करें जिसने शिव के धनुष को तोड़ा है वह सहस्त्रबाहु के समान मेरा दुश्मन है वह इस समाज को छोड़कर चला जाए नहीं तो यहां पर जितने भी राजा बैठे हुए हैं सब मेरे हाथों मारे जाएंगे मुनि के वचन सुनकर लक्ष्मण मुस्कुराये और परशुराम का अपमान करते हुए बोले


बहु धनुही तोरी लरकाई कबहु न असि रिस किन्ह गोसाई
ऐही धनु पर ममता केहि हेतू सुनि रिसाई कहे भ्रगकुकेत

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हे गुसाई हमने बचपन में बहुत से धनुष तोड़े हैं लेकिन आपने ऐसा गुस्सा पहले कभी नहीं किया फिर इस धनुष में इतनी ममता क्यों है यह सुनकर परशुराम बड़े ही क्रोध में कहने लगे हे राजा के लड़के मौत सामने खड़ी हो तो तुझे बोलने में डर नहीं लगता सारे संसार में व्याख्यात ये धनुष क्या तुझे धनुही के समान लगता है


हमारे लिए सभी धनुष एक समान हैं पुराने धनुष को तोड़ने में क्या लाभ क्या हानि श्री रामचंद्र जी के छूने मात्र से ही यह धनुष टूट गया तो इसमें रघुनाथ जी का क्या दोष आप बिना कारण इतना क्रोध क्यों दिखा रहे हैं 

परशुराम फरसा की तरफ देखकर बोले तूने मुझे नहीं जाना मैंने पृथ्वी को कितनी बार राजाओं से रहित कर दान में दे दी


इन्हि कुम्हड बतीया कोऊ नाही जे मरजा हीदेखि कुठारूसरासन वाना मे कछु कहा सहित अभिमाना


यहां कोई बेल पर लगा हुआ फल नहीं है जो उंगली दिखाई तो ही मर जाता है मैंने आपके पास फरसा धनुष बाण देखकर अहंकार से कहा लेकिन रघुवंशी कभी भी देवता गो ब्राह्मण स्त्री पर क्रोध नहीं दिखाते क्योंकि इन को मारने से पाप लगता है
आपका एक - एक वचन ही करोड़ों वज्र के समान है फिर धनुष बाण और फरसा रखने की क्या आवश्यकता है परशुराम बोले हैं विश्वामित्र इस बालक को समझाओ यह क्यों मेरे हाथों मरना चाहता है यह मूर्ख और निडर है


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