राजा जनक जी के बुलावे पर राम-लक्ष्मण गुरुजी के साथ धनुष यज्ञ शाला देखने जाते हैं : Hindi Ramayan

सतानन्द तब जनक बुलाए : कोशिक मुनि पहि तुरत पठाए ।

जनक विनय तिनह आई सुनाई हरषे बोल लिऐ दोऊ भाई ॥

Ramayana


राजा जनक जी ने शातानन्द जी को अपने पास बुलाया और उनसे कहा आप जाओ और गुरुजी विश्वामित्र जी से कहना कि हमारी उन से विनती है कि राम लखन दोनों भाइयों सहित यज्ञशाला में दर्शन देकर हमें कृतार्थ करें

तब मुनि ने दोनों भाई श्री राम एवं लक्ष्मण को अपने पास बुलाया तब दोनों भाई आए और शातानन्द जी को नमन करके प्रभु श्री राम जी गुरुजी के पास बैठ गए थोड़ी देर के पश्चात मुनि विश्वामित्र कहने लगे हे राम और लक्ष्मण हमें राजा जनक ने धनुष यज्ञ में आप दोनों के साथ आने के लिए प्रस्ताव भेजा है 

गुरु विश्वामित्र जी राम जी को बताते हैं कि राजा ने अपनी पुत्री सीता जी का स्वयंवर कर रहे हैं और हमें चलकर स्वयंवर देखना चाहिए और देखते हैं भगवान किस को बड़ाई देते हैं तभी लक्ष्मण जी बोले हे नाथ जिस पर आपकी कृपा होगी वही बड़ाई का पात्र बनेगा  

लक्ष्मण जी की सुंदर मधुर वाणी सुनकर गुरुजी मुस्कुराए ओर सभी ने आशीर्वाद दिया और  मुनि के साथ दोनों भाई यज्ञशाला देखने चल दिये  


रंग भूमि आये दोऊ भाई असिसुधि सब पुरवासिन्ह पाई।
चले सकल ग्रह काज विसारी बाल जुवान जरठ नर नारी ॥

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दोनों भाई गुरुजी के साथ धनुष यज्ञ देखने जब यज्ञशाला पहुंचे तो यह खबर नगर वासियों को पता चली और सभी नगर वासी उनको देखने पहुंच गए जब जनक ने देखा की भीड़ ज्यादा हो गई है तो राजा ने अपने मुख्य लोगों को कहा कि जाओ और सब को बैठने की व्यवस्था करो 


कहि मृदू बचन विनितः तिन्ह बेठारे नर नारि l
उत्तम मध्यम नीच लघु निज निज थल अनुहारि॥

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राजा के सेवकों ने मीठे मधुर वचन बोलकर सबको अपने-अपने योग्य स्थानों पर बैठा दिया और कुछ समय पश्चात गुरु वशिष्ट समिति श्री राम एवं लक्ष्मण भी वहां पहुंच गए दोनों भाइयों को देखने वाली प्रजा बहुत बड़ी संख्या में उमड़ पड़ी दोनों भाइयों के सुंदर श्याम शरीर हैं दोनों भाई उत्तम वीर हैं 

वह राजाओं के समाज में ऐसे सुशोभित हो रहे हैं जैसे तारों के बीच में दो चंद्रमा दिखाई दे रहे हो वो कहते हैं ना जिसकी जैसी भावना थी प्रभु ने उनको ऐसे ही दर्शन दिये 

यज्ञशाला में बड़े-बड़े राजा बैठे हुए थे लेकिन दोनों भाइयों को देख सभी अचंभित और कुछ भयभीत  हो गए और उनको लगा कि इनमें भगवान की छवि दिखाई दे रही है और राजाओं के बीच कुछ राक्षस बैठे हुए थे जो राजाओं का भेष बना कर बैठे हैं उनको प्रभु राम काल के समान दिखाई दे रहे हैं और नगर वासियों ने उन का ऐसा रूप देखा जो आंखों को बहुत ही सुख देने वाला था


राजा जनक समेत सभी रानियां उन्हें अपने बच्चों के सामान देख रहे हैं उनकी प्रति की वर्णन नहीं की जा सकती 


सभी योगियों को दोनों भाई परब्रह्मा के रूप में दिख रहे हैं हरि भक्तों दोनों भाइयों को सुख देने वाले प्रभु के रूप में देखा जिनके दर्शन मात्र से ही जीवन की सभी अभिलाषा है पूर्ण हो जाती हैं तथा मनुष्य को अनंत सुख की प्राप्ति होती है


सीता माता श्री राम जी को जिस भाव से देख रही हैं और माता गिरजा भवानी से प्रार्थना कर रही हैं हे माते मेरी मनोकामना पूर्ण करना माता भवानी आपकी जय हो

जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी: समीक्षा

तुलसीदास जी द्वारा लिखित इस चौपाई का अर्थ है जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी अर्थात जिसकी जैसी दृष्टि होती है, उसे वैसी ही मूरत नज़र आती है। 



"इसी प्रकार यज्ञशाला में प्रभु श्री राम की छवि सबको वैसे ही नजर आए जैसी भगवान की छवि उनके मन में थी 
और राक्षसों के लिए भगवान काल का रूप से इसीलिए उनको श्रीराम में उनका काल नजर आया नगर की प्रजा के मन 
में श्री हरि अनंत सुख की प्राप्ति कराने वाले भगवान के रूप में विराजमान थे इसीलिए उनको प्रभु हरि की छवि आनंद
सुख देने वाले भगवान के रूप में दिखाई दे उसी प्रकार दिन-रात जप तप करने वाले योग योग को श्रीराम में परब्रह्मा 
की मुहूर्त नजर आई यही प्रभु की लीला है जैसा आप भगवान हरि का अपने मन में ध्यान करेंगे वैसे ही आपको भगवान 
की मूरत दिखाई देगी यह चौपाई आज के युग से पूर्ण तरह विपरीत है अब जब मनुष्य अंधभक्ति में विलुप्त जा रहा है 
उसे यह समझने की जरूरत है"

अगर मैं आपको संक्षिप्त रूप में बताऊं तो समस्त नगरवासियों राजाओ एवं रानियों को कौशल्याधीश श्री राम कुछ ऐसे दिखाई दे रहे थे जैसे श्री हरि जो तीन लोकों के स्वामी हैं साक्षात उस यज्ञशाला में विराजमान हो 


प्रभु श्री राम को देखकर वहां उपस्थित सभी राजा मन ही मन कुछ इस तरह हार गए जैसे चंद्रमा के प्रकाश मान होने पर तारे छुप जाते हैं समस्त राजा आपस में चर्चा कर रहे हैं कि मानो मत मानो पर इस धनुष यज्ञ में विजेता राम ही बनेंगे यह हमें भी विश्वास है


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