sita mata ke janam ki kahani सीता माता के जन्म की कथा गुरु विश्वामित्र द्वारा : Hindi Ramayana

sita mata ke janam ki kahani 


गुरु विश्वामित्र जी प्रभु श्री राम वह लक्ष्मण जी दोनों भाइयों को सीता माता के जन्म की कहानी विस्तृत रूप से बताने लगे गुरु विश्वामित्र जी बोलते हैं हे राम यह बहुत ही अनोखी गाथा है  इसलिए इसे ध्यान पूर्वक सुने

जब दश कन्धर ने सुर जीते धर्म मार्ग खल कीन्हेसि रीते।
तामस अहंकार तन करेऊ यज्ञ दान तम धर्म न रहेऊ ॥

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जब रावण ने देवताओं को जीतकर अखंड राज्य किया तभी धर्म के सभी रास्ते बंद कर दिए और अहंकार मैं भरकर यज्ञ दान तप करने का मार्ग भी भुला दियातब राक्षसों को बुलाकर रावण ने कहा कि हे राक्षसों जितने भी ऋषि मुनि साधु तप यज्ञ करने वाले हैं उन सब से राज्य का कर लाओ रावण के मुख से यह वचन सुनते ही बहुत से राक्षस तपो भूमि मैं गए वहां पर जितने भी तपस्वी तप कर रहे थेऔर उनसे बोले तुम सभी को राज्य कर देना होगा

कहत कटक निश्चर वचन ये रावण का राज । 
खून काढ सब ने दियो डर कर शाधु सामाज ॥

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और दुखदाई शब्द बोलते हुए कहते हैं यह रावण का राज है  सभी साधु संत राक्षसों से डरकर अपने शरीर से खून निकाल कर देते हैं  और राक्षसों से कहते हैं


लो यह निश्चर कुल घालक हरि भक्त सतसंगहि पालक ।
हो दुस्काल जहां घट रहहि : श्राप भयंकर संतन कह ही ॥

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भगवान शिवजी कहते हैं हे पार्वती तपस्वीयो को क्रोध आया और वह कहने लगे, संतो की बात कभी झूठी नहीं होती है हे राक्षसों यह घड़ा हमारे खून का है यह निश्चरो के कुल का नाश करने वाला है और भक्तों के कुल का हित करने वाला होगा और जहां यह है रहेगा वहीं अकाल पड़ेगा और तुम्हारा नाश करेगा निरचरो ने सारा हाल लंका के राजा रावण को बतला दिया तब रावण हंसकर बोला अच्छा तो यह बात है तो ऐसा करो हमारा एक दुश्मन है जनकपुर का राजा जनक उसके राज्य की सीमा में इस घड़े को गाढ़ दो यह सुनकर राक्षस बड़ी प्रसन्नता के साथ चल दिए 


शिव जी कहने लगे हे पार्वती राजा जनक के राज्य में घोर अकाल पड़ गया जिसकी वजह से राजा जनक की प्रजा डर गई यह सब देख राजा जनक अति व्याकुल हुए और यह सब देखने के बाद राजा जनक ने साधुऔ की आज्ञा से राजा और रानी दोनों ने मिलकर एक सोने का हल चलाया तभी हल की नोक पर एक घड़ा टकरा गया जिसमें से सुंदर कन्या निकली और कन्या को देख कर राजा रानी अति प्रसन्न हुए और नगर मै चारों और खुशियां मनाई गई और विधि विधान से कन्या का नाम सीता रखा गया है राम तुम जिस नगर को देख कर आय हो उसी राजा की कन्या, जिसका नाम सीता है वह अत्यंत रूपवती गुणों की खान है



रात बीतने पर दोनों भाई श्री राम व लक्ष्मण सेवा निर्वित व स्नान करके गुरु के पास गए उनके चरण कमलो में शीश नवाकर गुरु जी की पूजा के लिए पुष्प लाने की आज्ञा लेकर दोनों भाई वाटिका में चल गये दोनों भाई श्री राम और लक्ष्मण वाटिका में पुष्प तोड़ने लगे




शिव जी कहते हैं पार्वती वहां का नजारा बड़ा ही आनंद देने वाला था क्योंकि सीता जी आप की पूजा करने आपके यानी भवानी के मंदिर गई थी वहां उनकी भेंट प्रभु श्रीराम से हुई साथ में लक्ष्मण भी थे दोनों ने एक दूसरे को देखा दोनों का मन बहुत ही प्रसन्न था पर जब सीता जी के मन में पिता की धनुष यज्ञ की प्रतिज्ञा याद आई तो डर गई और राम जी की छवि निहार कर मंदिर गई माता भवानी की पूजा की तो माता ने आशीर्वाद दिया 

हे सीता नारद की वाणी सत्य होगी जो आपके मन में है हे पुत्री वही आपका पति होगा और सीता जी के गले में माला भवानी देवी ने आशीर्वाद के रूप में डाल दी और सीता जी दासियों के साथ महल चली गई उधर दोनों भाई राम लक्ष्मण गुरुजी के पास पहुंचे और गुरुजी को फूल दिए फिर गुरुजी ने पूजा की फिर दोनों भाइयों को अनेकों कथाएं सुनाई  और संध्या की पूजा करने के पश्चात उन्होंने विश्राम किया सुबह उठ कर नहा धोकर श्री राम और लक्ष्मण जी गुरुजी के पास गये और गुरु जी की वंदना की फिर उनके पास ही बेठ गये  


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