कार्तिक मास का महत्व व व्रत कथा kaartik maas ka mahatv va vrat katha


 प्रिय दोस्तों आप सभी को उमाशंकर वशिष्ट परिवार की ओर से राधे राधे
 प्रिय दोस्तों आज में आपको कार्तिक मास के महत्व बारे में व इसकी कथा बताना चाहता हूँ,



कार्तिक मास का इतना महत्व क्यों है।





जिस प्रकार संसार की समस्त नदियों में श्रेष्ठ गंगा मैया है। और सभी युगों में सर्वश्रेष्ठ युग सतयुग है। उसी प्रकार बारह मासों में सर्वश्रेष्ठ मास कार्तिक मास है।
कार्तिक मास को अनेको नामों से जाना जाता है। इस कार्तिक मास को विजयमास व भक्तों का मास भी कहा जाता है। तथा इसी कार्तिक मास को दमोदर मास के नाम से भी कई जगहों पर जाना जाता है।





शिवपुत्र कार्तिक ने जिस माह में तडकासुर का वध किया उसी माह को कार्तिकमास.नाम दिया गया


इस माह की अधिष्ठात्री स्वयं राधा रानी है राधा एक महाशक्ति है। जो विष्णु भगवान की भक्ति करने में सहायता करती है। अर्थात कार्तिक मास. में जो राधा रानी की उपासना करते उन्हें राधा, रानी के साथ-साथ कृष्णा की भक्ति प्रदान होती है।


शिव पार्वती से कहते है। विष्णु भगवान के अवतारों की जो उपासना करते है विष्णु भगवान उनसे अधिक प्रसन्न होते है 


कार्तिक मास के व्रत kaartik maas ke vrat



बिना माला के राधे नाम का जाप करना
दूसरा व्रत इस माह में संसारी चिंतन मन में ना लाना सिर्फ केवल राधे कृष्ण की कथा भागवत भजन आराधना करनी 
तीसरा हरि नाम का कीर्तन करना है










कार्तिक मास की कथा 


एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी और वह कार्तिक माह का व्रत रखती थी 


जब वह रोजाना पूजा करके आती तो उसे एक कटोरा खिचड़ी रखा मिल जाता वह कटोरा रोजाना कृष्ण भगवान उस बुढ़िया के लिए रखे जाते थे यह नियम रोजाना इसी तरह चलता रहा एक दिन पड़ोस की एक औरत आई उसने देखा बुढ़िया के घर में कोई और काम करने वाला नहीं है बुढ़िया अधिक गरीब है पर खिचड़ी का कटोरा कहां से आ जाता है 1 दिन बुढ़िया गंगा जी पर गई थी बाद में वह औरत आई उसने खिचड़ी का कटोरा उठाया रास्ते की तरफ फेंक दिया जहाँ कटोरा फेका वहां पर दो फूल के पौधे उग गए


1 दिन राजा वहां से जा रहा था उसको फूल पसंद आए और उनको तोड़कर उसने अपनी रानी को दे दिए कुछ समय बाद राजा के 2 पुत्र पैदा हुए


 उधर जब बुढिया लौटकर आइ तो खिचड़ी का कटोरा ना मिला तो वह बोलने लगी कहां गई मेरी खिचड़ी कहां गया मेरा कटोरा और अपने मन को समझा कर भूखी ही सो गई राजा के दोनों पुत्र बड़े हो गए 



वह बुढ़िया जब  पूजा करने के बाद आती तो उसको कटोरा व उसमें खिचड़ी ना मिलती तो रोजाना बोलती कि कहां गया मेरा कटोरा और कहां गई मेरी खिचड़ी एक दिन राजा के दोनों पुत्र उस रास्ते से निकल रहे थे तभी बुढ़िया बोलने लगी कहां गया मेरा कटोरा कहां  गई मेरी खिचड़ी  तब राजा के दोनों पुत्र बोले हम हैं तेरे खिचड़ी हम हैं तेरे कटोरा तब दोनों पुत्रों ने बुढ़िया को खिचड़ी कटोरे की सारी बात बताई उधर राजा को पता चला मेरे पुत्र किसी से बात नहीं करते फिर बुढ़िया से कैसे बोलते हैं तब राजा ने उस बुढ़िया को बुलाया और कहा यह किसी से नहीं बात करते फिर तुमसे कैसे बात करते हैं तब बुढ़िया ने बताया कि मैं कार्तिक मास का व्रत रखती हूं भगवान कृष्ण रोजाना मुझे खिचड़ी का कटोरा दे जाते थे





1 दिन में स्नान करने गई वापस आई तो खिचड़ी का कटोरा नहीं मिला तो मैं रोजाना कहती थी कहां गई मेरी खिचड़ी कहां गया मेरा कटोरा  तब यह दोनों बोलते हम है तेरा कटोरा हम है तेरी खिचड़ी उन्होंने बताया एक औरत ने तेरी खिचड़ी का कटोरा फेंक दिया था वहां पर दो फूल के पौधे उगे उनको राजा तोड़ कर ले गया राजा ने रानी को वह फूल दिए और रानी ने उन्हे सूंघा तो हम 2 पुत्र पैदा हुए अब यह दोनों कहते हैं हम दोनों तेरी सेवा करने को आए हैं भगवान कृष्ण ने हमें भेजा है तेरी पूजा और सेवा करने के लिए 



राजा गुड़िया को अपने साथ अपने महल में ले गया वह उसकी पूजा और सेवा की तोहे कार्तिक भगवान जैसे बुढ़िया की रक्षा की ऐसे ही सारे संसार की रक्षा करना तो यह भी कार्तिक माह की कथा


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