Laxman Parshuram Samvad Umashankar Vashistha मुनि विश्वामित्र परशुराम से क्या बोले लक्ष्मण परशुराम संवाद

Laxman Parshuram Samvad 

कौसिक कहा छमिअ अपराधु बाल दोष गुन गनहिन साधू
करि कुठार मे अरुकन को ही आगे अपराधी गुरू द्रोही

Ramayan

गुरु विश्वामित्र जी  मुस्कराकर बोले शाधू लोग बालको के गुण दोष नही देखते अर्थात आप इन को क्षमा कर दीजिय. परशुराम जी बोले एक तो मुझे क्रोध आ रहा है । 

और तेज धार का फरसा जो किसी को माफ नही करता और ये गुरू का दुस्मन मेरे सामने खड़ा है । हे मुनि विश्वामित्र तुम्हारे नम्र निवेदन की वजह से मे इसे जीवित छोड़ रहा हूं नही तो तेज धार के फरसे से कब का मार कर गुरू के रिण से मुक्त हो जाता !

यहा पर ऐसा उदाहरण आपको बताता हूं शायद आपने नही सुना होगा। यहा पर परशुराम ने कहा हैं कि गुरु रिण से मुक्त हो जाता  एक बार परशुराम जी ने शिवजी से कहां है

 गुरू सेवक को कोई सेवा बताओ तब शिवजी ने मना कर दिया इस समय मुझे कोई सेवा नही चाहिये । परशुराम जी ह्ठ पूर्वक बोले मे तो सेवा करना चहता हूं तब शिवजी न कहा तो ठीक हैं। तो जाओ शेष नाग जी का शीश काट कर ले आओ जिसको मे अपनी माला मे धारण करूंगा 


तभी परशुराम जी बोले थोडे ही परिश्रम से आज गुरू के रिण से मुक्त हो जाता 


तब विश्वामित्र हंस कर कहने लगे मुनि परशुराम को हरा ही हरा सुझ रहा है । किन्तु ये लोहे की खाड है। घास फूंस की खाड़ नही जो मुह मे लेते ही घुल जाये मुनि वर क्यो नही समझ रहे ये कोने है। इन को मन की आखों से पहचानो 


कहेऊ लखन सुन शील तुम्हारा को नही जान विदित संसारा
माता पितहि अपृण भये नीके गुरू रिण रहा सोच बड जीके 

Ramayan

तब लक्ष्मण कहने लगे है मुनि आपके शील को कौन नही जानता संसार मे व्यख्यात है। अब गुरु कारिणशेष रह गया जिसके बारे मे आप सोच रहे हो लक्ष्मण जी के वचन सुनकर परशुराम ने फरसा सम्भाला तभी सारी सभा हाय हाय करके शोर मचाने लगी तब लक्ष्मण जी बोले हे 

मुनिवर मे आपको ब्राह्मण समझ के बचारहा हूँ लगता है आपका सामना किसी भी लडाई के मैदान में किसी रघुवंशी से नही हुआ वरना इतना नही बोलते

तब श्री राम चन्द्र जी ने लक्ष्मण को रोक दिया और लक्ष्मण के वचनो से क्रोधित परशुराम से राम मधुर वचन बोले हे नाथ बालक पर क्रोध ना करे यादि ये आपका कुछ भी प्रभाव जानता तो क्या ये ना समझ आपकी बराबरी करता .. राम जी के वचन सुनकर परशुराम का कोध शान्त हुआ लक्ष्मण जी बोले है मुनि क्रोध पाप का मूल है। जिसके वश मे होकर मनुष्य अनुचित कार्य करने लगता हैं। ओर आपना खुद का नास कर लेता है


राम चन्द्र जी कहने लगे है मुनि मे आपका दास हूँ। और आप जानते है क्रोध करने से क्या टूटा हुआ धनुष ठीक हो सकता है। मुनि वर आपको खड़े खड़े काफी देर हो गयी हे! क्रपया करके बेठ जाइये जनकपुर की जनता कांप रही है। लक्ष्मण जी की वानी से मुनि पुरसुराम जले जा रहे थे। राम जी का ईसारा पाते है लक्ष्मण गुरू विस्वामित्र के पास जा बैठे राम दोनो हाथ जोडकर मिठी वाणी में विनय करके बोले हे नाथ सुनिये आपतो स्वभाव से ही सुजान है बालक की बातों पर आप ज्यादा ना सोचे

मुनि बोले राम मेरा क्रोध कैसे जाय तुम्हारा छोटा भाई अब भी ताक रहा है


तब राम कहते है। है नाथ आपकी और हमरी बराबरी कसी और प्रभू राम बोले मेरा छोटा सा नाम राम है। और मुनिवार कहा आपका नाम परसुराम है। और है नाथ हमारा तो एक ही गुण है धनुष और आपके तो बहुत ही पवित्र नो गुण है


हम तो हर प्रकार से आप से हारे है। हमारे सभी अपराधो की मांफ कर दिजिय तब मुनि बोले राम तु भी अपने भाई की तरह टेडा है। मुझे निरा ब्राहमण मत समझना मेरे कोध को भयेकर आग समझो

 कितने राजाओ को इस फरसे से मोत के घाट उतार दिया है इस लिय तू ब्राह्मण का निरादर करके बोले रहा है। शिव के धनुष को तोड़ दिया तो तुमको घमंड हो गया ऐसा अहंकार हे मानो संसार ही जीत लिया हो।


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