Ram ji ki barat ki janakpuri me swagat राजा राम की बारात का जनकपुर में स्वागत

Ram ji ki barat ki janakpuri me swagat

 राजा राम की बारात का जनकपुर में पहुंचना


कनक कलश भरीकोपर थारा भाजिन ललित अनेक प्रकारा
भरे सुधासम सब पकवाने नाना भांति न जाये बरवाने

Ramayan

बारात नगर के बाहर आ गई है। बारात की अगवानी के लिए सोने के कलश भरकर व भाँति भांति पकवान व मेवा मिष्ठान से थाल परात भगोने भर कर भेजे गए उत्तम फल व तरह तरह की वस्तुएं कपड़े गहने नाना प्रकार के जेवर पशु पक्षी  हाथी राजा ने उपहार के लिए भेजी

आगवानी करने वालों को जब बारात दिखाई दी तब उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। उनका शरीर जनकपुर के लोग जहाँ तहाँ काम कर रहे थे। सब अपना अपना काम काम छोड़कर बारात से मिलने पहुंचे और बड़े आनंद के साथ बारात का सभी ने स्वागत किया|


प्रेम समेत राव सब लीन्हा मे वक्सीस याचक न दीन्हा
करि पूजा मान्यता बड़ाई जन वासे चले लिवाई

Ramayan

राजा दशरथ ने आदर भाव के साथ सभी वस्तुएं लेली और आगवानी करने वालों को इनाम दिये तथा विधि विधान से पूजा पाठ करके अगवानी वाले लोग बरात को जनमासे की ओर ले चले जनमासे में इतने सारे इंतजाम थे सभी को सभी प्रकार की सुविधा मिल सकें जब सीता जी को पता चला की बारात नगर में प्रवेश कर गई है। तो सीता जी ने अपनी कुछ महिमा प्रकट कर दिखाई अपने मन में सुमिरन करके सभी सिद्धियों को बुलाया और उन्हें राजा दशरथ की मेहमानी करने भेजा ये सुन सारी सिद्धिया वहाँ पहुँची जहा  जनमासा था जब बारातियों ने अपने रुकने की व्यवस्था देखी(जो कि जनक जी द्वारा की गई थी) तो बड़े ही प्रसन्न हुए मकानों की बनावटअति शोभामान  थी सभी बराती जनक की तारीफ कर रहे थे


सिय महिमा रघुनायक जानी हरषे हिरदय हेतू पहचानी
पितु आगमन सुनत दोऊ भाई हृदय न अति आनंद समाई

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सीता जी की  इस महिमा को देखकर रघुनाथ जी मन ही मन  मुस्कुरा रहे हैं और पिता दशरथ के आने का समाचार सुनकर दोनों भाई पिता से मिलने को आतुर हो रहे हैं परंतु संकोच वश गुरुजी से कुछ कह नहीं सकते पर पिता से मिलने की लालसा मन में उमड़ रही है काफी समय पिता से अलग रहते हो गया  था


किंतु राम जानते हैं कि गुरु जी हमारे मन को अपने मन से ज्यादा जान लेते हैं क्योंकि गुरु विश्वामित्र अंतर्यामी है वह समझ गए थे कि प्रभु राम अपने भ्राता लखन सहित अपने पिता से मिलने को बेचैन है 

मुनि के मन में बड़ा संतोष उत्पन्न हुआ और प्रसन्न होकर गुरुजी ने दोनों भाइयों को अपने सीने से लगा लिया उनका शरीर पुलकित हो गया  गुरु जी की आंखों में आंसू आ गए और वह उस जनमासे  की ओर चले जहां पर राजा दशरथ थे मानो सरोवर प्यासे को निशाना बनाकर चला हो


जब राजा दशरथ ने दोनों पुत्र राम व लक्ष्मण को गुरु जी के साथ अपनी ओर आते देखा तो जल्दी से उठे और पागलों की भांति दौड़े मुनि विश्वामित्र के चरणों की धूल को बार-बार माथे से लगाया और उनको दंडवत प्रणाम किया तभी मुनि ने राजा को उठाकर अपने सीने से लगा लिया और आशीर्वाद देकर कुशल पूछी फिर दोनों भाइयों ने पिता को प्रणाम किया पिता के चरणों में शीश नवाया राजा दशरथ का शरीर ऐसे पुलकित हो गया जैसे मुर्दे में प्राण आ गए हो फिर दोनों भाइयों ने गुरु वशिष्ठ के चरणों में शीश झुकाया गुरु जी ने साधो साधो कह कर अपने सीने से दोनों भाइयों को लगा लिया और उन्हें आशीर्वाद दिया


भरत सहानुज कीन्ह प्रणामा लिये उठाई लाई  उर रामा
हरषे लखन देखि दोऊ भ्राता मिले प्रेम परि पुरित गाता

Ramayan

भरत और रात्रुघन दोनों भाइयों ने प्रभु राम को प्रणाम किया राम ने उन्हें उठाकर सीने से लगा लिया लक्ष्मण दोनों भाइयों को देखकर हर्षित परिपूर्ण शरीर के साथ दोनों भाइयों से मिले फिर दोनों भाइयों ने बाह्मणों की वंदना की और उनसे आर्शीवाद लिया फिर राम लखन दोनों भाई सभी कुटुम्बीयों से मिले राम लक्ष्मण को देखकर सभी बराती आति प्रसन्न हुए


आज राजा दशरथ के पास बैठकर चारों भाई ऐसे शोभा पा रहे हैं। जैसे धर्म काम मोक्ष अर्थ शरीर धारण किये हुए बैठे हो

अगवानी में आए हुए शतानंद जी व अन्य लोगों ने बारात का आदर सत्कार किया फिर राजा दशरथ से आज्ञा लेकर जनमासे से महलों में आये


राजा राम जी की बारात का विवाह स्थल पर पहुंचना Raja Ram ji ki barat ka vivaah sthal par pahunche

राजा राम जी की बारात का विवाह स्थल पर पहुंचना

जनकपुर का बड़ा ही सुंदर मनोरम वातावरण था सदानंद जी बरात से वापिस महल की ओर बढ़ते हैं महल में राम और सीता जी की शादी का महोत्सव  चल रहा था तथा जनकपुर के लोग अत्यंत प्रसन्न थे वह कह रहे थे की रात दिन एक हो जाएं तो बरात अधिक रुकेगी तो हम चारों राजकुमारों को अपनी आंखों से जी भर कर देख सकेंगे प्रभु राम व सीता जी सुंदरता की सीमा है सारे जनकपुर वासी यही कह रहे है


जिन्हे जानकी राम छवि देखी
को सुकृति हम सरिस विसेखी
पुनि देखव रधुवीर विवाह
लेहि भलि विधि लोचन लाहू

जिन्होंने सीताराम की छवि देखी है उन से अधिक पुण्यात्मा और कोई नहीं है इतना कहकर सखी आगे बोलती हैं कि सीता राम के विवाह को जो लोग देखेंगे उनके जन्म सफल हो जाएंगे तदोपरांत दूसरी सखी कहती हैं की जैसी जोड़ी राम लक्ष्मण की है ठीक उसी तरह भरत शत्रुघ्न की भी जोड़ी है भरत तो राम की सूरत के हैं और लक्ष्मण की सूरत के शत्रुघ्न है 


उपमान कोई कह दास तुलसी कहत हू कवि कोविद कहे
वल विनय विधा शील शोभा सिंधु इन्हें से एई अहें
पुरि नारि सकल पसरि अचल विधिहि वचन सुनवाही
ब्याही अहूँ चारिऊ भाई एहि पुर हम सुमंगल गावहि

तुलसीदास जी कहते हैं इनकी कोई उपमा नहीं है यानी इनके समान कोई नहीं है ताकतवर इंसान प्रार्थना शील और सुंदर समुंद्र यह सब इन्हीं के समान है


जनकपुर की सभी स्त्री भगवान से प्रार्थना कर रही हैं कि हे प्रभु इन चारों भाइयों के विवाह इसी नगर में हो तो हमें इनके विवाह के दर्शन का लाभ मिलेगा जनकपुर जनता आंखों में आंसू भरकर कह रही है राजा दशरथ और राजा जनक दोनों बड़े ही पुण्य आत्मा है |  देवों के देव महादेव इनके सारे कार्य सफल करें
श्री राम की सुंदर महान कीर्ति हो ऐसा कहते हुए सारे राजा जो स्वयं में आए थे कहते हुए सब अपने घर को चले ग
इस प्रकार कुछ दिन बीत गए आपस में जनकपुर वासी व बराती प्रसन्न है मंगल फेरों का समय आ गया था हेमंत ऋतु सुहावनी अगहन का महीना था व तिथि नक्षत्र सभी शुभ थे |


लग्न का समय निकालकर ब्रह्मा जी ने उस पर विचार किया और उस शुभ समय की चिट्ठी पत्री को नारद जी के हाथों जनकपुर भेजा और नारद मुनि जी ने वह चिट्ठी राजा जनक को दे दी राजा जनक ने वहां पर उपस्थित ज्योतिषियों को वो चिट्ठी दी जनकपुर के ज्योतिषों ने वह चिट्ठी बाँच ( पढ) कर सुनाई


अपरोहतहि कहेऊ नर नाहा
अब विलंब कर कारन काहा
सतानंद तब सचिव बुलाये
मंगल सकल साज  सबलाये

Ramayan

तब राजा जनक ने शतानंद जी से कहा अब देर का क्या कारण है तब शतानंद जी ने मंत्रियों से कहा शादी का सामान लेकर शीघ्र ही तैयारी शुरू करो मंत्रियों ने शादी का सारा सामान लाकर व्यवस्था पूर्ण  कर दी पंडितों ने अपना पूजा का कार्य शुरू कर दिया व वेद उच्चारण मंगल ध्वनि चारों और गूंजने लगी फिर बारात को लाने का समय आया तब कुछ लोग बरात को लेकर आने पहुंचे जनमासें मैं जाकर दशरथ जी से नम्र निवेदन किया की लग्न का समय हो गया है आप विवाह स्थल पर पधारे


राजा दशरथ जी गुरु वशिष्ठ के पास गए उन्हें सारी बात बताई गुरु जी ने सभी को चलने की आज्ञा दी सभी को साथ लेकर चले इनको देखकर सभी देवता आकाश से फूल बरसा रहे हैं सारे देव विष्णु भगवान माता लक्ष्मी  व शिव पार्वती ब्रह्मा जी सहित  सभी साधारण मनुष्य का भेष बनाकर बरात में शामिल हो गए प्रभु राम ने उन सब को पहचान लिया और मुस्कुराकर मन ही मन सब को प्रणाम किया सारे देवता प्रभु राम  के शोंदर्य को देखकर हर्षित हो रहे हैं शिव पार्वती जी की आंखें नम हो गई


सीता जी की  माता सुनयना जी जब राम चंद्र को वर भेष में देखती हैं तब उनको राम जी मै जगत के पालनहार हरि विष्णु भगवान दिखाई देते हैं सीताजी की माता कुछ समय के लिए सोच में पड़ जाती हैं फिर एकाएक जब उनको होश आता है तब उनका शरीर खुशी के मारे फुला नहीं समाता और मंगल अवसर जानकर आंखों में आए खुशी के आंसू रोक कर फिर अपने दामाद श्री राम जी का आरता करने लगती हैं वेदों की रीति के अनुसार माता सभी कार्य कर रही हैं



दशरथ सहित समाज विराजे
विभव विलोकी लोकपति साजे
समय समर सुर वरसहि फूला
शान्ति पढहि माहिसुर अनुकूला

Ramayan




राजा दशरथ जी अपने सभी सगे संबंधी गुरुजनों के साथ आकर मंडप के पास बैठे तो आकाश से देवता पुष्पों की वर्षा करने लगे सभी पंडित जन पाठ पूजा में विलिन थे पूरे नगर में शोर मच रहा था कि जनकपुर वासी राम को मण्डप में आता देख खुशी मना रहे हैं श्री रामचंद्र जी को आसन पर बैठाया गया स्त्रियां उनका आरता कर रही हैं शिव पार्वती ब्रह्मा  विष्णु जी लक्ष्मी सहित भगवान सभी ब्राह्मणों का भेष बनाकर समारोह में अपने प्रभु राम की शादी की खुशी मना रहे है


मिले जनक दशरथ अतिप्रीती
करि वैदिक लौकिक सब रीति
मिलत महा दोऊ राज विराजे
उपमा खोज खोज कवि लाजे 


राजा जनक और अवध नरेश राजा दशरथ आपस में मिल रहे हैं उनके हर्षोल्लास की कोई सीमा नहीं है इतना प्यार प्रेम एक दूसरे के लिए उमड रहा है फिर भी यह सोच रहे हैं की आपस में क्या बात करें  उनका माता सरस्वती भी वर्णन नहीं कर सकती जब ब्रह्माजी ने जगत को बनाया तब से हमने बहुत से विवाह देखे लेकिन इतनी सुंदर शादी आज तक नहीं देखी देवताओं की सुंदर वाणी सुनकर जनक जी राजा दशरथ को सेवाभाव आदर सत्कार के साथ मण्डप में ले आए  मंडप की शोभा देखकर ऋषि मुनि साधु संत सभी खुश हुए


राजा जनक ने सभी के लिए अपने हाथों से सिंहासन तैयार किए और उन पर बैठने के लिए सभी से विनती है सभी खुश होकर उन पर विराजे देवताओं के समान गुरु वशिष्ट जी की पूजा करके उनसे आशीर्वाद लिया राजा जनक ने वेदों के अनुसार पूजा की और सभी देवताओं से  आशीर्वाद प्राप्त किया

समय देखकर गुरु वशिष्ट जी ने शतानंद जी को अपने पास बुलाया और उनसे कहा कन्या को शीघ्र मंडप में ले आओ मंगल फेरों का समय आ गया है शतानंद जी मुनि की आज्ञा पाकर प्रसन्न होकर चल दिए सभी रानीयों को पता चला कन्या को मंडप में जाना है तो बड़ी खुशी हुई सीता जी का श्रृंगार करते हुए मंगल गीत गाती हुई सीता जी को लेकर मंडप की ओर आ रही है तो देवता भी उनको देखकर उनकी प्रशंसा कर रहे हैं 

देवताओं ने फूलों की वर्षा की ढोल नगाड़े बजाए जनकपुर की स्त्रीया मंगल गीत के साथ सीता जी को लेकर मंडप पहुंची जब बारातियों ने सीता जी को आते देखा तो सभी ने झुककर उनको प्रणाम किया राम को देखकर सभी हर्षित हो गए राजा दशरथ सभी पुत्रों सहित प्रसन्न हुए इसी प्रकार सीता जी मंडप में आई गुरु वशिष्ठ व सभी गुरुओं ने आशीर्वाद दिए सभी कुल गुरुओं ने पूजा-पाठ रीति रिवाज के अनुसार उस समय के सभी कार्य कराएं फिर गुरु वशिष्ट ने सीता जी से गौरी गणेश व सभी देवों की पूजा कराई


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