राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न की बाल लीलाएं Ram lakshman bharat shatrughn kee baal leelaen


औरऊ एक कहऊ निज चोरी सुन गिरजा अति दृढमति तोरी 
काकभुसन्ड संग हम दोऊ मनुज रूप जानही नही कोई 

Ramayan

 देवों के देव महादेव पार्वती जी से कहते हैं कि मैं जानता हूं कि आपका मन श्री राम के चरणों में दृढ हैं  अब मैं आपको एक चोरी की बात बताता हूं मैं तो शिव जी पार्वती जी से बोलते हैं और कहते हैं कि मैं और काग भुसन्ड दोनों वहां साथ साथ थे लेकिन हमारे मनुष्य रूप में होने के कारण हमें कोई भी पहचानने के लिए सक्षम नहीं था हम दोनों खुशी में अवध की गलियों में खुशी मनाते और झूमते हुए घूम रहे थेपरंतु ऐसा सुख केवल उन्हीं को मिल सकता है जिस पर स्वयं प्रभु राम की कृपा हो


उसी समय हमने देखा कि राजा दशरथ ने जनता के तथा अन्य लोग जो वहां पर उपस्थित थे उन सभी के  मन का दान उनको देकर उन्हें शांत किया उन्होंने हीरे, मोती, गाय , सोना व अलग-अलग तरह के धन व उपहार सभी को दिए व सब को खुश कर वहां से विदा किया सब इतना खुश थे कि प्रभु श्री राम और दशरथ को अपनी दुआएं और अपना आशीर्वाद दिए नहीं थक रहे थे और यह बोलते जा रहे थे कि तुलसीदास के स्वामी सव पुत्र चिरंजीवी हो


कछुक दिवस बीते एहि भति जानत जानिये दिन अरुशति 
नामक रन करअवसर जानि भूप बोले पठि मुनि ज्ञान

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इसी तरह कुछ दिन गुजर जाने के बाद में फिर नामकरण संस्कार का समय आया राजा ने यानी मुनीम गुरु वशिष्ठ को बुलावा भेजा तथा उस बुलावे को देख वशिष्ठ दशरथ के घर आ पहुंचे वाह नामकरण की विधि को आरंभ किया राजा दशरथ ने गुरु की पूजा की और बोले हे मुनिवर आप जो भी नाम बताएंगे वह नाम मैं अपने चारों पुत्रों का रखूंगा मुनि वशिष्ट ने कहा इनके वैसे तो बहुत से नाम है फिर भी मैं अपनी बुद्धि के अनुसार इन चारों को नाम दूंगा


जो आनंद सिंधु सुख राशि सीकर ते  त्रिलोक सुपासी 
सो सुखधाम  राम असनामा अखिल  लोक दायक विश्राम

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 इसी प्रकार फिर गुरु वशिष्ट चारों भाइयों के नामों को बताते हैं वह कहते हैं कि यह जो आनंद के समुंद्र और सुख देने वाले हैं   जिनको देखने के लिए आंखें आतुर हो जाती हैं उनका नाम श्री राम हैजो मनुष्य को तथा पूरी मानव जाति को सुख का भवन और पूरे ब्रह्मांड को सुख देने वाले हैं जो संसार का भरण पोषण करते हैं उन्हीं का नाम भरत होगा तथा वह बाकी दोनों भाइयों का भी नाम विस्तार पूर्वक बताते हैं वह बोलते हैं कि जिनके केवल नाम लेने से ही दुश्मन का विनाश हो जाता है उनका नाम वेदों में शत्रुघ्न प्रसिद्ध होगा तथा जो राम के सबसे अधिक प्यारे तथा सुंदर लक्षणों वाले हैं और सारे जगत के एकमात्र आधार हैं उनका नाम गुरूजी ने लक्ष्मण रखा गुरु वशिष्ट ने कहा हे राजा तुम्हारे चारों पुत्र किसी देव से कम नहीं है 

वशिष्ठ जी राजा को कहते हैं कि आपके चारों पुत्र सभी मुनियों , भक्तों और साधु-संतों व शिव जी के प्राण आधार हैं तथा यह सब को सुख देने वाले हैं इनके एकमात्र दर्शन से ही सभी का मन इनमें लग जाता है तथा इनको  क्षण भर देखना ही सुख देने वाला है


लक्ष्मण ने अपने बड़े भाई श्री राम को प्रभु मानकर बचपन से ही उनकी सेवा में लग गए तथा उनके ही चरणों में उन्होंने अपनी प्रीति जोड़ी  सूर्य देव ने 1 माह तक अवध में ही रहकर चारों बालकों का बालपन देखा तथा एक महा बाद अवध से जाकर संसार में वह प्रकट हुए तथा अपने माता पिता से अपने बाल्यकाल में शिक्षा लेते हुए वह एक दूसरे के बीच साथ में एक दूसरे के साथ खेल कर चारों भाई कब बड़े हो गए कि पता ही नहीं चला महल में सभी खुश थे तथा यह समय बहुत ही तेजी से आगे बढ़ रहा था चारों भाइयों के बालपन को देखकर उनकी माताएं व राजा दशरथ ने अपने बालपन को फिर से जी लिया   


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