राम परशुराम संवाद रामायण Ram Parashuraam Sanvaad Ramayan

जब मुनि परशुराम को अधिक क्रोध आया तब मुनि विश्वामित्र जी ने परशुराम को संकेत किया की हे नाथ आपके सामने कौन खड़ा है अपने मन की आंखों से उनके दर्शन करो लेकिन परशुराम जी के क्रोध में होने के कारण वश उन्हें कुछ भी समझ नहीं आया तदुपरांत प्रभु रामचंद्र जी ने जवाब दिया


राम कहा मुनि कहहू विचारी रिसी अति बढ़ी लघु चुक हमारी
छुहताही टूट पिनाक पुराना में  केही हेती करो अभिमाना

Ramayan

परम कृपालु श्री रामचंद्र जी ने बड़े ही सेवा भाव से परशुराम जी से कहा हे  मुनि थोड़ा सा अपने मन में सोच विचार कर देखें आपका गुस्सा बहुत ही ज्यादा है और मेरी भूल बहुत छोटी सी है यह  केवल एक पुराना धनुष था जो छूते ही टूट गया तो इसमें मैं क्यों अभिमान करूं इस प्रकार से श्री राम जी परशुराम जी को अपनी बात समझाने का पूरा प्रयास करते है

जो हम निदराहि विप्र बदि सत्य सुनहू भ्रगुनाथ
तो अस को जग सुभट जेहि भय बस नावहि माथ

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हे श्रेष्ठ मुनिवर भ्रगुनाथ अगर हम सचमुच में ब्राह्मणों का अपमान करें तो आप यह सत्य भी जान लीजिए और हमें बताइए कि क्या कोई संसार में ऐसा पराक्रमी योद्धा है 

जिसके सामने भयभीत होकर हम झुक जाएं हे मुनि हम सूर्यवंशी राजा दशरथ के पुत्र हैं हमने औरत और ब्राह्मण के अलावा किसी और के सामने झुकना नहीं सीखा फिर    काल ही सामने क्यों ना हो 



हे मुनि लड़ाई के मैदान में हमारे सामने देवता देत्ये हो या स्वयं यमराज या कोई भी बलशाली राजा जो बल में हमसे 100 गुना ज्यादा क्यों ना हो और हमें रण में युद्ध के लिए ललकारे उसे उत्तर देना हमारा क्षत्रिय धर्म है

 जो श्रत्रिय लड़ाई के मैदान में डर गया तो समझो उसने अपने समस्त  क़ुल को दाग लगा दिया मैं स्वभाव से कहता हूं की रण में हम किसी से भी नहीं डरते हैं   ब्राह्मण वंश की ऐसी प्रभुता है की जो आप से डरता है फिर वह किसी से भी नहीं डरता

 प्रभु राम के मीठे और मधुर वचन सुनकर मुनि परशुराम के मन के पर्दे खुल गए तब मुनि परशुराम ने अपने मन की शंका दूर करने के लिए मीठे स्वर में रघुकुल शिरोमणि श्री राम से  कुछ इस प्रकार वचन कहे



राम रमापति कर धनु लेहू खेचऊ चाप मिटे संदेह देतिचाप
आपाहि चढ़ी गयऊपरशुराम मन विस्मय भयऊ 

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हे राम हे लक्ष्मीपति मेरे इस धनुष को अपने हाथ में लीजिए और इस पर अपने हाथों से प्रत्यंचा  चढ़ाईऐ\परशुराम जी का धनुष कब राम के हाथों में चला गया मुनि को पता नहीं चला तब परशुराम के मन में अपार प्रसन्नता हुई मुनि परशुराम ने राम जी को पहचान लिया तो परशुराम के शरीर मैं ऐसे जोश आ गया  मानो जैसे मछली को पानी मिल गया हो तब मुनि परशुराम राम जी से हाथ जोड़कर बोलेहे रघुवंशी राम हे कमलवन की सूर्य राक्षसों का संहार करने वाले देवता, गाय ,ब्राह्मणों इत्यादि की रक्षा करने वाले, सभी का दुख दूर करने वाले प्रभु राम आपकी जय हो सेवकों का सेवकों को सुख देने वाले और शरीर में करोड़ों काम देवों की छवि धारण करने वाले प्रभु राम आपकी जय हो जय हो जय हो मैंने अनजाने में आपको अनुचित वचन कहे  मुझ पर दया कीजिए


कहि जय जय जय रघुकुल केतू भ्रगूगये बनहि हेतू
अपभय कुटिल महिप डराने जहे तंह कायर गवाहि पराने

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हे रघुकुल शिरोमणि श्री रामचंद्र जी आपकी जय हो कहकर मुनि मन ही मन प्रसन्न होकर वन को चले गए परशुराम जी के जाने के बाद ,जो राजा   स्वयंवर में विघ्न डालना चाहते थे वह यह देख कर कि किस प्रकार परशुराम जी ने राम जी से अपने कहे हुए वचनों के लिए क्षमा मांगी वह सभी राजा राम जी के बल को समझ कर डर के भाग गए  जनकपुर की प्रजा यह देखती ही रह गई  अब जनकपुर में बसरे हुए भय के बादल मानो छटने लगे थे तथा जनकपुर के लोग राम लक्ष्मण और गुरु विश्वामित्र की जय जयकार कर रहे थे 


सीता जी सीता जी मन ही मन शिव पत्नी माता गिरजा भवानी को पुकार कर कह रही हैं हे माता तुमने मेरी मनोकामना पूर्ण कर दी मैया वारमबार आपकी जय हो                                                        जय श्री राम


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