Ram Sita Swayamvar Ramayan राम विवाह

Ram Sita Swayamvar Ramayan

राम भरत लक्ष्मण व शत्रुघ्न विवाह

सूर्य देव ने संपूर्ण ब्राह्मण परिवार को विवाह के सभी रीति रिवाज का व्याख्यान कर  करके बताया फिर ब्राह्मण ने उन रीति-रिवाजों को विधि-विधान द्वारा  शुरू किया जब सीता जी मंडप में पधारी तब मुनि ने उन्हें बैठने का आसन दिया जब सीता जी उस पर विराजमान हुई 

तो  देखा सामने प्रभु राम बैठे हैं दोनों ने एक दूसरे को देखा मन ही मन आपस में बातें की  तथा वहां बैठे लोग आपस में हर्षित होकर सीता माता व प्रभु राम की जोड़ी को निहार रहे हैं उनको नहीं पता कि यह दोनों जो साधारण मनुष्य रूप में दिख रहे हैं वह असल में विष्णु भगवान और माता लक्ष्मी हैं जिन्होंने मृत्यु लोक में अवतार लिया


होमसमय तनुधारि अनल अति सुखी आहुति लेहि
प्रिय भेष धीर भेद सब वेद सब कहे विवाई विधि देहि

Ramayan

हवन के समय अग्नि देव स्वयंअग्नि का रूप धारण कर हवन कुंड में प्रकट हो गए तथा राम सीता विवाह के समय जो भी आहुति दी गई वह अग्नि देव द्वारा प्रश्न चित्त से स्वीकार कर ली गई और सारे वेद,  ब्राह्मणों का भेष  बनाकर वहां पर विराजमान थे 

वह सभी पंडितों को सारी बातें बता कर सारे कार्य व पूजा-अर्चना बड़ी ही लगन से करा रहे हैं शुभ समय जानकर मुनियों ने राजा जनक व उनकी रानी सुनैना जी को मंडप में बुलाया राजा व रानी दोनों मंडप में आए जिस समय राजा जनक व रानी मंडप में बैठे तो सभी का चित्त प्रसन्न हुआ इनकी जोड़ी  शोभायमान हो रही थी 

विवाह के समय मुनि मंगल श्वर में वेदों का पाठ कर रहे हैं देवता आकाश से फूल बरसा रही है राजा रानी सीता व राम दोनों के चरणों को जल से परवार कर रहे हैं

जै परसि मुनि वनिता लहि गति रही जो पातकमई
मकरंद जिनको शम्भु सिर सुचिता अवाधि सुर वरनाई
कर मधुप मुनि मन जो गिजन जे सेई अभीभीत गीत
लेहेते पद परवात भाग्य भाजनु जनक जय जय सब कहें

Ramayan

जिन के चरणों की रज को छूने से गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या शिला से नारी बनकर मुक्त हो गई जिन के चरण कमलों का  रस  गंगा जी शिवजी के मस्तक पर वास करती हैं जिनको देवता कलयुग में जगत  को तारेने वाली माता गंगे कहते हैं सभी देवता जीनके चरणों की रज माथे पर लगाकर अपने आप को धन्य मानते हैं आज उनके चरण राजा जनक व रानी सुनैना परवार रहे हैं 

यह देख कर देवता जय जयकार कर रहे हैं  तदोपरांत राजा रानी ने वेदों की रीति के अनुसार  सीता जी का कन्यादान किया जैसे राजा हिमाचल शिवजी को पार्वती और सागर ने भगवान विष्णु को लक्ष्मी का दान कर दिया हो वैसे ही जनक जी ने रामचंद्र जी को सीता जी समर्पित कि विधि पूर्वक हवन कर के गठजोड़ किया और फिर फेरे पड़ने लगे उन्होंने विधि पूर्वक फेरे कराएं और सभी रितियों को पूरा किया श्री रामचंद्र जी ने सीता जी की मांग में सिंदूर लगाया यह समय बड़ा ही आनंद देने वाला था फिर दोनों को एक साथ सिंहासन पर बैठाया गया


तब जनक पाई वशिष्ठ आयुस ब्याह साजि सवारि के
मांडवी श्रुति कीर्ति उर्मिला कुवारी लई हंकारि के
कुसकेतू कन्या प्रथम जो गुण शील सुख शोभा मई
सब. रीत प्रीत समेत कर जो व्याह नृप भरतही दई


फिर राजा जनक ने गुरु वशिष्ठ जी की आज्ञा पाकर विवाह का सारा सामान सजा कर अपनी शेष तीनों पुत्रियों मांडवी  कीर्ति व उर्मिला को बुलाया


कुशध्वज की बड़ी कन्या माधवी का विवाह भरत से कराया गया व सीता जी की छोटी बहन उर्मिला का विवाह लक्ष्मण जी से कराया गया| जिनका नाम कीर्ति है उनका विवाह शत्रुघ्न के साथ संपन्न किया गया सभी अपनी जोड़ी देखकर हर्षित हो रहे हैं सब लोग प्रसन्न होकर उन को आशीर्वाद दे रहे हैं सभी देवता नजारा देखकर फूल बरसा रहे हैं

सभी दुल्हन एक मंडप में बैठी हैं अपने प्रिय स्वामियों के साथ शोभा पा रही हैं सब एक ही स्थान पर विराजमान है तब राजा जनक हाथ जोड़कर सारी बारात का सम्मान करते हैं फिर राजा जनक ने सभी गुरुजनों की पूजा अर्चना की सभी का सम्मान किया फिर बारात विदा करते समय राजा जनक दशरथ जी से बोले अगर अनजाने में हमसे कोई भूल हुई हो तो हमें क्षमा करना और मेरी बेटियों को अपनी बेटी समझ  इन पर कृपा करना सभी बाराती आनंदमय होकर जनमासे की ओर चले


जनकपुर के राजा ने स्वयंवर का निमंत्रण राजा दशरथ को क्यों नहीं भेजा janakapur ke raaja ne svayanvar ka nimantran raaja dasharath ko kyon nahin bheja





राजा जनक ने सीता स्वयंवर में पूरे संसार के राजाओं को निमंत्रण पत्र भेजे थे लेकिन अवध नरेश राजा दशरथ को पत्र क्यों नहीं भेजा तो आज हम इसी के बारे में एक कथा आप तक पहुंचाने जा रहे हैं

राजा जनक अपनी पुत्री सीता जी का स्वयंवर कर रहे थे तो उन्होंने वहां पर एक शर्त रखी थी कि जो भी राजा हमारे आंगन में रखें शिव धनुष को तोड़ेगा उसी के गले में मेरी पुत्री सीता माला डालेगी और जो यह धनुष तोड़ेगा सीता का विवाह उसी से होगा तो राजा जनक ने सारे पृथ्वी के राजाओं को बुलाया परंतु अवध नरेश राजा दशरथ को नहीं बुलाया गया क्योंकि इसके पीछे एक रहस्य छुपा हुआ है

एक बार जनकपुर की एक स्त्री अपने पति के साथ कहीं जा रही थी लेकिन उसका पति अंधा था समय बलवान होता है संयोग से रास्ते में कुछ साधु-संत तपस्या कर रहे थे तो गलती से उस अंधे का पैर साधु के शरीर से लग गया और बिना देखे बिना सोचे उस साधु ने कहा जिसने मेरा ध्यान भंग किया है

 वह कल सुबह का सूर्य नहीं देखेगा तभी स्त्री बोली नाथ में पतिव्रता  स्त्री हूँ मेरे पति अंधे हैं वह देख नहीं सकते आप इन्हें माफ कर दें तब साधु बोले मेंने श्राप दे दिया अब वापस नहीं हो सकता जब उसने काफी प्रार्थना की साधु के सामने साधु ने उसे माफ नहीं किया पर एक उपाय बताया कि अगर कोई   पतिव्रता स्त्री कल सुबह यानी सूर्य प्रकट होने से पहले कच्चे घडे को कच्चे धागे से बांध कर उसमें कुएं से  जल भरकर उसे स्नान करा दे तो इसकी मृत्यु नहीं होगी

 वह स्त्री अपने पति को लेकर राजा जनक के दरबार में  गयी सारा हाल बताया तो जनकपुर में ऐसी कोई स्त्री नहीं मिली तब   सब जगह खबर गई  तब नरेश दशरथ की पत्नी कौशल्या को पता चला तो वह जनकपुर जाने को तैयार  हुई तभी वहां पर एक दासी आई जो जनकपुर की रहने वाली थी  राजा दशरथ के महल में महतरानी का काम करती थी उसने रानी कौशाल्या से पूछा तब उन्होंने सारी बात बताई और कहा में वही जा रही हूं

तब दासी बोली हमारे होते हुए आप क्यों परेशान हो  रही हैं यह कार्य मुझे दें मैं वहां जाती हूं मैं भी तो  पतिव्रता हूं तब वह दासी जनकपुर गई तब उसने कच्चे घड़े को कच्चे धागे से बांध कर कुएं से पानी निकाल कर अंधे व्यक्ति को स्नान कराया और उसकी जान बच गई तो इसलिए जनक ने अवध को पत्र नहीं भेजा और राजा जनक ने सोचा जब अयोध्या की एक दासी इतना बड़ा काम कर सकती है

 तो राजा दशरथ ने अगर कोई ऐसा ही दास भेज दिया क्योंकि वहां तो सभी ताकतवर है और अगर उसने धनुष तोड़ दिया तो सीता कहीं गैर जाति में ना चली जाए इसी कारण निमंत्रण नहीं भेजा गया लेकिन राजा जनक नहीं जानते थे कि सीता लक्ष्मी का अवतार है और प्रभु राम विष्णु भगवान के अवतार हैं राक्षसों का वध करने के लिए दोनों मानव रूप में पृथ्वी पर आए हैं इसलिए राक्षसों के विनाश के लिए माता सीता का विवाह राम जी से होना था सब हरि की लीला थी जो बिना बुलाए राम लक्ष्मण गुरु विश्वामित्र के साथ जनकपुर पहुंचे सारे राजाओं का मान घटाया धनुष भंग करके जनक नंदिनी सीता जी से विवाह किया







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