रामायण सीता का अद्भुत स्वयंवर | Ramayan Sita Swayamvar story in hindi MyTirth

रामायण  सीता का अद्भुत स्वयंवर ( Ramayan Sita Swayamvar story or Katha in hindi)

जानि सुवअवसर सीय तब पठई जनक बुलाई 
चतुर सखी शुन्दर शकल सादर चली लिवाई
 

Ramayan

जब सुभ अवसर जानकर राजा जनक ने सखियों और दासीयो से कहा आप जाओ सीता जी को स्वयंवर में ले आओ तब सभी सुंदर एवं सुशील दासीया तथा सभी सखी सीता जी को आदर पूर्वक लेने के लिए चली 

सर्वगुण संपन्न जगत जननी जानकी माताजी की शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता ! उनके लिए मुझे सभी ऊपमायें तुच्छ लगती हैं 


चली संग ते सखी सयानी गावत गीत मनोहर वाणी सोह नवल तन शुन्दर सारी जगत जननी अतुलित छवि प्यारी

सीता जी की सखियां सीता जी को लेने उनके भवन में जनक की आज्ञा अनुसार पहुंचती हैं वह सीता जी को तैयार कर व मनोहर गीत गाते हुए  स्वयंबर भवन मैं लाती हैं  जैसे ही सीता जी अपने पग स्वयंबर  भवन में रखती हैं तभी  भवन में उपस्थित सभी लोगों का ध्यान उनके आभूषणों और आकर्षित पहनावे की ओर जाता है जिससे स्वयंबर भवन में उपस्थित सभी उनकी और मोहित हो जाते हैं तथा इस अवसर पर सभी देवता खुशी मनाते हैं तथा अप्सराएं फूल बरसा कर गीत गाने लगती हैं परंतु सीता जी अपनी आंखों को  नीचे झुकाए राम जी को निहारती हैं तथा उनका मन श्री राम जी में ही स्थिर हो जाता है इसी अवसर पर जनक जी कारागृह  मैं उपस्थित सभी लोगों को छोड़ देते हैं तथा वे सभी गीत गाते हैं तथा राजा की प्रशंसा करते हैं


बोले बंदी वचन बरसुन हू सकल महिपाल
प्रण विछेह कर कहे हम भुजा उठाई विशाल||

Ramayan

भाट व बंदी जनो ने  भवन में उपस्थित सभी राजाओं की ओर इशारा करते हुए जनक जी का प्रण कहा  और बोले  की राजाओं की भुजाओं का बल चंद्रमा है

 और शिवजी का धनुष राहु है वह भारी और कठोर है यह सभी जानते हैं कि बड़े बलशाली राजा रावण और बाणासुर भी  उसको हिला न सके और लज्जित होकर वापस चले गए और अगर आज उसी धनुष को इस भरी सभा में जो कोई तोड़ेगा सीता जी उसी को अपना वर मानकर उसी के गले में जयमाला डालेंगी 



 बंदी जनों के वचन को सुनकर कुछ राजा तो मन ही मन खुश होने लगे कि इस धनुष को तोड़ना कौन सी  बड़ी बात है और कुछ को उनके वचनों से गुस्सा आने लगता है

और वह अपने देवताओं को याद कर धनुष की ओर आगे बढ़ते हैं और धनुष को उठाने की कोशिश करते हैं परंतु अपनी पूरी ताकत लगाने के बावजूद वह धनुष को तिनका भर भी हिला न सके और शर्म के मारे वापस अपने स्थान पर आकर विराजमान हो जाते हैं कुछ राजा तो धनुष के पास ही नहीं जाते क्योंकि उनको पता था कि वह यह काम नहीं कर सकते  भरी सभा में ऐसा लगने लगता है किशिव धनुष  का वजन निरंतर बढ़ता जा रहा था और अंत में 10000 राजा एक ही साथ मिलकर धनुष को उठाने की कोशिश करते हैं परंतु वह शिव धनुष तिनका भर भी नहीं हिल


पाता और वह सभी राजा अपने स्थान पर आकर बैठ जाते हैं तथा यह सब देखकर राजा जनक को क्रोध आने लगता है कि शायद उनका प्रण  पूरा ना हो सकेगा


दीप दीप के भूपति नाना आए सुनी हम जो प्रण ठाना
देव दनुज धरि मनुज शरीरा विपुल वीर आए राणाधीरा रणाधीरा

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जब कोई भी शिव जी के धनुष को नहीं उठा पाता तो राजा जनक को   क्रोध आ जाता है और वह बोलने लगते हैं कि मैंने जो प्रण किया था उसको पूरा करने के लिए सभी राज्यों से महावीर राजा देवता दैत्य भी मनुष्य रूप धारण कर आए थे परंतु लगता है ऐसा कोई वीर जो धनुष को तोड़ सके इस पृथ्वी पर पैदा ही नहीं हुआ जैसे कि मानो पृथ्वी वीरों से खाली हो गई हो 

और वह इतना कह कर सभी राजाओं से आग्रह करते हैं कि वह सभी अपने अपने घर को लौट जाएं और कहते हैं कि ऐसा लगता है मानो ब्रह्मा जी ने मेरी पुत्री सीता का विवाह होना लिखा ही नहीं हैराजा जनक की वचनों को सुनकर सभी नगरवासी दुखी हो गए और भगवान से प्रार्थना करने लगे कि हे भगवान कोई उपाय करें जिससे राजा जनक के प्रण का मान रह सके 


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