श्री राम के जन्म से पहले की कहानी , कहानी राजा मनु की |Ramayana


मेरे प्रिय मित्रों एवं परम पूज्य बुजुर्गों आप सभी को मेरा सादर नमस्कार। आज से हम रामायण का प्रथम अध्याय शुरू करने जा रहे हैं इस अध्याय में आप जानेंगे राजा मन्नू के बारे में।


ram ke janm ki kya kahta hai

रामायण में प्रस्तुत यह कहानी प्रभु राम जी के जन्म से कई वर्ष पहले की है और आज से कई हजार वर्ष पहले की कहानी है जिसमें श्री राम जीके वंशजों के बारे में बताया गया है





यह कहानी है उस समय के जा राजा मनु भगवान हरि की आराधना में लीन थे और राजा मनु की आराधना से भगवान हरि खुश होकर प्रकट हो जाते हैं और जब मनु की आंखें खुली तो उन्होंने साक्षात सृष्टि रचयिता श्री हरि को अपने समक्ष खड़ा पाया उन्हें एक क्षण के लिए तो खुद पर विश्वास ही नहीं हुआ कि मेरे सामने श्री हरि जोकि तीन लोक के स्वामी हैं वह स्वयं उनके सामने खड़े हुए थे और जैसे ही वह पूर्ण रुप से होश में आए तो वह श्री हरि के चरणों में गिर पड़े तभी प्रभु हरि ने राजा मनु को अपने दोनों हाथों से उठाया और भगवान हरि राजा मनु से बोले...





बोले कृपानिधान पुनि अति प्रसन्न मोहे जानी 

मागऊ वर जोई भाव मन माहा दानी अनुमानी

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भगवान हरि श्री विष्णु राजा मनु से बोलते हैं हे राजन मुझे अत्यंत प्रसन्न मानकर और बड़ा दानी मानकर जो भी कुछ तुम्हारे मन में इच्छा है वह मुझ से मांगो 





राजा मनु प्रभु के यह वचन सुनकर भगवान श्री हरि से कहते हैं कि हे भगवान आपके चरण कमलो के दर्शन मात्र से ही मेरी सारी मनोकामनाएं पूरी हो गई हैं  हे स्वामी आप तो अंतर्यामी हैं मैं जो भी आपसे मांगना चाहता हूं आप अवश्य जानते होंगे हे प्रभु आपसे भी भला कभी कुछ छुपा है फिर राजा मनु कहते हैं परंतु स्वामी जब आपने मुझसे मेरे मन का भाव पूछ ही लिया है तो मैं आपसे अपने मन का सच्चा भाव कहता हूं फिर मेरी इच्छा है कि मुझे आप जैसा पुत्र चाहिए 





देखी प्रति सुन वचन अनमोल, एवमवस्त करुणानिधि बोले 
आप सरिस खोजो कह जाई,नप तव तनय होई में आई

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श्री हरि राजा मनु की यह प्रति देखकर खुश हो गए और श्रीहरि भगवान राजा मनु से बोलते हैं हे राजन ऐसा ही होगा और श्री हरि भगवान विष्णु बोले हे राजन मैं अपने समान पुत्र कहां ढूंढगा मैं स्वयं ही आपका पुत्र बनकर इस धरती पर अवतरित हूंगा





यह सुन राजा मनु ने भगवान श्री हरि विष्णु के चरण कमलों की बन्ना करते हुए कहा हे प्रभु फिर मेरी एक विनती और है...





सुता विषईक तवपद रति होऊ: मोही वढ मुटि कहे किन कोऊ

मनि विन फनि जल विनमीना: मम जीवन तिम तुम्ही अधीना

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राजा मनु भोले हे प्रभु आपके चरणों में मेरी ऐसी प्रति हो जैसी पुत्र के लिए पिता की होती है चाहे कोई मुझे मूर्ख ही क्यों ना कहें पर है प्रभु श्री हरि यह मेरा  समस्त जीवन आप के आधीन रहे ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार मणि के बिना सर्प नहीं रह सकता और जल के बिना मछली भी जीवित नहीं रह सकती 





श्री हरि भगवान विष्णु राजा मनु के यह वचन सुन के भोले हे राजन ऐसा ही होगा और भगवान ने राजा मनु से कहा कि अब तुम इंद्र की राजधानी मैं जा कर रहो वहां स्वर्ग के बहुत से सुख भोग कर कर फिर तुम अवध के राजा बनोगे और तत्पश्चात मैं तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लूंगा मनुष्य रूप में तुम्हारे घर पर कर प्रकट हूंगा और अपने भक्तों को सुख देने वाली लीलाएं करूंगा मेरे साथ आदि शक्ति मेरी माया भी अवतरित होगी इस प्रकार मैं तुम्हारी अभिलाषा पूरी करूंगा और यह कह कर तीन लोक के स्वामी श्री हरि भगवान अंतर्ध्यान हो गए




वासवे दोनों (राजा रानी ) भक्तों पर कृपा करने वाले श्री हरि भगवान को अपने मन में धारण करके कुछ काल तक उस आश्रम में रहे फिर उन्होंने समय पाकर सहज (बिना किसी कष्ट के)  अपने शरीर का त्याग कर दिया तथा अमरावती में वास किया










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