श्री राम एवं सीता माता का अवध में आगमन shri Ram or Sita mata ka avadh m aagaman

 बारात का अवध वापस पहुंचना

बारात  जनमासे में चली गई तब गुरु जी की आज्ञा पाकर सखियां मंगल गान करती हुई वर और वधुओं को लेकर शेष पूजा कराने चली गई सीता जी बार-बार राम को देखती  और शर्मा जाती  लेकिन उनका मन फिर भी राम की छवि को देख रहा है

पित जनेऊ महा छवि देई करी मुद्रिका चोर चित लेई
सोहत ब्याह साज सबसाजे उर आयत उर भूसण राजे 

Ramayan

पीला जनेऊ महान शोभा दे रहा है शादी कीअंगूठी  श्री राम के हाथ में  शोभा पा रही हैं गले में आभूषण बहुत ही सुंदर लग रहे हैं 

सुहागिन औरतें कुमार और कुमारियों को पूजा में बैठाकर प्रेम से मंगल में मंगल गीत गाकर अपनी रीति के अनुसार पूजा करवा रही हैं उस समय के हंसी खेल व खुशी के आनंद को कहा नहीं जा सकता

 सारी विधिवत पूजा करा कर वर और वधुओ को कन्याएं जनमासे की ओर लेकर चली राम सहित चारों भाई और वधुओं को देखकर देवता फूल बरसा रहे हैं और राम जी की जय हो जय हो कहते हुए अपने अपने लोक को चले जाते हैं 

तब चारों कुमार बहुओं सहित पिता  राजा दशरथ के पास आए पुत्रों और बहूओं को देखकर राजा का मन हर्षोल्लास से भर गया राजा दशरथ ने गुरु विश्वामित्र के चरणों की वंदना की और गुरु वशिष्ट जी की वंदना करके बोले आपने आज मेरा जीवन कृतार्थ कर दिया 


बहुरि राम पद पंकज धोये जे हर हिरदय कमल मह गोय
तीनीऊ भाई राम राम जानी धोये चरण जनक निज पानी

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राजा जनक ने रामचंद्र जी के चरण जल से परवारे  जो शिवजी के मन में वास करते हैं फिर तीनों भाइयों को रामचंद्र के समान जानकर उनके चरण परवारे राजा जनक ने सभी को आसनों पर बैठाकर सभी को खाना खिलाया खाना खाते समय औरतें गाली वाले गीत गाने लगी तो राजा दशरथ हंस रहे हैं सभी ने भोजन किया उसके बाद पान देकर  राजा जनक जी ने समाज सहित राजा दशरथ की पूजा की उसके बाद राजा दशरथ प्रसन्न होकर जनमासे से की ओर चले 

अवध नाथ चाहत चलन भीतर करहू जनाऊ 
भये प्रेम वश सचिव सुनि विप्र सभासद राऊ

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राजा जनक ने कहा रनिवास में खबर कर दो तैयारी करें अयोध्या नाथ विदा चहाते हैं  मंत्री ब्राह्मण राजा सभी प्रेम के वश विदा करना नहीं चाहते तो राजा दशरथ ने प्रार्थना की कि हमें यहां पर बहुत दिन बीत गए हैं अब चलना चाहिए जनकपुर वासियों को पता चला बारात जाएगी तो सबका मन उदास हो गया

 तब राजा जनक ने  रास्ते में खाने के लिए बरात को अनगिनत मेवा मिष्ठान छप्पन भोग हजारों रथों में लदवाकर बरात के साथ भेजा बारातियों को उनकी इच्छा अनुसार भेट दी गई  सबको सोना चांदी आभूषण दिए गए इस प्रकार जनक ने  अपरमित  दहेज दिया जो कहा नहीं जा सकता सब सामान सजाकर राजा जनक ने अयोध्या को भेज दिया तब राजा जनक दशरथ से हाथ जोड़कर बोले आपने मेरा हर प्रकार से बहुत मान रखा

मिले लखन रिपूसूदनाहि दीन अशीश महीश
भये परस्पर प्रेम वश फिरी  फिरि नावाही शीश

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उसके बाद राजा ने चारों भाइयों राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न को आशीर्वाद दिया चारों भाइयों ने प्रेम के वश पिता समान ससुर को शीश नवाया फिर जनक ने चारों बेटियों को आशीर्वाद दिया राजा दशरथ से कहने लगे इनको अपनी बेटी समझना और कह कर रो पड़े माताओं ने चारों बेटियों को रोते हुए विदा किया बरात जनकपुर से चलने लगी गांव के स्त्री-पुरुष बरात को देखकर प्रसन्न थे 

बीच बीच बर वास करि मग लोगन सुख देता 
अवध समीप पुनीत दिन पहुंची आई जनेत   

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बीच-बीच में सुंदर मुकाम करती हुई रास्ते में लोगों को सुख आराम देती हुई रात दिन की दूरी तय करके बडे सुंदर दिन में अयोध्या नगरी के समीप पहुंची 


जब राजा दशरथ पुत्रों व वधुओ सहित रनिवास में आते है। ab Raja Dasharath Putron va Vadhuo Sahit Ranivaas Mein Aate Hai.





देखी समाज मुदित रनवासू सब के उर अनंद कियो बासू
कहेउ भूप जिम भटाऊ विवाहू सुनि सुनि हरषु होत सब काहू

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यह समाज यानि अयोध्या नगरी को देखकर  राजा रानी एवं सभी प्रसन्न हो गए सबके मन में बहुत ही आनंद हुआ फिर राजा दशरथ ने जैसे विवाह हुआ सारा हाल सभी को बताया उसे सुनकर सभी को खुशी हुई फिर राजा जनक की सेवा सत्कार उन्होंने किस प्रकार किया सब रानियों को प्रेम पूर्वक बताया रानियां यह सब जानकारी बहुत प्रसन्न हुई फिर पुत्रों सहित राजा ने एहसान कर के ब्राह्मण गुरु कुटुंबीयों को बुलाकर अनेक प्रकार के भोजन किए श्री रामचंद्र जी को देखकर और उनसे जाने की अनुमति लेकर अपने अपने घर को गए


नप्र सब भाँति सवाहि ही सनमानी कही म्रदू बचन बुलाई
रानीवधुलरिकनी पर घर आई राखेऊ नयन पलक की नाई

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फिर राजा दशरथ ने सब  का सम्मान किया कोमल वचन कह कर रानियों को बुलाया और कहा यह बहुएं बच्ची हैं पराए घर मैं आई हैं इनको इस प्रकार से रखना जैसे आंखों को पलक रखती हैं बच्चे थके हुए हैं कई दिन से सोए नहीं है इनको आराम कराओ ऐसा कहकर राजा दशरथ  के चरणों में मन लगाकर रामचंद्र जी विश्राम भवन में चले गए

सेज रुचिर रची राम उठाये प्रेम समेत पलंग पहचाये
आग्या पुनि पुनि भाइन दोनों निज निज सेज सयन तिन किन्ही

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इस प्रकार राम को उठाकर पलंग पर सुलाया राम ने बार-बार भाइयों को आज्ञा दी तब वह भी जाकर सो गए भोर हुई सभी भाइयों  नित्य कर्म करके पूजा पाठ करके अपनी माताओं के चरण कमलों में शीश नवा कर आशीर्वाद लिया तब माताओं ने कहा है


मेरे बेटे राम लक्ष्मण तुमने रास्ते में जाते हुए मायावी राक्षसी ताड़का को कैसे मारा और इतने बड़े राक्षस सुबहूं और मारीच और उनके साथियों को कैसे मृत्यु लोक पहुंचाया और हे तात मुझे बहुत हर्ष होता है कि मुनि की कृपा से ईश्वर ने हमारी सारी बला को टाल दिया और तुम दोनों ने गुरुजी के यश की रखवाली करके सभी प्रकार की विधाएं पाई


मुनितिय तरी लगत पग धूरी कीरती रही भुवन भरी पूरी
कमट पीठ पब कूट कटोरा नृप समाज में शिव धनू तोरा

Ramayan

राम तेरे पैर की ठोकर लगते ही मुनि पत्नी अहिल्या पत्थर से नारी बन गई तीनों लोको मैं बेटा तेरी कीर्ति फैल गई इतने भारी धनुष जिसको रावण जैसी शूरवीर हिलाना सके उस शिव जी के धनुष को भरी सभा में तिनके की भांति तोड़ दिया तुमने तीनों लोको  मैं अपनी यश पताका फहराइ सभी भाइयों को ब्याह कर घर लाए यह कार्य कोई साधारण मनुष्य तो नहीं कर सकता

 जिन्हें केवल मुनि विश्वामित्र की कृपा से सभी कार्य हुए सद्गुरु की कृपा हुई है सब गुरु की कृपा हुई है  हे तात तुम्हारा चंद्रमुख देखकर हमारा जग में जन्म लेना सफल हो गया तुमको देखे बिना जो दिन बीते हैं प्रभु उनको गिनती में ना लाएं फिर राम चंद्र जी ने मीठी वाणी से वचन बोलकर माताओं को संतुष्ट किया फिर शिव गुरु और ब्राह्मणों के चरणों का स्मरण करके आंखों को निंद्रा के वश किया

पुरि पुराजित राजती रजनी रानी कहाहि विलोक हू सजनी
सुंदर वधुन्ह सासु ले सोई फरिकन्ह जनु सिर मनि उर गोई

Ramayan

 

रानियां कहने लगी है सजनी आज की रात कितनी सुशोभित हो रही है जिससे अयोध्यापुरी अति सुंदर लग रही है सांसे बहुओं को लेकर सो गई मानो सपनों ने अपने सिर की मणियों को मन में छुपा लिया हो प्रातः काल प्रभु राम  उठे प्रभु ने स्नान और पूजा कर के माता पिता व गुरु की वंदना की आशीर्वाद पाकर सभी भाई प्रसन्न हुए फिर  वे राजा के साथ पधारे फिर चारों भाइयों ने सरयू नदी मैं स्नान किया और  प्रात क्रिया करके फिर पिता के पास आए

राजा ने देखते ही उन सभी भाइयों को अपने सीने से लगा लिया फिर वह पिता की आज्ञा पाकर हर्षित होकर राजा के पास बैठे  गए सभी के दर्शन कर राजा जनक के सभी संताप मिट गए फिर मुनि वशिष्ठ विश्वामित्र आए राजा ने उनको आसनों पर बैठाया फिर पुत्रों सहित उनकी पूजा करके चरणो में वंदना की दोनों गुरु राम जी को देखकर प्रेम   मुग्ध हो गए

राम जी की शादी के बाद की रीति रिवाज Ram jee kee shaadee ke baad kee reeti rivaaj

गुरु वशिष्ठ राजा दशरथ और सभी परिवार वालों के साथ महलों में गुरु विश्वामित्र के इतिहास के बारे में बात कर रहे हैं जो मुनियों के मन को भी आगम्य हैं गुरु वशिष्ट ने बहुत प्रकार से वर्णन किया है


वोले वाम देव सब सांची कीरति कलिक लोकाति हूँ मांची
सुन आनंद भयऊ सब काहू राम लख उर अधिक उछहूँ

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वामन देव बोले यह सब बातें सत्य हैं विश्वामित्र जी की सुंदर   कीर्ति तीनो लोक में छाई हुई है यह सुनकर भरी सभा में बैठे सभी लोगों को बहुत आनंद हुआ राम लक्ष्मण का मन वामन देव की बातें सुनकर हर्षित हो गया

अवध में रोजाना नए-नए उत्सव मंगल गीत हो रहे हैं इस तरह मंगल गीतों में  बहुत दिन बीतते  चले गए  अयोध्या के उत्सवों में रोजाना भीड़ एकत्र हो जाती  दिन प्रतिदिन भीड़ बढ़ती जाती हैं 

शुभ दिन देखकर कंगन खोले गए रोजाना नए कार्यों को देखकर देवता खुश होते और ब्रह्मा जी से निवेदन करते हैं कि हमारा जन्म अयोध्या में हो विश्वामित्र रोजाना अपने आश्रम जाना चाहते हैं लेकिन राम के प्रेम  वश रुक जाते हैं रोजाना राजा का मुनि की सेवा भाव देखकर राजा दशरथ की सराहना करते हैं


काफी दिन बीत गए फिर मुनि विश्वामित्र ने विदा मांगी तो राजा पुत्रों सहित मुनि  के आगे खड़े हो गए और बोले हे राजन् यह धन दौलत संपदा सब आपकी हैं हम सब आपके सेवक हैं मुनि बस यह बच्चों पर सदा प्यार करते रहिए और मुझे भी दर्शन देते रहिए ऐसा कहकर राजा दशरथ मुनि के चरणों में गिर पड़े उनके मुंह से आवाज तक नहीं निकली


दीन्ह आशीश विप्र वहूँ भांति चलेन प्रती रिति कहि जाती
राम सप्रेम संग सब भाई आयुष पाई फिरे पहुंचाई

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ब्राह्मण मुनि विश्वामित्र जी ने बहुत प्रकार से आशीर्वाद दिया और फिर चल पड़े प्यार की रीति कहीं नहीं जाती  फिर सब भाइयों को साथ लेकर राम गुरु विश्वामित्र  को आश्रम में पहुंचा कर वहां से वापस लौटे गुरु विश्वामित्र मन ही मन बड़े हर्ष के साथ रामचंद्र जी के रूप और राजा दशरथ की भक्ति चारों भाइयों का विवाह और वहां की खुशी को मन ही मन   सराहते हैं 

बामदेव देव रघुकुल गुरु ग्यानी बहुरि गाधि सुत कथा बरवानी
सुनि मुनि सुजसु मनाहि मन राऊ वरनत आपन पुन्य प्रभाऊ

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वामन देव रघुकुल गुरु वशिष्ठ जी ने गुरु विश्वामित्र की कथा बरवान कर कहीं मुनि की मधुर वाणी सुनकर राजा मन ही मन अपने   पुण्य का वर्णन करने लगे जब गुरु वशिष्ट ने सभी को जाने की आज्ञा दी तब सब लोग अपने अपने घरों को लौटे रामचंद्र जी के विवाह की कथाएं जगह-जगह बखान  की जा रही हैं

रघुकुल शिरोमणि श्री रामचंद्र जी का यश तीनों लोको में गूंज रहा है रामचंद्र जी जब से विवाह करके अयोध्या आए हैं तभी से नगरी में सभी सुख वैभव आनंद छा गए हैं प्रभु राम के विवाह का उत्सव हुआ उसे सरस्वती व  सर्पों के राजा शेषनाग भी नहीं कह सकते सीताराम  के यश और कवियों द्वारा राम के कुल को पवित्र करने वाला सुखों की मूर्ति जानकर इसमें मैंने अपनी वाणी को पवित्र करने के लिए कुछ थोड़ा सा बखान करके कहा है


निज गिरा पावन करन कारण रोम जस तुलसी कहों
रघुवीर चरित अपार वरिधि पारु कवि कोने कहो
उपवीत ब्याह उछाह मंगल सुनजे सादर गावाहि
वैदेही राम प्रसाद जन सर्वदा सुख पा
वहीं

अपनी आवाज को सुंदर बनाने के लिए तुलसीदास  ने राम का यश कहा है नहीं तो राम  का अपार चरित्र समुंद्र से भी बड़ा है किसी भी कवि ने उस पार किनारा नहीं पाया है 

जो लोग सीता राम विवाह की कथा जगह जगह गाएंगे उन पर सदा राम जानकी सीता माता की कृपा सदा बनी रहेगी उनको सभी जन्मों के पापों से मुक्ति मिलेगी और वह सीधे राम के वेंकुण्ठ धाम में पवित्र स्थान पाएंगे जो लोग सीता रामचंद्र के विवाह का प्रसंग गाएंगे और सुनेंगे उनके लिए सदा सुख ही सुख रहेगा क्योंकि श्री रामचंद्र जी का यश मंगल का धाम है 

मेरे प्रिय भाइयों यहां पर रामायण का बालकांड पूरा हो जाता है आगे हम आपको अयोध्या कांड में लेकर चलेंगे आशा है आप सभी को प्रभु श्री रामचंद्र जी व सीता माता सहित शेष सभी भाइयों का प्रसंग पसंद आया होगा और मैं आप सभी से प्रार्थना करता हूं कि इस रामायण के सभी भागों को अपने बच्चों तक पहुंचाएं ताकि वह पुरुषोत्तम राम व सीता माता के बारे में जान सके प्रभु आप सभी पर सदा अपनी कृपा बनाए रखें




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