राम जी का 14 वर्ष वनवास जाने की आज्ञा लेना |
सुनि जननी सोई सुत बड भागी जो पितू मात वचन अनुरागी
Ramayana
तनय मात पितू तोष निहारा दूलर्भ जननि संकल संसारा
हे माता सुनो वही पुत्र बड़भागी होता है जो माता पिता के वचनों का पालन करें और अपने पिता को सब प्रकार से संतुष्ट करें हे जननी संसार में ऐसे पुत्र कम ही मिलते हैं माता केकई जब मैं वन जाऊंगा तो वहां पर मेरा बड़े-बड़े महान तपस्वी साधु संतों से मिलना होगा जिससे मेरा सभी प्रकार से कल्याण होगा और फिर पिताजी की आज्ञा और वचनों को पूरा करना मेरा कर्तव्य है और मेरा प्रिय अनुज जो मुझे प्राणों से प्यारा है वह अवधपुरी का राजा बनेगा आज प्रभु सर्व प्रकार से मेरे समक्ष खड़े हैं यदि ऐसे काम के लिए मैं वन को ना जाऊं अज्ञानियों में सबसे पहले मेरी गिनती होगी
हे माता मुझे एक ही दुख हो रहा है इस छोटी बात के लिए महाराज इतनी दुखी क्यों हैं क्योंकि महाराज बड़े ही धीर और गुणों के समुंद्र हैं अवश्य ही मुझसे कोई बड़ा अपराध हो गया जिसके कारण महाराज मुझसे कुछ नहीं कहते तुम को मेरी सौगंध है माता तुम ही सच सच बताओ रानी केकई रामचंद्र का रुख जानकर बड़ी खुश हो गई और बोली मुझे राजा के दुख का कुछ कारण पता नहीं इतने मैं राजा की मूर्छा दूर हुई राम का नाम लेकर करवट बदली सुमंत ने कहा महाराज राम आपके सामने खड़े हैं राजा ने श्रीराम को अपने चरणों में पढ़ते देखा
लिये सनेह विकल उर लाई गई माणि मनहू फनिक फिरि पाई
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समाहि चितई रहे ऊ नरनाहा चला विलोचन बरि प्रवाहा
प्यार के वश राजा दशरथ ने राम को सीने से लगा लिया मानो सांप को खोई हुई मणि दोबारा मिल गई हो राजा दशरथ राम को देखते रह गए उनकी आंखों से आंसुओं की धार बहने लगी दुख के कारण राजा कुछ बोल ना सके वह बार-बार राम को सीने से लगाते हैं और मन से ब्रह्मा की पूजा करते हैं और कहते हैं श्री राम वन जाने की जिद छोड़ दें फिर वह महादेव की वंदना करते हैं हे सदाशिव भोले शंकर आप थोड़े में प्रसन्न होने वाले दानी हैं मुझे अपना दिन सेवक जानकर मेरे दुखों को दूर कीजिए आप राम के बुद्धि को ऐसा कर दो कि वह मेरे वचन को त्याग कर वन को ना जाए
मैं अपने वचनों को नहीं मानता चाहे संसार मुझे पापी कलंकी कहे चाहे मुझे नरक या स्वर्ग मिले मैं हर दुख सहने को तैयार हूं लेकिन राम मेरी नजरों के सामने रहे फिर राम ने महाराज से कहा महाराज इस छोटी सी बात के लिए आपने इतना कष्ट सहा मुझे पहले क्यों नहीं बताया फिर मैंने माता केकई से पूछा तब सारा प्रसंग पता चला
आप के वचनों का पारण कर 14 वर्ष वन में रहकर शीघ्र ही लौटूंगा महाराज आप मुझे वन जाने की आज्ञा दें जब महाराज कुछ नहीं बोले तो राम ने कहा महाराज मैं माता से आज्ञा लेकर वन जाते समय आपसे मिल कर जाऊंगा इस बात को नगर में फैलने में देर ना लगी पूरे नगर में हाहाकार मच गया चारों तरफ सन्नाटा छा गया अवध वासी आपस में विचार करने लगी की बनी बनाई बात विधाता ने कैसे बिगाड़ दी जगह-जगह लोग केकई को गाली दे रहे थे
है पापीन तूने यह क्या कर दिया केकई तुम तो सदा कहती थी भरत से ज्यादा मुझे राम प्यारे हैं फिर आज तेरी मती कैसे मारी गई आज किस अपराध से राम को वन दे दिया
क्या सीता जी अपने पति का साथ छोड़ देंगी क्या लक्ष्मण बिना राम के रह सकेंगे चलो ठीक है भरत को राजा बना दो लेकिन राम को वन मत भेजो राम राज के भूखे नहीं है केकई तुम राजा से दूसरा ऐसा वर ले लो कि राम गुरु वशिष्ठ के आश्रम में रहे पर राम को वन मत भेजो राम के वियोग में प्रजा व्याकुल हो गई है
अति विसाद बस लोग लुगाई गये मातु पहि राम गोसाई
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मुख प्रसन्न चित्त चौगुन चाऊ मिटा सोच जनि राखे राऊ
नगर के सभी स्त्री-पुरुष दुखी हो रहे हैं रघुकुल शिरोमणि राम माता कौशल्या के पास गए राम का मुख प्रश्न है शरीर में जोश भरा है उनको वन जाने का कोई दुख नहीं है श्री रामचंद्र जी ने दोनों हाथ जोड़कर माता के चरणों में शीश नवाया माता ने आशीर्वाद देकर सीने से लगाया और न्योछावर की माता बारबार राम का मुख चुमती हैं सुनती है और कहती है राम वह शुभ लग्न आने में कितना समय बाकी है जब तिलक होगा माता के स्नेह भरे वचन सुन राम कहते हैं हे माता मैं आपको कुछ बता रहा हूं अपना मन शांत और निडर होकर सुनना माता केकई के महाराज पर दो वरदान थे जो माता ने आज महाराज से मांगे पहले मैं भरत राजा और दूसरे में मुझे तपस्वी भेश में 14 वर्ष का वनवास दिया माता माता मैं 14 वर्ष का वनवास पूरा करके जल्दी लौटूंगा माता कौशल्या सुनते ही मूर्छित होकर गिर पड़ी
धरि धरिजु सुत बदन निहारी गदगद बचन कहत महतारी
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तात पितहि तुम प्राणपियारे देखि मुदित नित चरित तुम्हारे
माता कौशल्या अपने मन में धीरज धर अपने प्रिय राम का मुख देखकर मधुर भाषा में कहने लगी हे पुत्र तुम अपने पिता को प्राणों से प्यारे हो वह रोजाना तुम्हें देखकर प्रसन्न होते हैं
मंत्री के पुत्र ने श्रीराम से कहा माता केकई ने तो यह दिन राजतिलक के लिए चुना था फिर आज किस अपराध से वन जाने को कहा हे प्रभु आप मुझे इसका कारण बताओ सूर्यवंश को जलाने का कार्य किसने किया
फिर मंत्री पुत्र राम का रुख देखकर राम से कहा हे राम माता कौशल्या का मन धर्म नीति मर्यादा के कारण वश काम नहीं कर रहा वह सोच रही हैं कि यदि राम को वन जाने से रोकते हैं तो राजा वचन हार जाएंगे और यदि राम वन जाते हैं तो बड़ी हानि होगी रानी फिर माता का धर्म समझकर और राम और भरत दोनों का समान अधिकार मानकर बड़े ही धैर्य करते हुए कौशल्या ने कहा यदि माता-पिता दोनों ने वन जाने की आज्ञा दी है तो अयोध्या से ज्यादा अच्छा वन है
वन में तुम को सभी अपने मिलेंगे वहां के पशु पक्षी तुम्हारे चरण कमलों के सेवक होंगे राजा के लिए अंत में वनवास देना ही ठीक है वह भी अपने वचनों से बंधे हैं पर मेरे पुत्र तुमको देख कर मन में दुख होता है हे राम वन बहुत ही भाग्य वान है जिसके लिए तुमने अवध को त्याग दिया यह अवध बहुत अभागी है
पूत परमप्रिय तुम सवही के प्राण प्राण के जीवन जी के
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ते तुम कहहू मात वन जाऊ में सुनि वचन बैठी पछिताऊ
हे राम तुम सभी को पिया हो हमारे सभी के प्राणों के प्राण हो और तुम बार-बार कहते हो माता मैं वन को जाऊ और मैं तुम्हारे वचनों को सुनकर परेशान हूं क्योंकि क्या तुम्हारा बन जाना जरूरी है आज हमारे सभी के पुण्य कर्मों का फल पूरा हो गया कष्ट का समय हमारे सामने आ गया है माता कौशल्या ने कहा बहुत विलाप किया और अपने आपको भाग्य हीन समझकर रामचंद्र जी के पैरों में लिपट गई
राम चंद्र जी ने माता को उठाकर अपने सीने से लगा लिया और फिर मीठे वचनों से माता को समझाया
समाचार तेहि समय सुनि सीय उठी अकुलाई
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जाई सासू पद कमल युग वर्नद बैठी सर नाई
सीता जी को पता चला कि राम वन को जा रहे हैं तो एकदम उनको ऐसा डर लगा कि उनके पैरों तले से जमीन खिसक गई हो और तभी माता सीता जी अपनी सास के चरण पकड़ कर बैठ गईमाता कौशल्या ने बड़े ही प्रेम से सीता जी को आशीर्वाद दिया माता कौशल्या सीता जी को देखकर व्याकुल हो गई सीता जी जो अपने स्वामी राम के बिना एक पल नहीं रह सकती वह अपनी सांस के चरण पकड़ कर मन में सोच विचार कर रही हैं और मन ही मन अपने प्रभु राम से प्रार्थना कर रही हैं कि हे स्वामी मैं तो आपकी परछाई हूं तो आपके बिना कैसे रह सकूंगी मुझे अपने साथ वन को ले चलो हे नाथ में वहां पर आपकी दासी बनकर आपके साथ रहूंगीसीता माता ने कौशल्या माता से कहा माता मुझे मेरे स्वामी के साथ वन जाने की आज्ञा दें मैं बिना स्वामी के नहीं रह सकती माता जहां शरीर है वहीं पर है क्या बिना शरीर के माता प्राण रह सकते हैं माता कौशल्या ने काफी समझाया तो सीता जी ने विलाप शुरू कर दिया तब माता कौशल्या ने अति व्याकुल होकर सीता जी को आज्ञा दी
समाचार जब लक्ष्मण पाए व्याकुल बिलख बदन उठी धायें
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कम्प पुलक तन नयन समीरा गये चरण अति प्रेम अधीरा
जब लक्ष्मण को पता चला मेरे प्रभु राम और सीता मैया पिता की आज्ञा से 14 वर्ष के वनवास को वन जा रहे हैं तो वह एकदम व्याकुल हुए और दौड़े हुए प्रभु राम के चरणों में लिपट गए और बोले भैया आप जानते हैं कि मैं आपके बिना नहीं रह सकता तो आप दोनों अपने सेवक को छोड़ कर कैसे जा सकते हो मैं आपके साथ चलूंगा और मुझे आपके अलावा किसी की आज्ञा की आवश्यकता नहीं है राम ने लाख समझाया पर लक्ष्मण नहीं माने तब राम ने कहा लक्ष्मण शीघ्र ही माता सुमित्रा जी से वन जाने की आज्ञा लेकर आओ लक्ष्मण जी राम की आज्ञा पाकर सुमित्रा जी के पास महल में जाते हैं रास्ते में विचार करते जा रहे हैं कहीं मेरी माता पुत्र मोह से मुझे भैया के साथ वन जाने को मना कर दे तो क्या होगा लेकिन वन तो जाना है माता के पास जाकर माता के चरणों में शीश झुकाया फिर माता को सारा समाचार बताया तो माता सुमित्रा ने कहा पापिनी केकई ने घात लगाकर छल क्या है माता बोली जहां तुम्हारे भ्राता राम रहे तुम वही अयोध्या समझना पुत्र राम को पिता और सीता को माता समझना और जब राम व सीता बन जा रहे हैं तो अयोध्या में तुम्हारा क्या काम और श्रीराम तो तुम्हारे प्राण हैं उनको वन में कोई कष्ट मत होने देना और उनके साथ वन जाओ और संसार में जीने का लाभ उठाओ और पुत्र मैं तुम्हें आशीर्वाद देती हूं श्री सीता राम के चरणों में तुम्हारी भक्ति रहे उन्हें सदा अपना स्वामी मानना माता से आज्ञा लेकर लक्ष्मण प्रभु राम के पास आए फिर रामचंद्र जी सीता जी और छोटे भ्राता लक्ष्मण सहित राजा दशरथ के पास आए सुमंत ने राजा को सहारा देकर बिठाया और कहा राम वन की आज्ञा लेने आए हैं साथ में सीता जी लक्ष्मण जी हैं
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