मंथरा दासी की बात केकई के मन में समा गई देवताओं के द्वारा मंथरा दासी से की गई गाथा के वश में होने के कारण गुप्त कपट वचनों को सुनकर केकई ने मंथरा को अपने हित की बात करती जानकर उसकी बात का विश्वास कर लिया मंथरा दासी अपना खेल खेल चुकी थी मंथरा समझ गई की रानी पर उसकी बातों का भरोसा हो गया है और वह केकई से बोली कि मैं आपसे आपके हित की बात कहने में डरती हूं क्योंकि आपने पहले ही मेरे कितने कलंकित नाम रख दिए हैं बहुत तरह से सोच समझकर फिर कहने लगी
प्रिय सियाराम कहा तुम रानी रामहि तुम प्रिय सो फुरि बानि
Ramayan
रहा प्रथम अबते दिन बीते समय फिरे रिपू होहि पिरीते
रानी तुमने कहा की तुम्हें सीताराम बहुत प्रिय हैं और राम को तुम प्रिय सो मैं जानती हूं यह बात ठीक है लेकिन यह बात पहले थी अब वह दिन बीत गए समय पलट जाने पर मित्र भी बैरी हो जाता है रानी सुनो सूर्य कमल के कुल का पालन करने वाला है लेकिन जल ना हो तो सूर्य उन को जलाकर भस्म कर देता है सो हे रानी कौशल्या तुम्हारी बेल काटना चाहती है कुछ भी उपाय करके उसे रोको राम की माता बड़ी चालाक चतुर है उसे पहले ही भरत को राजा जी से कहकर ननिहाल भेज दिया उसमें बस आप राम की माता की सलाह मानिए
राजा दशरथ आप से अधिक प्रेम करते हैं कौशल्या को उस से जलन होती है इसलिए उसने जाल फैलाकर साजिश के तहत राजा को अपने वश में करके राम के तिलक के लिए समय सुनिश्चित किया उल्टा सीधा करके दासी मंथरा ने केकई कि मती फेर दी होनी बलवान होती है देवता दासी मंथरा और केकई के मन को भ्रमित कर रहे थे
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भावी वश प्रतीत उर आईपुछि रानी फिर शपथ दिलाई
का पूछ हूँ तुम अब हुनजाना निज हित अनहित पशू पहिचाना
समय बलवान था आखिर केकई मान ही गई फिर सौगंध दिला कर दासी से कहने लगी पूछो क्या पूछती हो दासी मंथरा बोली तुम अब भी नहीं समझी अपना बुरा भला पशु भी जानते हैं और रानी मैंने आपका अन्न खाया है इसलिए आपका भला सोचती हूं इसलिए सच कहने में मुझे कोई दोष नहीं है अगर कल राम का तिलक हो गया तो आपको जीवन भर दुख दुख झेलना पड़ेगा रानी मैंने पंडितों से पूछ है वह कहते हैं भरत अवश्य राजा बनेंगे है रानी एक उपाय है अगर तुम कहो तो बताऊं राजा आपके बस में है दासी मंथरा की बात सुनने में तो कोमल है परंतु परिणाम में कठोर हे रानी एक बार आपने मुझे एक कथा सुनाई थी आपको याद है कि नहीं आपके दो वरदान राजा के पास सुरक्षित हैं आज वरदान में राम को वनवास भरत को राज और कौशल्या का सारा सुख लेकर अपना सीना ठंडा करो
भूपति राम शपथ जब करई तब मांगे हूँ जेहि वचन नहरई
Ramayan
होई अकाज आजु निशि बीते वचन मोर प्रिय मानेऊ जीते
जब राजा दशरथ राम की सौगंध खा लें तब तुम अपनी बात राजा के समक्ष कहना जिससे राजा वचन में बंध जाएं और आपका मांगा हुआ वचन खाली ना जाए अगर आज की रात बीत गई तो फिर जीवन भर रोना पड़ेगा मेरी बात को मन से लगाकर समझना दासी मंथरा ने ऐसी बुरी तरह रानी को घात लगाकर कहा कि कोप भवन में जाओ काले कपड़े पहनो केस खुले रखो वहां जाकरअन्नजल सब त्याग दो यह सारे काम सावधानी से करना और राजा पर विश्वास मत करना जब तक अपना काम ना बन जाए दासी मंथरा को रानी ने प्राणों के समान प्रिय समझकर कहा दासी तेरे जैसा संसार में मेरा तेरे सामान हितकारी और कोई नहीं है तू मेरे लिए सहारा बनी अगर प्रभु ने कल को मेरा काम बना दिया तो मैं तुझे अपनी आंखों की पुतली बना लूंगी राम को 14 वर्ष का वनवास भरत को राज मन में विचार कर मंथरा को अपने प्रिय सखी मानकर फिर कोप भवन में चली गई
विपति वीज वर्षा ऋतु चेरी भुई भई कुमति केकई केरी
पाई कपट जल अंकुर जामा वर दोऊ दल दुख फल परिनामा
विपत्ति बीज है दासी वर्षा ऋतु है केकई की को बुद्धि कुबुद्धि जमीन हो गई उसमें कपट रूपी जल पाकर अंकुर फूट निकला दोनों वरदान उस अंकुर के 2 पत्ते हैं और अंत में इसके दुख रूपी फल होगा कैकई कोप भवन का सब साज सजाकर जा सोई राज महल में सब तैयारी चल रही है इस कुचली चाल के बारे में किसी को पता नहीं है
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