केकई का राजा दशरथ से दो वरदान मांगना| kekai ka raja dasharath se do varadaan maangana


राजकुमार भरत की माता केकई कोप भवन चली गई उनके बारे में महल में किसी को पता नहीं चला पूरी नगरी सजी हुई है सब राम के तिलक की तैयारी में लगे हुए हैं माता कौशल्या रनिवास में अपने आराध्य की वंदना कर रही हैं नगर के वासी सभी स्त्री-पुरुष मंगल गीत बाजे नगाड़े सभी साज तैयारी कर रहे हैं कोई भीतर जाता है कोई बाहर निकलता है महल के दरवाजे पर बहुत भीड़ हो रही है



kekai ka raja dasharath se dovaradaan maangana


 

बाल सखा सुनि हिय हरषाही मिल दस पांच राम पहि जाहि
प्रभु आदर ही प्रेम पहिचानी पुछहि कुशल खेम भ्रद्धवानी

Ramayana






रामचंद्र के तिलक की खबर जब राम के बचपन के मित्रों को लगी तो वह बहुत खुश हुए और कुछ मित्र राम जी से मिलने महल में आते हैं प्रभु राम ने उनको आते देख दूर से ही पहचान लिया और उनका बड़े ही प्रेम से आदर सत्कार किया और मीठे वचनों से उनकी कुशलक्षेम पूछी वह राम से मिलकर बहुत ही प्रसन्न हुए और बोले राम जैसा स्नेही और कोई नहीं है और राम की बढ़ाई करते हुए अपने अपने घर पहुंचे नगर में सब की ऐसी अभिलाषा है लेकिन केकई के मन में बड़ी जलन हो रही है बुरी संगति पाकर ऐसा कोई नहीं है जो नष्ट ना हो किसी के बहकावे में आकर नीच कार्य करने को समझदारी नहीं कहते





सांझ समय सानंद नृप गयऊ केकई गेह
गवनु निठुरता निकट किय जनु धारि देहि सनेह

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शाम का समय था राजा दशरथ रानी केकई से मिलने उनके महल गए तो पता चला रानी कोप भवन चली गई कोप भवन का नाम सुनते ही राजा के होश उड़ गए डर के मारे उनका पैर आगे नहीं पढ़ा स्वयं देव राज इंद्र जिनकी भुजाओं के बल की वजह से किसी राक्षस या कोई भी राजा से रणभूमि में विजय पाते हैं आज तीनों लोकों में सूर्यवंश की पताका लहरा रही हो वह राजा आज केकई का क्रोध सुनकर डर गए हैं यह कैसी प्रभु की लीला है राजा डरते डरते अपनी प्यारी रानी केकई के पास गए उनकी हालत देखकर राजा को बहुत दुख हुआ कि केकई काले कपड़े पहनकर केस खोलकर जमीन पर पड़ी है सारे आभूषण उतार कर फेंक दिए राजा दशरथ केकई के पास गए और बड़े मीठे स्वर में बोले हैं प्राण प्रिय किस कारण नाराज हो और राजा ने हाथ से स्पर्श किया तो रानी ने झटके से हाथ को हटा लिया और क्रोध में ऐसे देखा जैसे नागिन क्रूर नजर से देख रही हो वरदान की वासनाए उस नागिन की दो जीभ है और दोनों वरदान उसके दांत हैं जो सोच रही है कहां से वार करूं
तुलसीदास जी कहते हैं कि राजा दशरथ होनहार के वश में होकर इसे कामदेव की पीड़ा समझ रहे हैं केकई ने छल कपट से राजा को मजबूर कर दिया तब राजा दशरथ बोले मैं तेरी हर बात मानने को तैयार हूं मेरा विश्वास कर मैं राम की कसम खाकर कहता हूं तेरी सारी बात मान लूंगा और रानी तू जल्दी यह बुरा भैंष उतार कर फेंक दे पहले जैसे वस्त्र आभूषण पहनकर मेरे सामने आ केकई राजा की बात सुनकर राम की कसम मन में विचार कर उठी और वस्त्र पहने लगी मानो कोई शिकारी मृग को देखकर धनुष बाण तैयार कर निशाना लगाने को आतुर हो रानी वस्त्र बदलकर राजा के सामने आई और राजा से हंस कर बोली मेरे दो वरदान आप पर उधार है राजा कहते हैं मांग लो आज वह दो वरदान मांगने का समय आ गया राजा ने हंसकर कहा रानी तुमने कभी मांगा ही नहीं तुमने उन वरदानों को धरोहर समझकर और मेरा भूलने का स्वभाव होने से यह वरदान याद नहीं रहे





झंठेऊ हमही दोष जनजानि देऊ दुई के चार मांगि किन लेऊ
रघुकुल रीति सदा चली आई प्राण जाई पर वचन न जाई

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मुझे झूठा दोष मत दो, दो वरदान के बदले 4 मांग लो रघुकुल की यह रीति बहुत पुरानी है प्राण चले जाए पर वचन ना जाए राजा के काफी समझाने पर रानी नहीं मानी उसने कह दिया राजा सुनो पहले वचन में भरत को राज और दूसरे वचन में राम को 14 वर्ष का वनवास तपस्वी के भेष में इसके अलावा मुझे और कुछ नहीं चाहिए राजा की सांस रुक गई कैकई राम के बिना मैं नहीं रह सकता मेरे प्राण निकल जाएंगे राजा ने कहा |कैकई नहीं मानी उधर सुमंत्र राजा दशरथ को लेने पहुंचे तो राजा को देखकर सन्न रह गए सुमंत के द्वारा राम को बुलाया राम ने देखा पिता पृथ्वी पर पड़े हैं माता से पूछा केकई माता क्या बात है पिताजी को कौन सा कष्ट है तब उस पापिनी ने कहा पुत्र मोह में राजा जमीन पर पड़े हैं राजा दशरथ कुछ नहीं बोले तब एक कैकई ने कहा राम इन पर मेरे दो वरदान थे मैंने दोनों वरदान मैं भरत को राज और तुम्हें 14 वर्ष का वनवास मांग लिया है




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