सखा समुझि असि परिहारि मोहू सीय रघुवीर चरण रत होहू
Ramayana
कहते राम गुण भा मिनुसारा जागे जग मंगल सुखदारा
केवट का गंगा पार कराना |
लक्ष्मण जी केवट को मीठे वचनों से कह रहे हैं हे मित्र जो सीता राम के चरणों में मन लगाते हैं वह भवसागर से पार हो जाते हैं इस प्रकार केवट और लक्ष्मण जी को आपस में राम के गुणों का वर्णन करते करते सवेरा हो गया तब जगत का मंगल करने वाले गुणों के सागर जानकी माता सीता व प्रभूराम जागे फिर नित्य शोच के बाद सभी ने गंगा स्नान किया और बड़का दूध मंगा कर दोनों भाइयों ने अपनी जटाए बांधी राम लक्ष्मण दोनों भाई शिवजी के समान लगने लगे यह दृश्य देखकर मंत्री सुमंत की आंखों में आंसू आ गए
सुमंत ने हाथ जोड़कर बड़े दुखी मन से कहा कौशल नाथ ,दशरथ जी ने कहा था सुमंत तुम रथ लेकर जाओ और मेरे प्राणों से प्यारे राम लक्ष्मण व सीता को रथ में बैठाकर गंगा स्नान करा कर फिर वापस ले आना और कहते कहते सुमंत प्रभु राम के पैरों में गिर पड़े और उन्होंने बालको की तरह रोना शुरू कर दिया और बोले हे कृपा निधान ऐसा करो जिससे अयोध्या अनाथ ना हो फिर राम ने सुमतं को उठाया और उनसे मधुर वचन बोले हे सुमंत आप तो धर्म परिभाषा जानते हैं कितने ऐसे राजा पृथ्वी पर आए जिन्होंने धर्म को नहीं छोड़ा राजा दधीचि ने धर्म के कारण कितने कष्ट सहे वेद शास्त्र और पुराणों में लिखा है सत्य से बड़ा कोई धर्म नहीं है अगर आज में धर्म का त्याग करता हूं तो तीनों लोकों में अपयश फैल जाएगा पिताजी से जाकर कहना कि वह मेरी किसी बात की चिंता ना करें और लक्ष्मण की चिंता ना करें तब सुमंत बोले राम सीता जी को मेरे साथ वापस भेज दें वह वन के कष्ट नहीं सह पाएंगी
सास ससुर गुरु प्रिय परिवारू फिरहू ते सब कर मिटे खँभारु
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सुनि पति वचन कहति वैदेही सुनहू प्राण प्रति परमं सनेही
रामचंद्र जी कहते हैं सीता अगर तुम वापस अयोध्या लौट जाओ तो माता-पिता परिजन सबकी चिंता मिट जाएगी प्राण पति श्री राम के वचन सुनकर सीता जी बोली हे रघुवर आप तो करुणामय और परम ज्ञानी हैं जरा विचार कीजिए शरीर को छोड़कर छाया अलग कैसे रह सकती है और चांदनी चंद्रमा को त्याग कर कहां जा सकती हैं प्रभु आपके बिना मेरे लिए महल भी किसी काम के नहीं सीता जी ने सुमंत से हाथ जोड़कर विनती की आप वापस लौट जाइए और अयोध्या जाकर माता-पिता व सभी से मेरी तरफ से कहना वह मेरी चिंता ना करें मेरे लिए वन भली-भांति ठीक है और यह भी कहना मेरे पति कंधे पर धनुष बाण धारण किए हैं और साथ में देवर भी हैं तो मुझे वन में कैसा कष्ट सुमंत ने बहुत कहां श्री राम नहीं माने तो सुमंत मन में ही जान गए कि श्री राम की आज्ञा टाली नहीं जा सकती कर्म की गति को कोई नहीं बदल सकता फिर सुमंत प्रभु राम लक्ष्मण व सीता जी के चरणों में शीश नवा कर लौटे जैसे कोई अपना सारा धन जुए में हार कर लौटा हो
राम ,लक्ष्मण सीता सहित गंगा जी के किनारे पहुंचे और केवट से गंगा पार कराने को कहा तो केवट नहीं माना और कहने लगा प्रभु मैंने आप की महिमा सुनी है लोग कहते हैं तुम्हारे पैरों में धूल को मनुष्य बनाने वाली कोई जड़ी बूटी है
छूअत सिला भयी नारी सुहाई पाहन ते न काठ कठिनाई
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तरिनीऊ मुनि धरिनी होई जाई बाट परिई मोरि नाब उडाई
आपके पैरों की धूली लगाने से पत्थर की सिला नारी बन गई मेरी नाव तो कांट की है अगर मेरी नाव उड़ गई तो मैं तो बर्बाद हो जाऊंगा फिर मेरा परिवार कैसे चलेगा मैं तो इसी नाव से पूरे परिवार का पालन पोषण करता हूं इसके अलावा मेरे पास और कोई दूसरा काम नहीं है फिर भी तुम पार जाना चाहते हो तो पहले मैं आपके पैर धोऊंगा
पद कमल धोई चढ़ाई नाब न नाथ उतराई चले
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मोहि राम राउर आन दशरथ शपथ सब साची कहो
बरु तीर मार हूँ लखन पैं जब लग न पाई परवारिहों
तब लगन तुलसीदास नाथ कृपाल पार उतारि हों
हे प्रभु पहले आपके चरण धोकर नाव पर बैठाऊंगा उसके बदले आपसे कोई रुपया पैसा नहीं लूंगा मुझे आपकी दुहाई है दशरथ की सौगंध है सच सच कहता हूं चाहे लक्ष्मण मुझे तीर क्यों ना मार दे पर मैं बिना पैर धोये हे तुलसीदास के नाथ मैं पार नहीं उतारूंगा
केवट के मधुर वचन सुनकर करुणा के सागर श्री रामचंद्र जी और सीता जी लक्ष्मण की ओर देखकर मुस्कुराए
कृपा सिंधू बोले मुसिकाई सोई करू जेहि तव नाव न जाई
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बेगि आन जल पाँय परवारू होत विलम्ब उतारहूँ पारु
कृपा निधान श्री रामचंद्र जी केवट से बोले है भाई तू वही कर जिससे तेरी नाव बची रहे मेरे भाई जल्दी परात ला और पैर धो लें जिससे तेरा संशय दूर हो जाए और हमें गंगा पार करा दे
जिनका नाम एक बार लेने मात्र से लोग भवसागर पार हो जाते हैं और जिसने जगत को तीन पग में नाप दिया हो वही प्रभु आज केवट से गंगा पार करने के लिए विनय कर रहे हैं
प्रभु राम के इन वचनों को सुनकर गंगा मैया मन ही मन प्रसन्न हो गई और जगत के पालनहार की सारी लीला देख रही हैं केवट कठोते में जल ले आया और प्रभु के पग धोने लगा सभी देवता देखकर हर्षित होने लगे और आपस में चर्चा कर रहे हैं कि आज पृथ्वी पर केवट जैसी पुण्य आत्मा नहीं है फिर चरण परवार कर उस जल को पीकर पहले अपने पितरों को भवसागर पार कराया फिर बड़े ही आनंद पूर्वक गंगा जी के पार ले गया
निषाद राज ने पहले श्री राम चंद्र जानकी मैया लक्ष्मण सहित नाव से उतारकर फिर आप भी नीचे आया सभी रेती में खड़े हो गए फिर कृपा निधान श्री राम को संकोच हुआ कि हमने केवट को कुछ दिया नहीं सीता मैया राम के मन की बात समझ गई और मैया ने अपनी रत्न जड़ित अंगूठी उतारी राम ने केवट से कहा केवट भैया नाव की उतराई लो केवट निषाद राज ने प्रभु राम के पैर पकड़ लिए और बोला है कृपया सागर आज मैंने आपको पार कराया कल जब मैं आऊं तो मुझे भवसागर से पार करा देना फिर राम ने केवट को भक्ति का वरदान देकर विदा किया
फिर प्रभु राम ने गंगा स्नान किया व शिवजी की पूजा कर उन्हें शीश नवाया सीता जी ने गंगा मैया से कहा है मैया हमारा मनोरथ पूरा कीजिए
पति देवर संग कुशल बहोरी आई कुरुं जेहि पूजा तोरी
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सुनि सिय विनय प्रेम रस सानी भई तव विमल वारि वर बानी
हे गंगा मैया जब मैं अपने पति और देवर के साथ लौट कर आऊंगी तब आपकी पूजा करूं ऐसा मुझे आशीर्वाद दीजिए सीता जी की विनय मधुर वाणी सुनकर गंगा जी के निर्मल जल से सुंदर आवाज आई हे कृपालु रामचंद्र की प्रियतमा जानकी सुनो तुमको जगत में कौन नहीं जानता सभी देव आपके सामने हाथ जोड़ खड़े रहते हैं आपने जो मेरी विनती की यह तो आपका बड़प्पन है और जो आपने मेरा सम्मान किया है तो हे देवी जगत जननी सीता जी आप प्रभु राम और अपने देवर लक्ष्मण के साथ वापस आए अवध लौटे में ऐसा तुम्हें आशीर्वाद देती हूं तुम्हारी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी और हे प्रभु राम के प्रियतमा संसार में तुम्हारी यश कीर्ति फेलेगी
गंगा वचन सुनि मंगल मूला मुदित सीय सुरि सरि अनुकूला
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तब प्रभू गुहहि कहेऊ घर जाहूँ सुनत सुख मुख भऊ दाहू
सीता जी ने गंगा जी के वचन अपने अनुकूल जाने तब सीताजी मन में हर्षित हुई फिर राम जी ने निषादराज से कहा भैया तुम घर जाओ यह सुनकर केवट निषाद राज के मन में बड़ी पीड़ा हुई तब निषाद राज ने प्रभु से विनती की प्रभु दो-चार दिन में आपके साथ रहकर आपकी सेवा करूंगा आप जहां विश्राम करेंगे वहां पर कुटि बना दूंगा फिर आप जो आज्ञा देंगे वह मुझे स्वीकार होगी फिर राम जी ने निषादराज को अपने साथ ले लिया निषादराज के मन में बड़ी प्रसन्नता हुई फिर उसने अपनी जाति के लोगों को समझा कर वापस किया
प्रभु राम ने गणेश जी और शिव जी का स्मरण कर स्नान कर गंगा को शीश नवाकर लक्ष्मण सीता सहित निषादराज को साथ लेकर वन को चले उस दिन पेड़ के नीचे विश्राम किया लक्ष्मण और निषादराज ने सारी व्यवस्था कर दी फिर सभी ने प्रात काल उठकर प्रयागराज के दर्शन किए
संगम सिंहासन सुठि सोहा छत्रू अखयवट मुनि मन मोहा
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चँवर यमुन अरु गंग तरंगा देखि होहि दुख दरिद भंगा
प्रयागराज में गंगा जमुना सरस्वती तीनों एक साथ बहती हैं इसलिए संगम ही उनका सुंदर सिंहासन है वहां पर एक अक्षयवट क्षेत्र है जो मुनियों के मन को मोह लेता है यहां का नजारा देखकर सबके कष्ट दूर हो जाते हैं ऐसे तीर्थ के दर्शन कर राम जी के साथ सभी ने सुख पाया फिर श्री राम ने प्रयागराज की महिमा सबको सुनाई त्रिवेणी में स्नान करके शिवजी की पूजा की फिर सभी तीर्थराज देवों की पूजा की सब के साथ प्रभु राम जी वाल्मीकि मुनि के आश्रम आए मुनि ने राम को अपने सीने से लगा लिया उनके मन का हर्ष कुछ कहा नहीं जा सकता उनको लग रहा था जीवन भर की तपस्या का पुन्य आज प्रभु ने सामने रख दिया हो मुनिराज ने उन को आसन दिए कुशलता पूछी और फिर पूजा करा कर सबको संतुष्ट किया कंदमूल फल उनको खाने को दिए सभी ने प्रेम सहित फल खाए
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