राम जी का वनवास के लिए रवाना होना| Ram ji ka vanavaas ke lie ravaana hona


राजा दशरथ ने देखा राम के साथ सीता जी और लक्ष्मण दोनों आए हैं तो राजा तीनों को देख व्याकुल हो जाते हैं और मोह के वश बार-बार उनको अपने हृदय से लगाते हैं राजा अत्यंत दुखी हैं कुछ बोल नहीं पा रहे तब राम ने बड़े ही प्रेम से अपने पिता के चरणों में शीश नवाया फिर उठकर वन जाने की आज्ञा मांगी और कहा पिताजी मुझे आशीर्वाद दीजिए ,खुशी के समय दुख कैसा पुत्र मोह त्याग दीजिए एक राजा होने का कर्तव्य निभाइये पुत्र मोह में आपकी यश कीर्ति को हानि हो सकती हैं संसार में आपकी निंदा होगी राम को राजा ने अपने पास बैठाया और बोले राम आपके बारे में साधु संत ऋषि मुनि कहते हैं कि राम चराचर के स्वामी है राजा ने राम को रोकने के बहुत से उपाय किए तब राजा ने देखा राम मेरे वचनों के खातिर वन जाएंगे वह श्री राम का मन समझ गए



ram ji ka vanvas kitne saal ka tha
राम जी का वनवास के लिए रवाना होना


तव नृप सीय लाय उर लीन्ही अति हित बहुत भांति सिंख दीन्ही
कहि वन के दुख दुसह सुनाये सास ससुर पितु सुख समझायें

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राजा दशरथ ने सीता जी को सीने से लगा लिया और अनेकों शिक्षा दी उन को होने वाले दुख के बारे में बताया फिर सास-ससुर और पिता के पास सुखों को समझाया सीता जी का मन तो रामचंद्र जी के चरणों में था फिर उनके लिए क्या घर क्या महल क्या फर्क पड़ता ना उन को वन जाने का डर लगा लोगों ने वन की परेशानी सीता जी को बताई पर जनक नंदिनी सीता पर कोई असर ना हुआ सुमंत की पत्नी गुरु माता ने कहा सीता तुम्हें तो वनवास राजा ने नहीं दिया फिर तुम तो जो सास-ससुर माता-पिता कहे वही करो सीता जी किसी को कोई जवाब नहीं दे रही तो केकई को क्रोध आया और राम सीता लक्ष्मण को कमंडल और जोगी मुनि वाले वस्त्र माला सब लाकर रामचंद्र के आगे रख दिए और मधुर वाणी में बोली राम आपके पिता आपको वन जाने की कभी भी नहीं कहेंगे अब जो तुम्हारी इच्छा है वह करो राम ने माता केकई की बात मानी और मुनि वेश धारण कर पिता के सामने आ गए राजा केकई की वाणी से मूर्छित हो गये राम माता पिता को शीश नवा कर चल दिए राज महल से निकलकर गुरु वशिष्ट के दरवाजे पर रुके अवध की प्रजा परेशान थी राम ने सबको समझाया श्रीराम ने ब्राह्मणों को बुलाया





गुरु सन कही वरषासन दीन्हे आदर दान विनय बस कीन्हे
आचक दान मान सन्तोषे मीत पुनित प्रेम परितोषे

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राम ने गुरु वशिष्ट जी से कहकर आदर दान देकर प्रार्थना से उन्हें वश में कर लिया मित्रों को संतुष्ट किया फिर अवध की सारी प्रजा का भार गुरु जी को दे दिया और कहा हमारे आने तक आप इनका ध्यान रखना और बोले मेरा सबसे प्रिय वही होगा जो हर हाल में राजा का हितकारी होगा जिससे महाराज सुखी रहे और आप सभी ऐसा कार्य करना जिससे सभी माताएं सुखी रहे इस प्रकार राम ने सबको समझा कर गुरु जी के चरणों में सिर नवाया श्री गणेश पार्वती महादेव को सुमिरन कर उनको मन में ध्यान कर आशीर्वाद लेकर सीता व लक्ष्मण सहित रघुनाथ श्री राम के चलते ही अवध में शोक छा गयाउधर रावण की लंका में अपशगुन होने लगे और देव लोक में सभी देव प्रसन्न हो गए इधर राजा दशरथ को मूर्छा जागी तो सुमंत से बोले राम कहां है क्या वन को चले गए तो मेरे प्राण अभी तक क्यों रुके हैं फिर दशरथ बोले हैं मित्र रथ लेकर तुम राम के पास जाओ और उनको चार-पांच दिन वन में घुमा कर वापस घर ले आना अगर राम ना लौटे तो जनक नंदिनी सीता जी को वापस ले आना ऐसा कहकर राजा मूर्छित हो गये पृथ्वी पर गिर पड़े उधर सुमंत जी राजा की आज्ञा अनुसार रथ लेकर वहां पहुंचे जहां नगर के बाहर प्रजा के साथ दोनों भाई सीता सहित खड़े थे तब सुमंत ने राजा के वचन श्री रामचंद्र जी को बताया और उनको रथ में बैठा कर ले कर जंगल की ओर चले तीनों ने अवधपुरी को शीश नवाया





राम वियोग विकल सब ठाढ़े जहं तह मनहू चित्र लिख काढ़े
नगर सफल बनु गहवर भारी खगम्रग विपुल सकल नर नारी

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राम जी के वियोग में सारी प्रजा दुखी है लोग जहां-तहां अवध में ऐसे खड़े हैं जैसे कागजों पर चित्र बना दिए हो नगर सभी तरह से परिपूर्ण था आज घोर अंधेरा छाया है प्रभु ने केकई की ऐसी अकल कैसे कर दी जो आज नागिन बनकर पूरी अवध को निगल गई अवध के सभी लोग राम के साथ चल दिए सभी देवता भी अपने-अपने घर छोड़कर सब राम के साथ चल दिए पहले दिन श्रीराम ने तमसा नदी के किनारे वास किया महाराज के मन को देखकर राम के मन में बड़ा दुख हुआ राम सब की पीड़ा को जानते हैं राम ने सब को समझाएं पर कोई अवध लौटने को राजी नहीं हुआ तो रात्रि के समय सुमंत के साथ सब को अपनी माया से सुलाकर राम लक्ष्मण और सीता के साथ वन की और चल दिए





जागे सकल लोग भये भोरू गये रघुनाथ भयहू अति सोरु
रथ कर खोज कतहू नहि पावही राम राम कहे चहूँ दिसू धावाही

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सवेरा होते ही सब लोग जागे और उठ कर चारों ओर दौड़ भाग करने लगे जब रथ का कोई पता ना चला तो बहुत दुखी हुए और आपस में कह रहे हैं की प्रभु हम को सोते हुए छोड़कर चले गए वे लोग अपनी बुराई स्वयं करते हैं और कहते हैं रामचंद्र जी के बिना हमारा जीवन धिक्कार है हमें मांगने पर मृत्यु क्यों नहीं मिलती इस प्रकार रोते बिलखते हुए सभी लोग अयोध्या में आए उन लोगों के वियोग का कोई वर्णन भी नहीं कर सकता अब हमें14 वर्ष प्रभु राम सीता माता और छोटे राजकुमार लक्ष्मण की आने की राह देखनी होगी पूरे अयोध्या में अंधेरी रात्रि का सन्नाटा छाया हुआ था राम के बिना अयोध्या शोक में डूबी हुई थी





सीता सचिव सहित दोऊ भाई श्रृंगवेरपुर पहुंचे जाई
उतरे राम देवसरी देखी कीन्ह दण्डवत हर्ष विशेषी

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सीता और मंत्री सहित दोनों भाई सींगवेर पहुंचे वहां सभी रथ से उतरे और गंगा मैया को सभी ने प्रणाम किया गंगा मैया सब के दुखों को हरने वाली है रामचंद्र जी ने मंत्री सुमंत और भैया लक्ष्मण और जनक नंदिनी अपनी प्रिय सीता जी को गंगा जी की अनेकों कथाएं व प्रसंग सुनाए और गंगा जी की महिमा बताइ सभी ने गंगा जी में प्रेम पूर्वक स्नान किया जिससे मार्ग की सारी थकान दूर हो गई और गंगाजल पीते ही मन प्रसन्न हो गया जिनके केवल नाम लेने से सारे दुख संकट बाहर जाते हैं भाग जाते हैं उनको किस मार्ग की थकान होगी यह नारायण की नरलीला है





यह सधि गुह निसाद जब पाई मुदित लिये प्रिये बन्धु बुलाई
लिये फल मूल भेंट भरि भारा मिलन चलेऊ हिय हर्ष अपारा

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जब निषाद राज को पता चला तब आनंदित होकर अपने साथियों व परिवार के साथ फल फूल लेकर रामचंद्र जी से मिलने चले मन में अपार हर्ष व खुशी का कोई ठिकाना ना रहा निषाद ने प्रभु राम के चरणों में प्रणाम किया फिर जो भेट लाए थे वह प्रभु राम को अर्पण कर दी और आंखों में आंसू लेकर एक नजर से प्रभु राम को देखते ही रहे फिर प्रभु राम ने प्यार के वश होकर अपने पास बैठाया और कुशलता पूछी निषादराज बोले प्रभु मैं आपके चरण कमलों के दर्शन करके भाग्यवान पुरुषों की गिनती में आ गया हूं प्रभु कृपया करके आप हमारी नगरी में पधारे हमें धन्य करें पृथ्वी धन घर यह सब आपके हैं प्रभु मैं तो आपका एक सेवक हूं फिर राम बोले भाई हमें पिताजी ने कुछ कहा है और हमें मुनियों के वेश में 14 वर्ष वन में रहना है फल कंदमूल खाने हैं हम किसी गांव या किसी घर में नहीं रुक सकते यह सुनकर निषाद बड़ा दुखी हुआ राम लक्ष्मण सीता को देखकर गांव के लोग चर्चा करने लगे हे सखी इनके माता-पिता कैसे हैं जिन्होंने ऐसी बालों को वन भेज दिया कुछ लोग कहते हैं अच्छा किया इसी बहाने हमें इनके दर्शन तो हो गए तब निषाद राज ने अशोक के पेड़ को सुंदर मानकर श्री रामचंद्र जी को दिखाया राम ने कहा यह सुंदर है गांव के लोग उनकी वंदना करके अपने अपने घर लौट गए निषादराज ने रात्रि के रहने के लिए एक सुंदर कुटी बना दी और उसमें कंदमूल फल व पानी का सुंदर घड़ा रख दिया राम लक्ष्मण सीता जी और मंत्री सुमंत वही रूके जब राम लेट गए तब लक्ष्मण उनके पैर दबाने लगे प्रभु राम को सीता जान लक्ष्मण कुछ दूरी पर धनुष बाण के साथ बैठ गए निषादराज ने अपने तीर कमान लेकर लक्ष्मण जी के साथ जा बैठे गएऔर लक्ष्मण जी से कहने लगे प्रभु राम व मैया सीता का जमीन पर सोना देखकर मुझे रोना आ रहा है विधाता ने यह कैसी घड़ी बनाई जो राज महल में रहने वाले आज कांस की साथरी पर सो रहे हैं कैकई माता ने ऐसा क्यों किया सुख के समय दुख दे दिया तब लक्ष्मण बोले भाई ऐसा कुछ नहीं है सब कर्मों के फल हैं ऐसा सोच कर दुख नहीं करना चाहिए नाहीं किसी को दोष देना चाहिए विधाता सबको अपने कर्मों के अनुसार काम देता है






होय विवेक मोह भृम भागा तब रघुनाथचरण अनुरागा
सखा परम परमार्थ एहू मन क्रम वचन राम पद नेहू

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जिन लोगों में शांति और धैर्य होता है वह किसी प्यार के वश में नहीं होते जिनका प्रभु के चरणों में वास होता है वह मोह माया के जाल से मुक्त होते हैं मन वचन और कर्म से जो श्री रामचंद्र जी के चरण कमलों में मन लगाते हैं वही सबसे बड़े धर्मी है रामचंद्र जी बड़े दयालु हैं भक्त ब्राहाम्ण गौ और देवता के लाभ के कारण मनुष्य रूप धरकर लीलाएं करते हैं जिनके नाम मात्र से सारे कष्ट दूर होते हैं



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