राम जी का वनवास दौरान ऋषि वाल्मीकी जी से मिलना| Ram ji ka rishi Valmiki jike ashram Jana


जब राम जी अपने वनवास यात्रा के दौरान ऋषि भारद्वाज के आश्रम से आगे बढ़ने लगे , तब भारद्वाज ऋषि राम जी से कहने लगे , हे प्रभु मर्यादा पुरुषोत्तम आपके आश्रम में आने से हमारे तप तीर्थ वैराग्य पूजा यज्ञ और सारे पुन्य हमें प्राप्त हो गए हैं | और आज सारी आशाएं पूर्ण हो गई| अब प्रभु ऐसा वरदान दीजिए कि मेरा मन सदा आपके चरण कमलों में लगा रहे हैं|


Maharishi valmiki and Ram milan story in Hindi
Maharishi Valmiki and Ram milan story in Hindi



सुनि मुनि वचन राम सकुचाने
भाव भगत आनंद अधाने
तव रघुवीर मुनि सुजस सुहावा
कोटि भांति कही सवाही सुनावा





मुनि के वचन सुनकर मुनि भारद्वाज की भक्ति भाव सेवा से प्रसन्न होकर प्रभु राम सकुचा गए |श्री रामचंद्र जी ने भारद्वाज मुनि का यश करोड़ प्रकार से सबको सुनाया |राम कह रहे हैं, हे मुनि जिसको आप आदर दे वही बड़ा है इस प्रकार रामचंद्र जी व मुनि आपस में बात करते हुए विनम्र हो गए और असीम सुख का अनुभव करने लगे |यह समाचार सुनकर प्रयाग के निवासी साधु संत ब्रह्मचारी तपस्वी मुनि सब मुनि भारद्वाज के आश्रम | rishi Bhardwaj ka ashram आए और सीता जी सहित राम लक्ष्मण के प्रेम पूर्वक दर्शन किए |सब ने राम लखन व सीता जी को आशीर्वाद दिया राम जी ने सब को प्रणाम किया सभी ने प्रभु राम की व सीता मैया और लक्ष्मण के दर्शन कर अपने आप को भाग्यवान समझा राम जी की प्रशंसा करते हुए यह सभी लोग वापस चले गए|
प्रातः सभी ने प्रयाग में स्नान कर मुनि भारद्वाज से जाने की आज्ञा मांगी प्रभु राम मुनी से बोले हमें मार्ग बताएं तब मुनि हंसकर बोले , प्रभु आप जिस मार्ग जाएंगे वह मार्ग सुंदर हो जाएगा आपके लिए सभी मार्ग सुगम हैं| फिर सीता सहित राम लखन निषाद राज के साथ प्रयाग से आगे बढ़े|





ग्राम निकट जब निकसही जाई
देखई दरस नारि नरधाई
होहि सनाथ जनम फलु पाई
फिरहि दुखित मन संग पठाई





बहुरि लखन पायन सोई लागा
लीन्ह उठाई उमंग अनुरागा
पुनि सिय चरण धुरि धरि शीशा
जननी जानि शिशु दीन्ह अशीशा





तब रघुवीर श्रमति सिय जानी
देखि निकटवटू शीतल पानी
तहँ वसि कंद मूल फल खाई
प्रातः नहाय चले रघुराई





तुम्हीं त्रिकालदर्शी मुनि नाथा
विश्ववदर जिमि तुम्हारे हाथा
असि कहि प्रभू सब कथा वरबानी
जेहि जेहि भांति दीन्ह वन रानी





सहज सरल सुनि रघुवर वानी
साधू साधू बोले मुनि ज्ञानि
कस न कह हूँ अस रघुकूल केतू
तुम पालक संतत श्रुति सेतू



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