रामायण से परिचय
रामायण संसार की सबसे पुराने एवं लोकप्रिय महाकाव्यों में से एक है हिंदू धर्म में भगवान सूर्य के वंशज महापराक्रमी राजा दशरथ का अवधपुरी में जन्म हुआ था यह तो आप सभी को ज्ञात होगा कि उनके 4 पुत्र और तीन रानियां थी चारों पुत्रों में श्री राम सबसे बड़े फिर भरत लक्ष्मण और शत्रुघ्न अर्थात शत्रुघ्न राजा दशरथ के सबसे छोटे पुत्र थे रामायण में रघुकुल शिरोमणि राम सहित तीनों भाइयों के लीलाएं दर्शाई गई हैं रामायण मनुष्य को सत्य तथा त्याग एवं विश्वास और भक्ति के पथ पर चलने का ज्ञान देती है रामायण में प्रस्तुत अभिलेखों का अध्ययन करने के पश्चात आप त्याग भक्ति विश्वास जैसे शब्दों की असली परिभाषा समझेंगे
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Ramayana in Hindi short story |
सनातन धर्म में रामायण महत्वपूर्ण महाकाव्यों में से एक है रामायण के अंदर 10902 श्लोक हैं तथा 8 अध्याय हैं
रामायण के लेखक कौन हैं Ramayan kisne likhi thi or kab
सबसे पहले रामायण ऋषि वाल्मीकि जी के द्वारा संस्कृत भाषा में लिखी गई है कहते हैं यह रामायण बाल्मीकि जी ने श्री राम के जन्म से कई वर्ष पहले ही लिख दी थी रामायण लिखने में मुनि नारद जी जोकि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं उन्होंने मुनि बाल्मीकि जी की रामायण लिखने मैं सहायता की थी
रामचरितमानस क्या है Ramcharitmanas kisne likhi thi or ramcharitmanas ki bhasha kya hai
रामचरितमानस तुलसीदास जी द्वारा अवधी भाषा में रचित एक महाकाव्य है राम चरित्र मानस का अवधी साहित्य की एक महान कीर्ति माना जाता है रामचरित्र मानस को सामान्यता: "तुलसी रामायण" या "तुलसीकृत रामायण" भी कहा जाता है रामचरित्र मानस भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है
कहां जाता है कि स्वयं शिव पार्वती जी ने काशी में तुलसीदास जी को दर्शन दिए तथा उनसे कहा कि तुम अवध में जाकर निवास करो और प्रभु राम की लीलाओं का वर्णन हिंदी अवधी मधुर भाव में करो तब तुलसीदास जी अवधपुरी में आए
प्रसंग III : ऐसे हुए तुलसीदास जी को श्री राम के दर्शन"
संवत 1606 ईसवी मैं मोनी अमावस के दिन बुधवार को बालक के रूप में चित्रकूट के घाट पर राम जी बोले हे बाबा हमें चंदन लगाओ हनुमान जी यह सब देख रहे थे उन्होंने सोचा तुलसीदास इस बार भी प्रभु को नहीं पहचान पाएंगे तब हनुमान जी ने तोते का रूप धारण करा और फिर बोले
चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़ :
तुलसीदास चंदन घिसे तिलक देत रघुवीर
तुलसीदास जी तोते के रूप में कवि को देख कर अपने शरीर की सुधि भूल गए राम जी ने चंदन लेकर तुलसीदास और अपने माथे पर स्वयं लगाया और अंतर्ध्यान हो गए । फिर हनुमान जी ने तुलसीदास को संवत 1628 मैं अवध जाने को कहा तब तुलसीदास प्रयाग होते हुए काशी आए वहां आकर लाद घाट पर एक ब्राह्मण के यहां निवास किया ।
वहां पर संस्कृत में पद्य रचना करने लगे परंतु रोज रात्रि में वह सभी रचनाएं लुप्त हो जाती थी और यह घटना रोजाना घटित होती थी आठवें दिन तुलसीदास जी को स्वपन हुआ स्वपन मे भगवान शिव बोले तुम अपनी भाषा में काव्य रचना करो तभी तुलसीदास की आंखें खुल गई तथा शिव और पार्वती प्रकट हुए और गोस्वामी तुलसीदास जी ने उन्हें शीश नवा कर नमन किया
शिव पार्वती जी ने तुलसीदास से कहा shiv parvati ji ne goswami tulsidas se kya kaha
तुम अवध में जाकर रहो और हिंदी मैं महाकाव्य की रचना करो हमारे आशीर्वाद से तुम्हारी कविता रचना सामवेद के समान फलदायक होगी इतना कहकर शिव पार्वती अंतर्ध्यान हो गए तुलसीदास अवधपुरी आये
संवत् 1631 का प्रारंभ हुआ , रामनवमी का दिन ऐसा योग बना जैसे त्रेता युग में राम जन्म के दिन था उस दिन प्रात काल उठकर तुलसीदास जी ने रामायण काव्य की रचना प्रारंभ की | 2 वर्ष 7 महीने 26 दिन मैं ग्रंथ की समाप्ति हुई संवत 1639 के मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष में विवाह के दिन सातों कांड पूर्ण हो गए संवत 1680 श्रवण कृष्ण तृतीया दिन शनिवार को आशी घाट पर तुलसीदास ने राम राम कहते हुए अपने शरीर का त्याग कर दिया
तुलसीदास रामयण नही करते अनुसार ;
कलिके कुटिल जीव ये को करतो निस्तार
"प्रसंग V :रामायण मनुष्य का किस प्रकार मार्गदर्शन करती है How does Ramayana guide man?
भगवान राम हमेशा प्यार और दया का भाव रखते हैं वह बदला लेने से अच्छा, माफ कर मनुष्य को सही रास्ते पर लाने में ज्यादा विश्वास रखते हैं रावण का अंत माता सीता का हरण बना था इससे पता चलता है हम दूसरों को नुकसान पहुंचाने के चक्कर में स्वयं अपने आप को नष्ट कर लेते हैं जिन्होंने पिता के इच्छा मात्र से समस्त राज पाठ धन दौलत का त्याग करके 14 वर्ष का बनवास खुशी खुशी अपना सौभाग्य माना तथा लक्ष्मण जी जिन्होंने अपने भाई की सेवा के लिए राजपाट के समस्त सुखों का त्याग कर दिया तथा अपनी धर्मपत्नी को छोड़कर राम जी के साथ वनवास चले गए श्रीराम जिन्होंने अपनी धर्मपत्नी के हरण करने वाले रावण को भी क्षमा याचना का मौका दिया
रामायण हमें धर्म त्याग और भक्ति की परिभाषा देती है जो मनुष्य इन तीन चीजों को अपने मन में धारण कर लेता है तो उस मनुष्य की इस संसार में कभी हार नहीं होती
प्रसंग VI : रामायण एक ऐसा महाकाव्य है जो खुशियों से भरा हुआ है राजा दशरथ के चार पुत्र थे भगवान राम को देखो जब उन्होंने लंका पर चढ़ाई की तब उन्होंने अपनी सेना में सभी को रखा जैसे की वानर भालू तथा अनेक प्रकार के जानवर भी उनकी की सेना में शामिल थे
इन सभी के सहयोग से श्री राम ने रावण का संघार किया और लंका पर विजय पाई इससे हमारे जीवन में यह प्रेरणा मिलती है कि सारा परिवार मिलकर एक साथ रहे तो आप कठिन से कठिन समय से शीघ्र बाहर निकल आएंगे
प्रसंग VII : समर्पण हमेशा शांति देता है Surrender always gives peace
किसी भी कार्य को समय पर पूरा करने के लिए हर समय तत्पर रहना चाहिए जिससे वह अपनी आगे की मंजिल पा सके और जीवन में जो लक्ष्य है उस लक्ष्य को हासिल कर सके अगर जीवन में कुछ बनना है तो मेहनत करनी पड़ेगी और उस लक्ष्य को पाने के लिए समर्पित होना पड़ेगा
जैसे भगवान राम के लिए पवन पुत्र हनुमान की निष्काम भक्ति और प्रेम से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अपने को आराध्य के चरणों में बिना किसी संदेह के समर्पित कर देना चाहिए
प्रसंग VIII : जीवन में अच्छी संगति का महत्व Importance of good company in life
अच्छे कार्य के लिए संगति भी अच्छी होनी चाहिए जैसी संगति में मनुष्य रहता है वैसे ही काम करता है अगर मनुष्य की संगति ही गलत है तो निरंतर गलत कर्मों की ओर आकर्षित रहेगा अर्थात मनुष्य यानी जीव गलत कर्म ही करेगा और एक समय उपरांत उसके जीवन में समस्त आकांक्षाओं के द्वार बंद हो जाएंगे
जिस प्रकार केकई ने दासी मंथरा की गलत बातों में आकर राजा दशरथ से राम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांग लिया, इसलिए रामायण से हमें यह सीख मिलती है कि हम बुरी संगति से बचें तथा धर्म का पालन करें
प्रसंग IX : सब के साथ एक जैसा व्यवहार करना treat everyone alike
रामायण से हमें यह भी सीखने को मिलता है कि मनुष्य को जीवन में सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करना चाहिए भगवान राम ने अपने जीवन में सदा एक जैसा व्यवहार किया फिर चाहे भरत या फिर निषाद राज केवट या माता कौशल्या या फिर के कई माता उन्होंने कभी भी किसी को जाति धर्म भेदभाव ऊंच-नीच उन्होंने सभी के साथ एक समान व्यवहार कियाजैसे की भीलनी के जूठे बेर खाना,
यहां पर रामायण से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य को सदैव सभी के साथ एक समान व्यवहार करना चाहिए कभी भी अहंकार और क्रोध के अधीन होकर ऐसे वचनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए जो किसी और जीव का अहित करते हो
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